मकर संक्रांति 2025 तारीख,दान पुण्य मुहूर्त और महत्व
नई दिल्ली। साल 2025 का आरंभ होने जा रहा है। इसी के साथ नए साल की शुरुआत मकर संक्रांति के पर्व के साथ हो रही है। संक्रांति के पर्व का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। जब भी सूर्य मकर राशि में जाते हैं तो उसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रांति का पर्व देशभर में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। वैसे तो साल भर में 12 संक्रांति आती हैं लेकिन, इन सभी में से मकर संक्रांति का विशेष महत्व बताया गया है। देश के कई अलग-अलग हिस्सों में मकर संक्रांति को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। आइए जानते हैं साल 2025 में कब मनाई जाएगी मकर संक्रांति। साथ ही जानें मकर संक्रांति का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि।
कब है मकर संक्रांति 2025 ?
पंचांग के अनुसार, सूर्य 14 जनवरी को सुबह 8 बजकर 55 मिनट पर धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। ऐसे में मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी 2025 मंगलवार के दिन मनाया जाएगा।
2025 दान पुण्य शुभ मुहूर्त ?
14 जनवरी 2025 मंगलवार के दिन दान पुण्य के लिए सुबह में 7 बजकर 15 मिनट से लेकर 1 बजकर 25 मिनट का समय दान पुण्य के लिए सबसे उत्तम समय रहेगा।
ब्रह्म मुहूर्त में 5 बजकर 27 मिनट से 6 जकर 21 मिनट तक भी स्नान दान पुण्य किया जाता है।
अमृत चौघड़िया सुबह 7 बजकर 55 मिनट से 9 बजकर 29 मिनट तक भी आप दान पुण्य कर सकते हैं।
मकर संक्रांति का महत्व ?
मकर संक्रांति का महत्व काफी ज्यादा है। महाभारत काल में भीष्म पितामह जब बाणों की शैय्या पर लेटे हुए थे तब उन्होंने मकर संक्रांति तब अपने प्राणों को बचाकर रखा था। उन्होंने अपना देह त्यागने के लिए उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा की थी। मकर संक्रांति पर उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए थे। ऐसा मान्यता है कि जो कोई भी मकर संक्रांति यानी उत्तरायण के दिन देह त्यागता है। दरअसल, गीता में बताया गया है कि उत्तरायण के छह महीने में जो शुक्ल पक्ष की तिथि में जो व्यक्ति देह का त्याग करता है वह जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है और मोक्ष का प्राप्त करता है।
इसके अलावा इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव की राशि यानी मकर में पूरे एक महीने के लिए रहते हैं। दरअसल, सूर्य और शनि के बीच शत्रुता के संबंध है। ऐसे में इस दिन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि, इस दिन पिता और पुत्र का मिलन हुआ था।
मकर संक्रांति के दिन ही गंगा सागर में जाकर मिली थीं। दरअसल, गंगा भागीरथ के पीछे पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम में पहुंची इसके बाद सागर में जा मिलीं। इस दिन ही भागीरथ जी ने अपने पूर्वजों के नाम से तर्पण भी किया था।