लोहे की रॉड छाती फाड़ के घुसी,डॉक्टरों ने धड़कते दिल की सर्जरी कर बचा ली जान

लोहे की रॉड छाती फाड़ के घुसी,डॉक्टरों ने धड़कते दिल की सर्जरी कर बचा ली जान
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नई दिल्ली। सुल्तानपुर के मुन्ने लाल शर्मा (54) ई-रिक्शा चलाकर गुजारा करते हैं। 27 मार्च को वह टॉयलेट की छत साफ कर रहे थे। अचानक छत ढह गई और वह करीब 10 फीट की ऊंचाई से नीचे आ गिरे। छत पर लगी एक लोहे की रॉड उनकी छाती के आर-पार हो गई। दिल और फेफड़ों को चीरती निकल गई। इतनी भयानक चोट के बावजूद शर्मा खुद ई-रिक्शा चलाकर 25 किलोमीटर दूर स्थित जिला अस्पताल पहुंचे। शुरुआती इलाज के बाद उन्‍हें लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) रेफर कर दिया गया। KGMU की ट्रॉमा सर्जरी टीम के सामने बड़ी चुनौती थी। इतनी जटिल हार्ट सर्जरी के लिए मरीज के दिल को रोकना पड़ता है और हार्ट-बाईपास मशीन की जरूरत पड़ती है। वक्त था नहीं और गरीब शर्मा परिवार बाईपास मशीन अफोर्ड नहीं कर सकता था। ऐसे हालात में KGMU के डॉक्‍टरों ने धड़कते दिल के साथ ही सर्जरी करने का फैसला किया। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, दुर्लभ सर्जरी सफल रही। मुन्ने लाल शर्मा की जिंदगी बच गई। डॉक्टर्स के मुताबिक, इस तरह के केस में ऐसी सर्जरी शायद पूरे एशिया में पहली बार हुई है।

लखनऊ में हुआ धड़कते दिल का ऑपरेशन
छाती में धंसी रॉड के साथ शर्मा KGMU पहुंचे थे। यहां की ट्रॉमा सर्जरी टीम के लिए केस चैलेंजिंग था। आमतौर पर दिल को चोट वाले ऐसे जटिल मामलों में मरीज के दिल को रोक दिया जाता है और बाईपास हार्ट-लंग मशीन का यूज होता है। इस मामले में मरीज को कार्डियोलॉजी में शिफ्ट करने का समय ही नहीं था। मरीज की माली हालत भी ऐसी नहीं थी कि वह 3 लाख रुपये की मशीन अफोर्ड कर सके। KGMU के ट्रामा सर्जरी यूनिट के डॉक्टर वैभव जायसवाल और डॉक्टर यदुवेंद्र धीर ने नया रास्ता निकाला- बीटिंग हार्ट सर्जरी। डॉ वैभव के मुताबिक, ‘यह जटिल सर्जरी इस तरह के मामले में शायद पूरे एशिया में पहली बार की गई। डॉक्‍टर्स मरीज के धड़कते दिल पर ऑपरेट कर पाए।’

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रॉड निकालने में जरा सी चूक ले लेती मरीज की जान
डॉ धीर ने बताया, ‘रॉड दिल के दोनों चैंबर्स को छेद गई थी, यह चमत्कार ही था कि दिल अब भी धड़क रहा था। एक खतरा था कि अगर हम रॉड निकालते हैं तो भारी मात्रा में खून बहेगा। ऑक्‍सीजेनेटेड और डीऑक्‍सीजेनेटेड खून आपस में मिल जाएगा और मरीज की मौत हो जाएगी। इसलिए हमने रॉड को थोड़ा सा धकेला और पहले लेफ्ट चैंबर बंद किया, फिर दाहिने चैंबर को रिपेयर किया।’

सर्जरी में कुल चार घंटे लगे। डॉक्टरों ने 75 सेंटीमीटर लंबी रॉड का 45 cm हिस्सा काटा ताकि ईको एक्स-रे कर सकें। धीरे-धीरे रॉड को निकालते हुए दिल और फेफड़े को रिपेयर किया गया। इस दौरान शर्मा को सात यूनिट खून भी चढ़ा। सर्जरी सफल रही। मरीज ने अगले तीन दिन वेंटिलेटर पर गुजारे, फिर नौ दिन आईसीयू में रहा।


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