ज्ञानवापी में शिवलिंग है या नहीं? साइंस से होगा खुलासा:काशी में वैज्ञानिक जांच के पोस्टर लगे

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वाराणसी में जुमे की नमाज से पहले शहर में एक बात की गली-गली चर्चा हो रही है। अंधरापुल से लेकर कलेक्ट्रेट तक खास पोस्टर लगाए हैं। इसमें मांग की गई है कि ज्ञानवापी में मिली शिवलिंग की आकृति की साइंटिफिक जांच की जाए। इन पोस्टरों की संख्या इतनी ज्यादा है कि पुलिस को इन्हें उखाड़ने में पसीने छूटे जा रहे हैं।

29 सिंतबर को ज्ञानवापी-मां श्रृंगार गौरी केस की सुनवाई के दौरान शिवलिंग की कार्बन डेटिंग कराने का मुद्दा उठा था। शिवलिंग नुमा आकृति वाला पत्थर कब का है? इसे जानने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से जांच और वैज्ञानिक जांच की मांग हिंदू पक्ष ने उठाई थी। इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख 7 अक्टूबर तय कर दी थी। कोर्ट का फैसला आने में अभी 1 हफ्ते का वक्त है। उससे पहले आइए जानते हैं कि किसी चीज पर कार्बन डेटिंग कर उसकी उम्र कैसे पता लगाई जाती है।

कार्बन एक केमिकल एलीमेंट है। इसमें लगभग 3 तरह से मुख्य आइसोटोप्स हैं। तीनों में से 2 आइसोटोप्स C12 और C13 स्थाई होते हैं, जबकि तीसरा आइसोटोप C14 अस्थाई होता है । C14 का निर्माण कॉस्मिक किरणों और आकाशीय बिजली से पृथ्वी के वायुमंडल में होने वाली n-p रियेक्शन की प्रक्रिया के दौरान होता है ।

C14 की मदद से डेटिंग करने के लिए चारकोल जैसे किसी सैंपल का होना जरूरी है,जिसमें C14 उपलब्ध हो। C14 की विशेषता है कि लिए गए सैंपल में यह एक निश्चित रेट के अनुसार डिसइंटीग्रेट होता जाता है और लगभग 5730 ± 40 वर्षों में आधा रह जाता है। वैज्ञानिक डेटिंग के लिए लाए गए सैंपल में पाए गए C14 कार्बन की मात्रा की तुलना डिसइंटीग्रेशन के स्टैंडर्ड रेट से कर के सैंपल की डेट पता करते हैं। इस तकनीक से 50 हजार साल पुरानी वस्तु की उम्र पता की जा सकती है।

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साइंटिफिक डेटिंग के लिए एक्सिलरेटेड मास स्पेक्ट्रोमीट्री यानी AMS, ऑप्टिकल स्टिमुलेटेड ल्युमिनेसेंस यानी OSL और थोरियम-230 डेटिंग का आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जाता है।


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