दिल्ली भी बल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों से खुद को नहीं बचा पायी

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किसी भी देश की राजधानी, उस देश की प्रगति का प्रतिबिंब होती है। राजधानी को हर क्षेत्र में आधुनिकतम माना जाता है। इसके बावजूद राजधानी दिल्ली भी ‘बाल विवाह’ जैसी सामाजिक कुरीति से खुद को नहीं बचा सकी है। भारत सरकार की साल 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में 84,277 लोगों का बाल विवाह हुआ है। यह पूरे देश के बाल विवाह का करीब एक प्रतिशत है। बाल विवाह के मामले में दिल्ली का देशभर के 29 राज्यों में 19वां स्थान है। यह अपने आप में दर्शाता है कि ‘बाल विवाह’ की समस्या कितनी विकराल है कि देश की राजधानी भी इससे अछूती नहीं है। 

 नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन(केएससीएफ) द्वारा यहां आयोजित ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान में जुटी स्वयंसेवी संस्थाओं ने दिल्ली की इस स्थिति पर चिंता जाहिर की और सरकार से अपील की कि ‘बाल विवाह’ रोकने के लिए कानून का सख्ती से पालन करवाया जाए ताकि अपराधियों के मन में खौफ पैदा हो और ‘बाल विवाह’ की सामाजिक बुराई को खत्म किया जा सके। इस संबंध में केएससीएफ ने दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग, महिला एवं बाल विकास विभाग और दिल्ली सरकार के साथ मिलकर विश्व युवा केंद्र, चाणक्यपुरी में एक सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें ‘बाल विवाह’ के पूर्ण खात्मे को लेकर गहन विचार-विमर्श हुआ।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के ताजा आंकड़े भी साल 2011 की जनगणना के आंकड़ों की तस्दीक करते हैं। सर्वे के अनुसार देश में 20 से 24 साल की उम्र की 23.3 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं जिनका बाल विवाह हुआ है। वहीं, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो(एनसीआरबी) के अनुसार दिल्ली में साल 2019 में दो, साल 2020 में चार और साल 2021 में मात्र दो मामले बाल विवाह के दर्ज किए गए। इससे साफ है कि ‘बाल विवाह’ जैसी सामाजिक बुराई के प्रति लोग आंखें मूंदकर बैठे हैं और बाल विवाह के मामलों की पुलिस में शिकायत नहीं की जा रही है। सम्मेलन में इस स्थिति पर चिंता जाहिर की गई। साथ ही जनता, सरकार और सुरक्षा एजेंसियों से बाल विवाह के मामलों में गंभीरता बरतने व सख्त से सख्त कदम उठाने की अपील की गई। इस बात पर सहमति जताई गई कि सख्त कानूनी कार्रवाई से ही बाल विवाह को रोका जा सकता है। 

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सम्मेलन में बाल विवाह रोकने के लिए कानूनी पहलुओं पर चर्चा की गई। इसमें प्रमुख रूप से बाल विवाह के मामले में अनिवार्य एफआईआर दर्ज करने, बाल विवाह को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट और पॉक्सो एक्ट से जोड़ने पर विमर्श हुआ। इसका मकसद कानून तोड़ने वालों को सख्त से सख्त सजा दिलाना है। साथ ही देश के हर जिले में बाल विवाह रोकने वाले अधिकारी(सीएमपीओ) की नियुक्ति की मांग भी उठाई गई। इन अधिकारियों को बाल विवाह रोकने के लिए उचित प्रशिक्षण देने और उन्हें अभिभावकों को इसके खिलाफ प्रोत्साहन देने की भी बात कही गई। 

 सम्मेलन में दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य रंजना प्रसाद, बुराड़ी से विधायक संजय झा,  उत्तर प्रदेश की पूर्व डीजीपी सुतापा सान्याल, बाल मित्र मंडल की बाल नेता निशा, दिल्ली टीचर्स यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रो. धनंजय जोशी, भारतीय स्त्री शक्ति की नैना सहस्रबुद्धे, संसद टीवी के सीनियर एंकर मनोज वर्मा और कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक राकेश सेंगर समेत अनेक गणमान्य हस्तियां मौजूद रहीं।


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