पहले भी कई बार रैपिड सर्वे के आधार पर ही हुए हैं निकाय चुनाव, इसी के आधार पर दिया गया आरक्षण

पहले भी कई बार रैपिड सर्वे के आधार पर ही हुए हैं निकाय चुनाव, इसी के आधार पर दिया गया आरक्षण
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लखनऊ | निकाय चुनाव के लिए में पिछड़ों को आरक्षण दिए जाने के लिए रैपिड सर्वे को आधार बनाने को लेकर विपक्षी दल भले ही मौजूदा सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। लेकिन, इससे पहले की सरकारों में भी इसी को आधार बनाकर निकाय और त्रिस्तरीय पंचायतों के चुनाव कराए गए थे। अलबत्ता उस दौर में इस तरह से हो-हल्ला नहीं मचा था।

उप्र नगर पालिका अधिनियम-1994 में दी गई व्यवस्था के मुताबिक निकाय चुनाव में पिछड़ों को आरक्षण देने की प्रक्रिया लागू की गई थी। इसी आधार पर 1994 के बाद से 1995, 2000, 2006, 2012 और 2017 में हुए निकाय चुनाव भी रैपिड सर्वे के आधार पर ही कराये गए हैं।

बता दें कि अधिनियम में ही पिछड़ों को आरक्षण देने के लिए रैपिड सर्वे कराने का प्रावधान है। इसके तहत ही प्रत्येक निकायों में पिछड़ों की संख्या जानने के लिए रैपिड सर्वेक्षण कराया जाता है। 2001 में हुई जनगणना के बाद 2005 में हुए पहले निकाय चुनाव में भी अधिनियम के दिए गए प्रावधान के मुताबिक ही रैपिड सर्वे के आधार पर पिछड़ों की सीटों का आरक्षण तय किया गया था। यही प्रक्रिया 2017 के चुनाव में भी अपनाई गई थी।

चूंकि मौजूदा सरकार ने 2017 के निकाय चुनाव के बाद से अब तक कुल 111 नये नगर निकायों का गठन और 130 नगर निकायों का सीमा विस्तार किया है। वहीं अधिनियम में दी गई व्यवस्था और रैपिड सर्वे के संबंध में शासन की ओर से जारी शासनादेश को न्यायालय द्वारा अब तक निरस्त नहीं किया गया है। इसलिए सरकार ने इस चुनाव में भी पूर्व निर्धारित व्यवस्था के आधार पर ही रैपिड सर्वे कराया था और उसके मुताबिक ही पिछड़ी जाति के लिए सीटों का आरक्षण जारी किया था, जिसे कोर्ट ने नहीं माना है।

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