हरियाणा में बीजेपी और कांग्रेस के लिए असल चुनौती तो चुनाव बाद आनी है!

हरियाणा में बीजेपी और कांग्रेस के लिए असल चुनौती तो चुनाव बाद आनी है!
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नई दिल्ली। चुनाव प्रचार शबाब पर हो और पार्टियों में सीएम पद के लिए एक से ज्यादा दावेदार हों। ये बात तो सामान्य है। लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी के भीतर एक से ज्यादा नेता सार्वजनिक तौर पर सीएम पद के लिए अपनी दावेदारी ठोक रहे हों और आलाकमान चुपचाप न सिर्फ इसे देख रहा हो बल्कि बढ़ावा दे रहा हो तो ये बिल्कुल भी सामान्य नहीं है। हरियाणा में ठीक ऐसा ही हो रहा। दोनों ही प्रमुख पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस में ऐसा ही हो रहा। दोनों दलों में कई नेता खुलकर सीएम पद के लिए अपनी दावेदारी जता रहे और आलाकमान इसलिए चुप है कि उसे ऐसे बयानों या दावों से चुनाव में फायदे की उम्मीद है। लेकिन चुनावी फायदे के लिए चुप्पी की ये रणनीति चुनाव बाद दोनों ही पार्टियों के लिए सिरदर्द साबित हो सकती है। चुनाव बीजेपी जीते या कांग्रेस, चुनाव बाद मुख्यमंत्री चुनना आसान नहीं रहने वाला।

अक्सर चुनाव के दौरान पार्टियां मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की सार्वजनिक बयानबाजियों पर लगाम लगाई रहती हैं। उन्हें गुटबाजी का डर सताए रहता है। लेकिन पार्टी खुद की ऐसी बयानबाजियों को हवा दे और अगर हवा न भी दे तो चुप्पी साधे रखे तो ये चौंकाता है। हरियाणा में बीजेपी और कांग्रेस दोनों में ही ऐसा ही हुआ। कांग्रेस को उम्मीद है कि हरियाणा की सत्ता से उसका वनवास इस बार 10 साल बाद शायद खत्म हो जाए। लेकिन पार्टी में मुख्यमंत्री पद के लिए कई दावेदार हैं। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा तो हैं ही, सिरसा से सांसद कुमारी सैलजा भी हैं। गांधी परिवार के बहुत खास माने जाने वाले रणदीप सुरजेवाला भी हैं। दिलचस्प बात ये है कि सैलजा और सुरजेवाला दोनों में से कोई भी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहा। सिर्फ भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही असेंबली इलेक्शन लड़ रहे हैं।

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चुनाव के दौरान हुड्डा, सैलजा या सुरजेवाला की सीएम पद पर दावेदारी को लेकर सार्वजनिक बयानबाजियों पर कांग्रेस की चुप्पी के पीछे रणनीति है। उसे इन बयानों से चुनावी फायदे की उम्मीद है। सैलजा हरियाणा में कांग्रेस की दलित चेहरा हैं। वह भूपेंद्र सिंह हुड्डा की कट्टर प्रतिद्वंद्वी मानी जाती हैं। सिरसा से सांसद सैलजा ने मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी को खुलकर जताया है। बताया जाता है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की 75 से 80 प्रतिशत सीटों पर उन्हें टिकट मिला है, जिन्हें हुड्डा कैंप चाहता था। इस वजह से चुनाव के दौरान सैलजा की नाराजगी की खबरें भी उड़ीं लेकिन उन्होंने अफवाह बताकर खारिज किया।

राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला की नजर भी सीएम की कुर्सी पर है। सैलजा अगर दलित चेहरा हैं तो सुरजेवाला का कैथल और उसके आस-पास के इलाकों में अच्छा-खासा असर माना जाता है। दोनों की सीएम पद के लिए दावेदारी पर कांग्रेस इसलिए चुप है कि उसे उम्मीद है कि इससे दोनों ही नेताओं के समर्थक कार्यकर्ताओं में जोश रहेगा और उस उत्साह का फायदा पार्टी को चुनाव में मिलेगा।

यही कहानी बीजेपी में भी है। पार्टी पहले ही मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की अगुआई में चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है लेकिन केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह और अनिल विज खुलकर मुख्यमंत्री पर की अपनी इच्छा का इजहार कर रहे हैं। बीजेपी आलाकमान इस पर चुप है क्योंकि उसे लगता है कि दोनों नेताओं की सीएम पद को लेकर दावेदारी ठोकने से उनके समर्थकों का उत्साह बढ़ेगा और चुनाव में पार्टी को इसका लाभ मिलेगा। राव इंद्रजीत सिंह अहीर हैं और विज पंजाबी। ये दोनों ही जातियां कम से कम 20 विधानसभा सीटों पर हार-जीत तय करने की क्षमता रखती हैं। इन दोनों नेताओं के जरिए बीजेपी इन दोनों जातियों को साधने की फिराक में है।

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राव इंद्रजीत सिंह का अहिरवाल इलाके में अच्छा-खासा प्रभाव है। दूसरी तरफ अनिल विज राज्य में बीजेपी के सबसे पुराने चेहरे हैं। वह 2014 में भी खुद को सीएम पद के दावेदार के तौर पर पेश कर रहे थे लेकिन बीजेपी आलाकमान ने मनोहर लाल खट्टर को चुना। खट्टर पहला कार्यकाल तो पूरा कर लिए लेकिन दूसरा नहीं। उन्हें बीजेपी ने बीच में ही हटा दिया। पार्टी ने उनके ही खासमखास नायब सिंह सैनी को हरियाणा का सीएम बनाया और अनिल विज की राज्य कैबिनेट से भी छुट्टी हो गई। उसके बाद कुछ दिनों तक विज नाराज भी थे। अब वह खुद को सीएम पद के दावेदार के तौर पर पेश कर रहे हैं।

हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान तकरीबन खत्म हो चुका है। गुरुवार चुनाव प्रचार का आखिरी दिन है। 5 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे और नतीजे 8 अक्टूबर को आएंगे। जीत चाहे कांग्रेस की हो या बीजेपी की, उनकी असली चुनौती तो जीत के बाद शुरू होगी। चुनौती ये कि कौन बनेगा मुख्यमंत्री?


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