सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविधालय में एमएड ने तोडा दम,खतरे में मान्यता
वाराणसी : प्राच्य विद्या का केंद्र संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में अब एमएड ने दम तोड़ दिया है। शिक्षकों के कमी के चलते के पिछले पांच साल से एमएड का सत्र शून्य चल रहा है। नियमानुसार लगातार तीन सत्र शून्य होने पर स्वत: मान्यता समाप्त मानी जाती है। विश्वविद्यालय शिक्षा शास्त्र विभाग की स्थापना 1958 में की गई है। वहीं 1973-74 में एमएम का कोर्स शुरू किया गया।
नेशनल काउंसिल फार टीचर एजुकेशन (एनसीटीई) से बीएड में 100 सीटों व एमएड में 25 सीटों की मान्यता विश्वविद्यालय को मिली थी। वर्ष 2014 में एनसीटीई ने 50 सीटों को एक यूनिट मानते हुए एमएड की 25 सीटों से बढ़ाकर 50 सीट कर दिया। वहीं संस्कृत विवि प्रशासन ने शिक्षकों की कमी के चलते बीएड की 100 सीट (यानी दो यूनिट) से घटा कर 50 कर दी। जबकि तत्कालीन विभागाध्यक्ष ने काशी विद्यापीठ के तर्ज पर एक यूनिट स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रम के तहत संचालित करने का सुझाव दिया था। उधर मानक के अभाव में वर्ष 2018 विश्वविद्यालय ने एमएड का सत्र शून्य कर दिया। इसके बाद विश्वविद्यालय में एमएड में दाखिला नहीं हो रहा है।
शासन ने अध्यापकों के नौ पद सृजित हैं। इसमें एक प्रोफेसर, एक एसोसिएट प्रोफेसर व सात असिस्टेंट प्रोफेसर के पद शामिल है। वर्तमान में दो शिक्षक रह गए हैं। शिक्षक के सात पद रिक्त चल रहे हैं। वहीं प्रो. पीएन सिंह प्रतिनियुक्ति पर आइयूसी-टीई के निदेशक का कार्यभार देख रहे हैं। ऐसे में स्थायी शिक्षक महज एक रह गए हैं।
कुलपति प्रो. हरे राम त्रिपाठी ने बताया कि विश्वविद्यालय में रिक्त अध्यापकों के पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। ऐसे में शिक्षकों की कमी जल्द दूर होने की संभावना है। शिक्षकों का मानक पूरा होते ही एमएड कोर्स फिर से शुरू करने पर विचार किया जाएगा।