जौनपुर की इमरती और बनारस की ठंडाई बनेगा विश्व की पहचान

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वाराणसी | जौनपुर की इमरती और बनारस की ठंडई की भी वैश्विक पहचान बनेगी। बड़ा लालपुर स्थित हस्तकला संकुल में जीआई महोत्सव के समापन के मौके पर शुक्रवार को ठंडई, इमरती समेत आठ उत्पादों को पंजीकरण की प्रक्रिया में लाया गया। 20 उत्पादों के एक हजार जीआई अधिकृत उपयोगकर्ता के लिए भी आवेदन किया गया।

पद्मश्री और जीआई विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत के अनुसार आठ नए उत्पादों के जीआई पंजीकरण के लिए महानियंत्रक पंजीकरण के समक्ष आवेदन पत्र दिया गया। इसमें बनारस की ठंडई, जौनपुर की इमरती समेत अन्य राज्यों के उत्पाद शामिल हैं।

समापन के मुख्य अतिथि पेंटेंट डिजाइन एंड ट्रेडमार्क के महानियंत्रक उन्नत पी. पंडित ने कहा कि पेंटेंट डिजाइन एंड ट्रेडमार्क केंद्र मुंबई नए उत्पादों के जीआई पंजीकरण की प्रक्रिया पर कार्य कर रहा है। विशिष्ट अतिथि उपसचिव वित्त, उद्योग अंशु कुमार ने भी यहां विचार व्यक्त किये। बता दें कि जीआई महोत्सव में देश के अलग-अलग शहरों के शिल्पी अपने उत्पादों के साथ काशी आए थे। महोत्सव में पूर्वांचल के उत्पादों की धमक साफ देखते को मिली। प्रयागराज के मूंज वर्क की कला हो या फिर निजामाबाद की ब्लैक पॉटरी या फिर गाजीपुर के वॉल हैंगिंग। इन उत्पादों की लोगों ने खूब सराहना की।

निजामाबाद की ब्लैक पॉटरी पूरे विश्व में अपना अलग स्थान रखती है। इसकी मांग देश के विभिन्न हिस्सों के साथ विदेशों तक है। इस कला ने बड़ा लालपुर में अपनी धमक दिखाई। इसे तैयार करने वाले परिवार के छठवीं पीढ़ी के कारीगर आशीष प्रजापति ने बताया कि ये काम उनके परिवार में पारंपरिक है। जिसके लिए उनके परिवार में आठ लोगों को पुरस्कार भी मिल चुके हैं। सबसे पहले उनके दादा राजेंद्र प्रसाद प्रजापति, पिता राम जतन प्रजापति, माता पुष्पा, बहन वंदना सहित बड़े भाइयों को भी इस कला के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। परिवार में निर्मित उत्पाद दिल्ली, पंजाब, मुंबई के अलावा अमेरिका, इंग्लैंड तक पहुंच बना चुके हैं। विदेशों में अपने उत्पाद की धमक के साथ रामजतन प्रजापति विदेश में वहां के छात्रों को भी इस कला का प्रशिक्षण भी दे चुके हैं। वर्तमान में वह जयपुर स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ क्राफ्ट्स एंड डिजाइन में भी विद्यार्थियों को प्रशिक्षित करने जाते हैं। 

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संकुल में लगा जीआई महोत्सव स्टार्टअप को भी बढ़ावा दे रहा है। प्रयागराज के महेवा क्षेत्र की नसरीन व उनकी मां आयशा इसकी जीती जागती मिसाल है। कुछ सालों पहले अपनी दादी के हाथों से कला सीखने के बाद नसरीन ने इस कला के जरिए उत्पादों को तैयार करना शुरू किया था। आज हाथों की इस कारीगरी को मंच मिल रहा है। मूंज से तैयार होने वाले इस छोटे से स्टार्टअप से आज ये मां बेटी अपनी पहचान बना रहीं हैं। अयोध्या क्या हरिद्वार, इस कला के  कायल दिल्ली तक हैं। हस्तशिल्पी नसरीन बताती है कि मूंज कला एक पारंपरिक कला है जो विशेषतौर से प्रयागराज के नैनी क्षेत्र में की जाती है। महेवा में पली-बढ़ी नसरीन इस कला के प्रचार प्रसार में अहम भूमिका निभा रहीं हैं। नसरीन बताती हैं कि वह आज अनेक युवाओं को इससे जोड़ रहीं हैं और लोग रुचि के साथ उनसे ये काम सीखने आते भी हैं। बताया कि मूंज के ओडीओपी में शामिल होने के बाद से अब हम इससे बेहतर और आधुनिक तरीके से काम कर पा रहे हैं। 


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