इराक में लड़कियों की शादी की उम्र घटाकर 9 साल करने की तैयारी

इराक में लड़कियों की शादी की उम्र घटाकर 9 साल करने की तैयारी
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नई दिल्ली। मिडिल ईस्ट आई के मुताबिक, इराक में प्रोग्रेसिव लेफ्टिस्ट के तौर पर प्रशासनिक बदलावों के लिए मशहूर अब्दुल करीम कासिम की सरकार ने साल 1959 में पर्सनल स्टेटस लॉ बनाया था। इस कानून के तहक 18 साल की उम्र पूरी होने के बाद ही लड़कियों की शादी की जा सकती है। उस दौर में पूरे मिडिल ईस्ट में इसे सबसे बढ़िया कानूनों में माना गया था। पर्सनल स्टेटस लॉ 1959 के 188 नियम में तय उम्र में शादी के अलावा पुरुष की मनमर्जी से दूसरी शादी पर रोक भी लगाई गई है।

कट्टर मुस्लिम आबादी की खुशी के लिए नियम में दी गई थी ये ढील
हालांकि, मुस्लिम पुरुष और गैर-मुस्लिम महिला अगर शादी करना चाहें तो उनके लिए कोई शर्त या प्री-कंडीशन लागू नहीं होगी। कट्टर मुस्लिम आबादी की खुशी के लिए नियम में यह ढील दी गई थी कि अगर परिवार और काजी यानी जज की इजाजत हो तो 15 साल की उम्र में भी निकाह किया जा सकता है। अब इन्हीं कानूनों में बदलाव कर लड़की की शादी की उम्र घटाकर 9 साल किए जाने का प्रस्ताव पेश किया गया है।

इराक में कानून में विवादित बदलाव के पीछे कौन सी ताकत है?
इराक में शिया मुसलमानों की बहुतायत है। इसलिए शिया-बहुल इराक की सरकार में शिया पार्टियां ही सबसे ताकतवर भूमिका में होती है। अक्सर वही सभी बड़े फैसले लेते रहे हैं। इन्हीं शिया इस्लामिस्ट पार्टियों ने मिलकर एक कानूनी ढांचा तैयार किया है। इसी फ्रेमवर्क में लड़कियों की शादी की उम्र कम करने वाले विवादित बदलाव की बात भी शामिल है। फिलहाल इराक में शिया पार्टियों के समर्थन से शिया फिरके को मानने वाले मोहम्मद शिया अल-सुदानी की सरकार है।

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कानून में प्रस्तावित बदलावों के पीछे शिया पार्टियों ने बेतुकी दलीलें दी हैं। उसने कहा है कि संविधान के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश में पर्सनल स्टेटस लॉ 1959 में बदलाव की पेशकश की गई है। नया कानून बनने से इराकी परिवार खुद तय कर सकेंगे कि उन्हें कब अपने बच्चों को शादी करवानी है। क्योंकि इंटरनेशनल एनजीओ गर्ल्स नॉट ब्राइड्स के मुताबिक, मौजूदा कानून के बावजूद इराक में 7 फीसदी बच्चियों की शादी 15 साल की उम्र से पहले और 28 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल उम्र होने से पहले कर दी जाती है।

कानून में बदलाव के लिए प्रस्तावित विधेयक में और क्या-क्या है?
इराक की संसद में मौजूदा कानून में बदलाव के लिए प्रस्तावित विधेयक में कहा गया है कि व्यक्तिगत मामलों के कानूनी निपटारे के लिए पति और पत्नी को सुन्नी या शिया में से एक धर्म चुनना होगा। अगर शादी के कॉन्ट्रैक्ट के लिए किस धर्म का पालन करना है जैसा कोई विवाद हो तो समझौते को पति के धर्म के मुताबिक ही माना जाएगा। विधेयक में साफ तौर पर कहा गया है कि शिया कानून उस जाफरी न्याय व्यवस्था के आधार पर होगा, जो शादी, तलाक, बच्चे गोद लेना और विरासत जैसे पर्सनल मामले को देखता है।

महिलाओं पर पाबंदियां
छठे शिया इमाम जाफ़र अल सादिक के नाम पर बने इस जाफरी कानून के तहत 9 साल की लड़की और 15 साल के लड़कों की शादी जायज है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस कानून के पुराने संस्करण के मुताबिक मुस्लिम पुरुषों को गैर-मुस्लिम महिलाओं से शादी करने पर रोक, लेकिन मैरिटल रेप को जायज माना जाता था। इसमें शौहर की इजाजत के बिना बीवी के घर से बाहर निकलने पर भी रोक थी। इसके अलावा भी इस कानून में महिलाओं को लेकर कई विवादास्पद मजहबी पाबंदियां हैं।

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क्यों बढ़ा बाल विवाह का दबाव?
वर्ल्ड बैंक के हालिया आंकड़ों के मुताबिक, कट्टरपंथ की चपेट में फंसे इराक में महिलाओं की स्थिति बिल्कुल अच्छी नहीं है। घरेलू हिंसा से बुरी तरह पीड़ित महिलाओं के साथ अक्सर दोयम दर्ज का रवैया अपनाया जाता है। मिडिल ईस्ट और उत्तरी अफ्रीका में आने वाले देशों में इराक में कामकाजी महिलाएं सबसे कम महज एक फीसदी हैं। लड़कियों की कम उम्र में शादी कर दी जाती है। हालांकि, इराक में बाल विवाह के बढ़ते दबाव के पीछे राजनीतिक अस्थिरता और बड़ी संख्या में मौजूद सीरिया, तुर्की, ईरान और यमन से आए हुए शरणार्थियों पर भी ठीकरा फोड़ा जाता है।

विवादों से पुराना नाता
रिपोर्ट के मुताबिक, इराक में इससे पहले जुलाई में सांसदों की तीखी बहस के बाद इस प्रस्ताव को संसद से वापस ले लिया गया था। निर्दलीय सांसद रईद अल-मलिकी ने 4 अगस्त को दोबारा पर्सनल स्टेटस कानून में संशोधन का प्रस्ताव पेश किया। इराक की महिला सांसदों के एक गठबंधन ने विधेयक का विरोध करते हुए इसे पितृसत्ता को बढ़ावा देने वाला कहा है। राएद अल-मलिकी ने ही संसद में पहले वेश्यावृत्ति विरोधी कानून में संशोधन का प्रस्ताव रख चुके हैं। उसी के तहत समलैंगिकता और लिंग-बदलाव सर्जरी को अपराध घोषित किया गया था।

महिलाओं पर शिक्षा और आजादी पर खतरा
इराक में प्रस्तावित विधेयक का विरोध कर रहे मानवाधिकार और नारीवादी संगठनों के मुताबिक, ऐसा कानून बनने से इराक का विकास आगे नहीं बल्कि पीछे की ओर जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि हालांकि, इराक में मजहबी नेता वैसे भी हर साल हजारों गैर-रजिस्टर्ड शादियां करवाते हैं और इनमें बड़े पैमाने पर बाल विवाह भी शामिल होता है। इसके बावजूद अगर यह विधेयक इराक की संसद से पारित हो गया तो वहां लड़कियों की शिक्षा और उनकी आजादी खतरे में पड़ जाएगी। ये महिलाओं और बच्चों पर इस्लामी शरिया लागू करने वाला कानून होगा।

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