पूर्व IPS का दावा, रामचरित मानस के मूल पाठ में नहीं लिखा है ‘शूद्र’, 18वीं शताब्दी की किताब का दिया हवाला

पूर्व IPS का दावा, रामचरित मानस के मूल पाठ में नहीं लिखा है ‘शूद्र’, 18वीं शताब्दी की किताब का दिया हवाला
ख़बर को शेयर करे

अयोध्या | रामचरितमानस में जिस ‘शूद्र’ शब्द को लेकर इन दिनों असहमति के स्वर मुखर हो रहे हैं, वह वस्तुत: शूद्र नहीं ‘क्षुद्र’ शब्द था। यह दावा है, पूर्व आइपीएस अधिकारी, लेखक एवं महावीर मंदिर ट्रस्ट पटना के सचिव आचार्य किशोर कुणाल का। उन्होंने प्रेस नोट जारी कर सन् 1810 ई. में कोलकाता के विलियम फोर्ट से प्रकाशित और पं. सदल मिश्र द्वारा संपादित ‘रामचरितमानस’ का उदाहरण दिया, उसमें यह पाठ ‘ढोल गंवार क्षुद्र पशु नारी’ के रूप में है।

आचार्य कुणाल ने यह भी याद दिलाया कि सदल मिश्र बिहार के उद्भट विद्वान और मानस के मान्य प्रवचनकर्ता थे और उनके द्वारा संपादित कृति रामचरितमानस की सबसे पुरानी प्रकाशित पुस्तक है।आचार्य कुणाल ने मानस के परवर्ती प्रकाशन में भी शूद्र अथवा सूद्र शब्द की जगह क्षुद्र के प्रयोग का उदाहरण दिया।

उन्होंने बताया कि 1830 ई. में कोलकाता के एसियाटिक लियो कंपनी से ‘हिंदी एंड हिंदुस्तानी सेलेक्संस’ नाम से एक पुस्तक छपी थी। इसमें रामचरितमानस के सुंदरकांड का भी प्रकाशन संयोजित था। इसमें भी ‘ढोल गंवार क्षुद्र पशु नारी’ का ही अंकन है। इस 494 पृष्ठ वाली पुस्तक के संपादक विलियम प्राइस, तारिणीचरण मिश्र एवं चतुर्भुज प्रेमसागर मिश्र थे।

क्यों इन दिनों चर्चा में है रामचरित मानस
सपा नेता व नवनिर्वाचित राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरित मानस की कुछ चौपाइयों पर आपत्ति दर्ज कराते हुए उन्हें समाज के एक वर्ग के खिलाफ बताया था, साथ ही इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी की थी। इस टिप्पणी का कई राजनीतिक दलों ने विरोध जताया, साधु-संत समाज की तरफ से भी आपत्तियां दर्ज कराई गईं।

इसे भी पढ़े   टेलीकॉम,रिटेल के किंग बनने के बाद अब मुकेश अंबानी करेंगे आपके 'खून की जांच',150 अरब डॉलर के इस बाजार पर नजर

ख़बर को शेयर करे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *