काशी के 325 साल पुरानी भगवान धन्वंतरि मंदिर धनतेरस पर खुलती है,धन्वंतरि कूप का है महत्व
आज आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि की जयंती है। पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान अमृत हाथ में कलश लेकर भगवान धन्वंतरि अवतरित हुए थे। भगवान धन्वंतरि का काशी से अटूट नाता अनादि काल से रहा है। भगवान विष्णु के अवतार के रूप में धनतेरस के खास अवसर पर उनकी विशेष पूजा होती है।
काशी में मध्यमेश्वर क्षेत्र स्थित महामृत्युंजय महादेव मंदिर में धन्वंतरि कूप है। इसके साथ ही काशी के प्रसिद्ध राजवैद्य रहे स्व. पंडित शिव कुमार शास्त्री के सुड़िया स्थित धन्वंतरि निवास में भगवान धन्वंतरि की 325 साल पुरानी इकलौती अष्टधातु की मूर्ति है।
साल में सिर्फ एक दिन धनतेरस पर श्रद्धालुओं के दर्शन-पूजन के लिए मंदिर के कपाट खुलते हैं। वैद्य पंडित समीर कुमार शास्त्री के अनुसार, आज भगवान धन्वंतरि का दर्शन-पूजन शाम 5 बजे से रात 10 बजे तक होगा।
प्रचलित कथाओं के अनुसार महाभारत काल में राजा परीक्षित को नागराज तक्षक डसने जा रहे थे। वहीं महाराजा परीक्षित को भंगवान धन्वंतरि बचाने जा रहे थे। भगवान धन्वंतरि और नागराज तक्षक की भेंट मध्यमेश्वर क्षेत्र स्थित महामृत्युंजय महादेव मंदिर के परिसर में स्थित प्राचीन कूप के पास हुई।
भगवान धन्वंतरि और नागराज तक्षक ने वहीं अपने-अपने प्रभाव का परीक्षण किया। अपने विष से हरे पेड़ को सुखा देने वाले नागराज तक्षक उस समय दंग रह गए जब उन्होंने देखा कि भगवान धन्वंतरि ने अपनी चमत्कारी औषधि से उसे वापस हरा-भरा कर दिया।
उसी दौरान नागराज तक्षक ने छलपूर्वक भगवान धन्वंतरि की पीठ पर डस लिया, ताकि वह औषधि का लेप वहां न लगा सकें। कहा जाता है कि उसी समय भगवान धन्वंतरि ने अपनी औषधियों की मंजूषा कूप में डाल दी थी, जिसे काशी में धन्वंतरि कूप कहा जाता है।
प्रचलित कथाओं के अनुसार,धरती पर धन्वंतरि कूप की मौजूदगी गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने से पहले की बताई जाती है। यह कुआं अपने आप में बेहद खास है। इसकी बड़ी वजह यह है कि इसमें 8 घाट हैं और प्रत्येक घाट से निकलने वाले पानी का स्वाद अलग है।
पेट में मौजूद किसी भी तरह के रोग से मुक्ति पाने के लिए यदि 41 दिनों तक नियमित रूप से सुबह सूर्योदय के समय इस कूप के पानी का सेवन किया जाए तो पेट की सभी बीमारियों का नाश हो जाता है। मंदिर में आने वाले भक्त दर्शन-पूजन के बाद धन्वंतरि कूप का पानी आज भी पीते हैं।