वाराणसी में यदुवंशी राम शिक्षा जगत और पर्यावरण के लिए बने मिशाल

वाराणसी में यदुवंशी राम शिक्षा जगत और पर्यावरण के लिए बने मिशाल
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वाराणसी, शहर के दक्षिण ग्रामीणांचल इलाके में बनारस से मीरजापुर तक के सैकड़ों गांव में शिक्षा के क्षेत्र में अलख जगाने वाले और अनुशासन के साथ ही पर्यावरण की मिशाल पेश करने वाले यदुवंशी राम कद के छोटे हैं लेकिन काम बहुत बड़े किए हैं।

महामना से प्रेरित यदुवंशी राम ने अपने जीवन काल में चार विद्यालय जिसमें दो इंटर और दो डिग्री कालेज की स्थापना की जिसमें हर वर्ष सैकड़ों गांव के करीब 12 हजार से ज्यादा बच्चे पढ़ने आते हैं । शिक्षा और अनुशासन के साथ ही ये सभी विद्यालय पर्यावरण के लिए भी बहुत प्रसिद्ध रहा है। यदुवंशी राम का जीवन भले ही गृहस्थ रहा है लेकिन इनके जीवन का सबसे ज्यादा समय स्कूल के विकास या परिसर में ही बीतता था।यदुवंशी राम का पैतृक आवास कांठीपुर और आवास आदित्यनगर में हैं।

शिक्षा से प्रेम के कारण यदुवंशी राम 84 वर्ष की अवस्था में भी नियमित कालेज जातें हैं। स्वास्थ्य और ढलती उम्र भी शिक्षा के प्रेम में रुकावट नहीं बनती है। रिटायरमेंट के करीब 24 साल बीत जाने के बाद भी कभी कभी हिंदी और मनोविज्ञान की क्लास लेते हैं। यदुवंशी राम ने रिटायरमेंट से पहले छात्रों और शिक्षकों की मदद से प्रभा नामक पत्रिका भी प्रकाशित कराए जिसमें विद्यालय के मेधावी छात्र छात्राओं के लेख ,कविता और उनकी कला भी प्रकाशित हुई थी।इनके इकलौते बेटे शैलेन्द्र और बहू मंजू भी शिक्षक हैं । मंजू कान्वेंट विद्यालय चलाती हैं।

बीएचयू के छात्र रहे यदुवंशी राम पंडित मदन मोहन मालवीय जी के जीवन से काफी प्रभावित रहे और सर्वप्रथम इन्होंने 1967 में बच्छांव स्थित महामना मालवीय इंटर कालेज की स्थापना की। यह कालेज क्षेत्र के लिए वरदान सावित हुआ । उस समय आसपास कॉलेज न होने के कारण मीरजापुर तक के बच्चे पढ़ने आते थे।

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इस विद्यालय का अनुशासन क्षेत्र में आदर्श के रूप में बना। इसके बाद अपने पैतृक गांव के पास बढैनी में सरदार पटेल इंटर कालेज की स्थापना 1972 में किए और दोनों विद्यालयों की देखरेख खुद करते रहे । 1997 में रिटायरमेंट के बाद लौह पुरूष सरदार पटेल महाविद्यालय बच्छांव की स्थापना की और इसके बाद 2007 में इन्होंने बढैनी में सरदार पटेल महाविद्यालय की स्थापना की । 1967 से 1997 तक ये प्राचार्य के पद पर रहे और सबसे खास बात रही कि इन्होंने आसपास के गांवों’ में ही नही बल्कि पड़ोसी जिलों से भी विद्यालय के विकास के लिए घूम घूम कर चंदा (दान) के अलावा अपनी कमाई का ज्यादा हिस्सा स्कूलों के विकास में ही लगाए।

बीएचयू में पढ़ाई के दौरान इनको परिसर में लगे पौधे काफी आकर्षित करते थे जिसके कारण इन्होंने इन सभी चारो कॉलेजों में पर्यावरण के लिए बाग बगीचे की अलग पहचान बनाई है और हर वर्ष सैकड़ो नए पौधे लगाते रहे जो आज छाया और फल दे रहे हैं।

पेड़ पौधों की हरियाली के साथ ही यदुवंशी राम को गुलाब से काफी प्रेम था इसलिए हर जगह गुलाब बाग भी आकर्षण का केन्द्र है और बच्चों में भी इसका प्रेम बना रहे इसलिए खुद बगीचे में काम करते जिससे छात्र छात्राएं भी काफी प्रेरित रहते थे। इनसभी चीजों के साथ ही अनुशासन के लिए काफी शख्स रहे जिसकी पूरे क्षेत्र में विद्यालय और खुद की अलग पहचान थी। सादगी भरा जीवन जीने वाले यदुवंशी राम घर के पास ही कुटिया बना रखे थे जहां आसपास हरियाली और गुलाब के ही बगीचे थे ।

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