क्या योगी आदित्यनाथ से पिछड़ गए हिमंत,अमित शाह की रणनीति भी बीजेपी को झारखंड क्यों जिता नहीं पाई?

क्या योगी आदित्यनाथ से पिछड़ गए हिमंत,अमित शाह की रणनीति भी बीजेपी को झारखंड क्यों जिता नहीं पाई?
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नई दिल्ली। महाराष्ट्र और झारखंड में बीजेपी ने लड़ाई ध्रुवीकरण के आधार पर लड़ी,मगर जहां झारखंड चुनाव की कमान असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने संभाल रखी थी। वहीं,महाराष्ट्र चुनाव यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भरोसे लड़ा जा रहा था। चुनावी नतीजों में जहां योगी का बंटेंगे तो कटेंगे का नारा हिट रहा। महायुति ने चुनावी परिणानों के रुझानों में 288 में से 225 से ज्यादा सीटें हासिल करती दिख रही है। वहीं हिमंत ने झारखंड में झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन पर घुसपैठियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया और दावा किया कि यह चुनाव अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने और हिंदुओं की रक्षा के लिए लड़ा जाएगा। झारखंड में गृह मंत्री और भाजपा के रणनीतिकार अमित शाह ने भी पूरा जोर लगा रखा था। इसके बाद भी भाजपा गठबंधन 24 सीटों पर सिमटती नजर आ रही है।

हिमंत ने कहा था-मंगलवार को हनुमान चालीसा पढ़ने के लिए मिले छुट्टी
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने झारखंड विधानसभा चुनाव में कई रैलियों को संबोधित किया था। झारखंड के चुनावी रैलियों में उन्होंने कहा था कि जिस तरह से शुक्रवार के दिन मुसलमान को नमाज पढ़ने के लिए स्कूलों में छुट्टी दी जाती है, वैसे ही मंगलवार को हनुमान चालीसा पढ़ने के लिए हिंदुओं को छुट्टी दी जानी चाहिए।

जाति को लेकर हमला
हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में कहा था कि घुसपैठ रोकना केवल केंद्र सरकार की नहीं,बल्कि सभी की जिम्मेदारी है। उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर कटाक्ष करते हुए वह ‘फॉर्मूला’ भी जानना चाहा कि ‘अपनी जाति बताए बिना जाति सर्वेक्षण कैसे किया जाए।’

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संथाल परगना घुसपैठ से सबसे ज्यादा प्रभावित
भाजपा के झारखंड चुनाव सह-प्रभारी सरमा ने एक रैली में कहा था कि झारखंड का संथाल परगना घुसपैठ से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। पिछले 20 वर्षों में इस क्षेत्र के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में घुसपैठियों की आबादी 50-60 प्रतिशत बढ़ गई है और स्थिति असम जैसी हो सकती है।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी इस बात को प्रचारित करती रही कि कांग्रेस देश के अलग-अलग जातियों के नाम पर लड़वाना चाहती है। बीजेपी के हर बड़े नेता ने अपनी चुनावी रैली में इस बात का जिक्र किया कि अगर एक नहीं रहोगे तो इसका फायदा दूसरा उठा लेगा। भाजपा के फायर ब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ ने हरियाणा की तर्ज पर महाराष्ट्र में भी वही नारा दिया कि बंटोगे तो कटोगे। उनका यह दांव महाराष्ट्र में काम कर गया और बीजेपी गठबंधन यानी महायुति को बड़ी जीत हासिल हुई।

महाराष्ट्र क्षेत्रफल, आबादी और मतदाताओं के लिहाज से झारखंड से काफी बड़ा राज्य है। 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा के आगे 81 सदस्यीय झारखंड में बीजेपी की चुनौती बेहद कम थी। मगर, यहां पर हिमंत और अमित शाह की रणनीति काम नहीं कर पाई। वहीं, महाराष्ट्र में योगी आदित्यनाथ की तूफानी तेवरों से महाराष्ट्र में वोटरों का ध्रुवीकरण हो गया, जिससे पार्टी ने बड़ी जीत हासिल कर ली।

योगी के नारे को जनता ने काफी पसंद किया था
भाजपा सहित महायुति दल के कई नेताओं ने राज्य में चुनाव प्रचार के दौरान एक नारा जमकर लगाया। वो था ‘बंटेंगे तो कटेंगे’। सबसे पहले ये नारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिया था। इसके बाद पीएम मोदी ने कहा था कि एक हैं तो सेफ हैं। अब महायुति के शानदार प्रदर्शन को देखते हुए उम्मीद जताई जा रही है कि महाराष्ट्र की जनता को ये नारे काफी पसंद आए हैं। वहीं, महाविकास अघाड़ी के उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र चुनाव प्रचार के दौरान योगी आदित्यनाथ के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के नारे का विरोध किया था।

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महाराष्ट्र चुनाव में छाया रहा वोट जिहाद का मुद्दा
चुनाव से पहले राज्य में वोट जिहाद का मुद्दा भी छाया रहा। चुनाव प्रचार के दौरान देवेंद्र फडणवीस ने कहा था, लोकसभा चुनाव में वोट जिहाद ही असली फैक्टर था। एक खास समुदाय के लोगों ने भाजपा के खिलाफ वोट दिया। इसका उद्देश्य मोदी को हटाना था। यह इस बार काम नहीं करेगा।

योगी ने की थीं ताबड़तोड़ 11 रैलियां
योगी आदित्यनाथ ने 5 नवंबर से 18 नवंबर तक 13 दिनों में धुआंधार प्रचार करते हुए महाराष्ट्र, झारखंड और उत्तर प्रदेश में 37 रैलियां की थी। इसके अलावा 2 रोडशो भी किए। महाराष्ट्र में उन्होंने महायुति के पक्ष में ताबड़तोड़ 11 रैलियां की। झारखंड में 4 दिनों के भीतर 13 रैलियां और यूपी की 9 सीटों पर उपचुनाव के लिए भी 5 दिन में 13 रैलियां और 2 रोडशो किए।

हिमंत ने झारखंड में झोंक दी थी ताकत,54 रैलियां
झारखंड में भाजपा की ओर से सबसे ज्यादा रैली हिमंत बिस्वा सरमा ने की थी। हिमंत ने पूरे चुनाव में तकरीबन 54 रैलियों को संबोधित किया था। हिमंत के बाद केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह ने चुनावी रैली की थी। शिवराज ने करीब 50 रैलियों को संबोधित किया था। हिमंत रैलियों को संबोधित करने के साथ-साथ डैमेज कंट्रोल का काम भी कर रहे थे। हिमंत और शिवराज के बाद अमित शाह ने कुल 16 रैलियों को संबोधित किया है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी 12 से ज्यादा रैली की है।

झारखंड में बीजेपी की हार के
झारखंड में भाजपा की स्थानीयता की नीति पर भाजपा के रुख से लोगों में नाराजगी रही है। पूर्व में रघुवर दास सरकार के दौरान जिस तरह से स्थानीयता की नीति में बदलाव किया गया था, उससे वहां के आम वोटरों खासकर आदिवासी समाज ने सही नहीं माना था। यही कारण था कि पहले 2019 के विधानसभा चुनावों में और अब 2024 के विधानसभा चुनावों में भी वोटरों ने झामुमो और हेमंत सोरेन पर विश्वास जताया।

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आदिवासी वोटरों ने हेमंत के पक्ष में किया वोट
भ्रष्टाचार के आरोपों में झामुमो के मुखिया हेमंत सोरेन का जेल जहां झारखंड वोटरों को रास नहीं आया। स्थानीय आदिवासी समुदाय ने इसे भावनात्मक रुप से लिया और हेमंत के पक्ष में एकजुट को वोट किया।


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