दिल्ली में पोस्टिंग को लेकर कैसे पलट गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला,अध्यादेश में किसको अधिकार?
नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में अधिकारों की लड़ाई ने नया मोड़ ले लिया है। अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफर को लेकर दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट में जीत मिली थी,लेकिन करीब 10 दिन बाद ही केंद्र सरकार ने अपने कदम से अदालत के फैसले को उलट दिया है। मतलब ये कि ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की नहीं चलेगी,बल्कि दिल्ली के बॉस एलजी ही होंगे और उनकी अनुमति के बाद ही किसी अधिकारी को हटाया जा सकता है। केंद्र सरकार ने जो अध्यादेश जारी किया है उसके मुताबिक दिल्ली सरकार अधिकारियों की पोस्टिंग पर फैसला जरूर ले सकती है लेकिन अंतिम मुहर एलजी को ही लगानी होगी।
दिल्ली में अधिकारों की लड़ाई लंबी है। अक्सर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच टकराव देखा गया है। इसी महीने देश की सबसे बड़ी अदालत ने इस मामले को सुलझाने वाला आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार के अधिकार तय कर दिए थे। अदालत ने ट्रांसफर और पोस्टिंग पर दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया था। इस फैसले के करीब 10 दिन बाद ही केंद्र सरकार अपना अध्यादेश ले आई है। सरल शब्दों में कहें तो ये अध्यादेश सिर्फ दिल्ली के लिए ही लाया गया है।
अध्यादेश में किसको अधिकार?
अध्यादेश में कहा गया है कि अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के लिए अथॉरिटी बनाई जाएगी,जिसका नाम राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण होगा। इस अथॉरिटी में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अध्यक्ष के रूप में होंगे। उनके अलावा दिल्ली के मुख्य सचिव और प्रमुख गृह सचिव भी शामिल रहेंगे। अहम बात ये ही केजरीवाल भले इसके अध्यक्ष रहेंगे,लेकिन उनके पास पूरी ताकत नहीं होगी। ऐसा इसलिए कि कोई भी फैसला बहुमत के आधार पर तय होगा।
इसे ऐसे समझिए कि दिल्ली सरकार कोई ट्रांसफर करती है तो इस पर केजरीवाल के अलावा मुख्य सचिव और प्रमुख गृह सचिव भी सहमत होने चाहिए। इतना ही नहीं,अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग में अगर कोई विवाद होता है तो दिल्ली के उपराज्यपाल इस पर आखिरी निर्णय लेंगे और वही मान्य होगा। अथॉरिटी का फैसला भी अगर उपराज्यपाल को ठीक नहीं लगा तो पुनर्विचार के लिए उसे वो वापस लौटे सकते हैं। हालांकि अथॉरिटी दूसरी बार भी प्रस्ताव को बिना बदलाव के भेजती है, तो इस स्थिति में उपराज्यपाल को मंजूरी देनी होगी।
अध्यादेश में कहा गया है कि अथॉरिटी उसके अध्यक्ष की मंजूरी से सदस्य सचिव द्वारा तय किए गए समय और स्थान पर बैठक करेगी। अध्यादेश में कहा गया है, ‘अथॉरिटी की सलाह पर केंद्र सरकार जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए इसके (प्राधिकरण के) लिए आवश्यक अधिकारियों की श्रेणी का निर्धारण करेगी और अथॉरिटी के पास किसी अधिकारी और कर्मचारी को भेजेगी। अध्यादेश के अनुसार, वर्तमान में प्रभावी किसी भी कानून के बावजूद राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण ‘ग्रुप-ए’ के अधिकारियों और दिल्ली सरकार से जुड़े मामलों में सेवा दे रहे ‘दानिक्स’ अधिकारियों के तबादले और पदस्थापन की सिफारिश कर सकेगा, लेकिन वह अन्य मामलों में सेवा दे रहे अधिकारियों के साथ ऐसा नहीं कर सकेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए दिल्ली सरकार को ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार दिया था। अदालत ने तय किया था कि प्रशासनिक शक्तियां दिल्ली सरकार के पास रहेंगी, जबकि पुलिस, पब्लिक ऑर्डर और लैंड से जुड़ा अधिकार केंद्र के पास होंगे। कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 239 AA से ये स्पष्ट है कि दिल्ली में चुनी हुई सरकार है और ये लोगों के प्रति जवाबदेह है।
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस भूषण के फैसले पर भी असहमति जताई थी, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग की सारी शक्ति केंद्र सरकार के पास होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यदि लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को अधिकारियों को नियंत्रित करने की शक्ति नहीं दी जाती है, तो जवाबदेही की ट्रिपल चेन का सिद्धांत बेइमानी हो जाएगी। यदि सत्ता को नियंत्रण करने की शक्ति नहीं दी जाती है, तो अधिकारी सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं हो सकते हैं।