पवार गुटों के ‘विलय’ की चर्चा! आदित्‍य ठाकरे ने की सीएम फडणवीस से मुलाकात

पवार गुटों के ‘विलय’ की चर्चा! आदित्‍य ठाकरे ने की सीएम फडणवीस से मुलाकात
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महाराष्‍ट्र। महाराष्‍ट्र की सियासत में इस वक्‍त सबसे ज्‍यादा बहस इस बात की हो रही है कि क्‍या अजित पवार और शरद पवार के एनसीपी गुट आपस में विलय करेंगे? इन चर्चाओं के बीच उद्धव की शिवसेना के नेता आदित्‍य ठाकरे ने एक बार फिर सीएम देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की है। कुछ दिन पहले भी नागपुर में उद्धव-आदित्‍य ने सीएम से मुलाकात की थी। उसके बाद उद्धव की पार्टी के मुखपत्र सामना में सीएम फडणवीस के कार्यों की तारीफ की गई थी।

मुलाकात के बाद आदित्य ठाकरे ने मीडिया से बात की। उन्होंने कहा, “आज हमने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से बातचीत की और विनती की है कि जो ‘वॉटर फॉर ऑल’ योजना है, जिसे हम लेकर आए थे उस पर वे वापस अमल करें। पिछली सरकार ने इस योजना को ‘स्थगित’ कर दिया था। हम चाहते हैं कि मुंबई के हर घर को पानी मिलना चाहिए।

कामकाज के सिलसिले में मिलने-जुलने में कोई खास बात नहीं है लेकिन पवार परिवार में चल रही हलचल के बीच आदित्‍य ठाकरे की मुलाकात मायने रखती है। दरअसल महाराष्‍ट्र में विधानसभा चुनावों के बाद सभी दल अपने हिसाब से भविष्‍य की राह बुन रहे हैं। दरअसल आने वाले निकाय चुनावों को लेकर सभी दल नए सिरे से तैयारियां कर रहे हैं। वैसे भी महाराष्‍ट्र के जानकार कह रहे हैं क‍ि अब विधानसभा चुनाव के बाद वहां नए सिरे से गठबंधन बना-बिगड़ सकते हैं।

पवार का पावर गेम
एक तरफ एनसीपी को एकजुट करने वाले इस आधार पर पैरोकारी कर रहे हैं कि महाराष्‍ट्र में यदि अजित पवार और शरद पवार की पार्टी का आपस में विलय हो जाए तो उनका वोट प्रतिशत बढ़कर 20% हो जाएगा। इसके साथ ही शरद पवार की पार्टी के 8 लोकसभा और चार राज्‍यसभा सांसद हैं। अजित गुट का एक लोकसभा सदस्‍य है। इन सबके एक साथ आने से केंद्र सरकार में एनसीपी का प्रतिनिधित्‍व होगा। उधर महाराष्‍ट्र में अजित पवार के पास 41 और शरद पवार के पास 10 विधायक हैं। इनके एकजुट होने से डिप्‍टी सीएम अजित पवार का महाराष्‍ट्र में दबदबा बढ़ेगा।

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इसी तरह उद्धव ठाकरे की शिवसेना के भीतर भी मंथन का दौर चल रहा है। पार्टी के कुछ नेता दबे स्‍वरों में राज ठाकरे की महाराष्‍ट्र नवर्निमाण सेना को एक साथ लाने की मांग कर रहे हैं। उनका मकसद ठाकरे परिवार को एकजुट करके शिवसेना की खोई हुई ताकत को फिर से हासिल करना है। एकनाथ शिंदे के अलग होने के बाद उद्धव की पार्टी कमजोर हुई है। उसके पास केवल 20 विधायक हैं। वहीं कुछ नेता कांग्रेस और इंडिया अलायंस से हटने की बात कह रहे हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने के बाद ही शिवसेना अपनी फायरब्रांड हिंदू छवि को हासिल करने में सक्षम हो सकती है। ऐसे लोग इंडिया गठबंधन की जगह एनडीए में जाने के पक्षधर हैं। महाराष्‍ट्र और केंद्र में अगले पांच साल तक कोई चुनाव नहीं होने वाला है। उसको देखते हुए सियासी दल नए सिरे से अपनी तैयारियों में लग गए हैं।


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