बढ़ते प्रदूषण के कारण इन चार बिमारियों से खतरा सबसे अधिक

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नई दिल्ली | राजधानी दिल्ली और एनसीआर सहित उत्तर भारत के कई हिस्सों में वायु प्रदूषण का खतरा लोगों के लिए बड़ी चिंता का कारण बना हुआ है। दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 470 से अधिक बना हुआ है, जिसे विशेषज्ञ बहुत गंभीर मान रहे हैं। इस प्रकार के हवा के संपर्क में रहने कारण कई प्रकार की गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के विकसित होने का खतरा हो सकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, वायु प्रदूषण का गंभीर असर शरीर के कई अंगों पर नकारात्मक रूप में हो सकता है। सामान्यतौर पर प्रदूषण को सिर्फ सांस की बीमारियों तक ही जोड़कर देखा जाता रहा है, पर वास्तव में इसके कारण और भी कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

वायु प्रदूषण के कारण होने वाले दुष्प्रभावों को जानने के लिए किए गए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि खराब वायु गुणवत्ता में लंबे समय तक रहना क्रोनिक और जानलेवा स्वास्थ्य समस्याओं के खतरे को बढ़ाने वाला हो सकता है। वायु प्रदूषण के कारण आंखों, त्वचा पर दिखने वाले प्रारंभिक दुष्प्रभावों के अलावा फेफड़ों और हृदय के साथ न्यूरोलॉजिकल और मानसिक स्वास्थ्य विकारों का भी जोखिम हो सकता है जिसको लेकर सभी लोगों को विशेष सावधानी बरतते रहने की आवश्यकता होती है।

वायु प्रदूषण के कारण फेफड़ों और श्वसन विकारों का खतरा सबसे अधिक देखा जाता रहा है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, प्रदूषण में सांस लेने से हानिकारक तत्व आपके वायुमार्ग से होते हुए फेफड़ो में चले जाते हैं। इसके कारण वायुमार्ग में जलन, सांस की तकलीफ, खांसी, घरघराहट और सीने में दर्द हो सकती है। वायु प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने के कारण फेफड़ों के कैंसर, दिल का दौरा पड़ने, स्ट्रोक का जोखिम भी काफी बढ़ जाता है। प्रदूषण से फेफड़ों को सबसे अधिक प्रभावित होने वाले अंग के तौर पर जाना जाता है।

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फेफड़ों के अलावा वायु प्रदूषण के कारण आंखों पर भी सीधा दुष्प्रभाव हो सकता है। यही कारण है कि प्रदूषित माहौल में जाने से आंखों में खुजली-जलन, लालिमा, दर्द जैसी दिक्कतें होने लगती हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, लंबे समय तक इस प्रकार की दूषित हवा के संपर्क में रहने के कारण कंजक्टिवाइटिस, ग्लूकोमा, मोतियाबिंद और ऐज रिलेटेड मैक्युलर डिजनरेशन (एएमडी) जैसे कई नेत्र रोगों के विकसित होने का खतरा भी बढ़ जाता है।

वायु प्रदूषण को अध्ययनों में न्यूरोलॉजिकल विकारों को भी बढ़ावा देने वाला माना जाता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रदूषित हवा, मस्तिष्क के लिए भी नुकसानदायक हो सकती है। अध्ययन में वायु प्रदूषण के उच्च स्तर में रहने वाले बच्चों की संज्ञानात्मक क्षमताओं में गिरावट की दिक्कत देखी गई है। इसके अलावा वायु प्रदूषण के कारण कई प्रकार के आवश्यक हार्मोन्स का स्राव कम हो जाता है, इसके अलावा यह तंत्रिकाओं की क्षति का भी कारण बनती है। जिसके कारण समय के साथ अल्जाइमर और डेमेंशिया जैसी बीमारियों का जोखिम बढ़ सकता है।

अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि वायु प्रदूषण मस्तिष्क में कई प्रकार के परिवर्तन का कारण बनती है जो मानसिक बीमारियों के जोखिम को भी बढ़ा देती है। ओजोन और वायु प्रदूषण के अन्य घटक, शरीर में सूजन का कारण बनते हैं, जिसे चिंता विकार और गंभीर स्थितियों में अवसाद के खतरे को बढ़ाने वाला माना जाता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि किशोर इन दुष्प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं क्योंकि वे अधिक समय घर से बाहर बिताते हैं। वायु प्रदूषण से बचाव करते रहना सभी उम्र के लोगों के लिए आवश्यक है।

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