करोड़पति पिता की बेटी को 10वीं पास से हुआ प्यार:घरवाले से अलग होकर की शादी;आज दूसरी मेयर हैं

करोड़पति पिता की बेटी को 10वीं पास से हुआ प्यार:घरवाले से अलग होकर की शादी;आज दूसरी मेयर हैं
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प्रयागराज। 14 फरवरी यानी वैलेंटाइन-डे। प्यार के नाम पर मनाया जाने वाला एक दिन। आज के दिन हम कहानी लाए हैं एक करोड़पति पिता की ग्रेजुएट बेटी की। जिसको एक 10वीं पास गरीब लड़के से प्यार हो जाता है, लेकिन परिवार को ये रिश्ता एकदम मंजूर नहीं होता। इसलिए दोनों भागकर शादी कर लेते हैं।

इस कहानी में जो लड़का है वो आज योगी सरकार में मंत्री हैं और जो लड़की हैं वो प्रयागराज की मेयर हैं। हम बात कर रहे हैं नन्द गोपाल नंदी और अभिलाषा गुप्ता की। चलिए इनकी पूरी कहानी जानने के लिए 30 साल पीछे चलते हैं…

B.A पास लड़की को 10वीं पास लड़के से हुआ प्यार
कहानी में दो मुख्य किरदार हैं। पहला किरदार है गरीब परिवार में पला-बढ़ा एक लड़का नंद गोपाल नंदी। पिता डाक विभाग में और मां घर में सिलाई-बुनाई का काम करतीं। 5 लोगों का परिवार,जैसे-तैसे दो वक्त की रोटी के पैसे जुट पाते थे। पैसे नहीं थे। इसलिए नंदी ने पढ़ाई के साथ काम शुरू कर दिया। वो होली पर सड़क किनारे गुलाल, तो दिवाली पर पटाखे बेचने लगे। इससे वो जो कुछ पैसे कमाते,उससे अपने परिवार के लिए रोटी का इंतजाम करते। कहानी का दूसरा किरदार हैं अभिलाषा गुप्ता। जो एक करोड़पति परिवार में पली बढ़ीं। पिता ब्रोकर थे,साथ ही बिजनेस भी संभालते थे।

अभिलाषा और नंदी दोनों प्रयागराज के लोहिया पाण्डेय के हाता में वेसेंट नर्सरी स्कूल में पढ़ते थे। घर भी एक ही गली में है। एक-दूसरे से जान पहचान भी थी। आते-जाते कभी मुलाकात हो जाती, लेकिन अब तक दोनों में ना दोस्ती थी ना प्यार। कुछ दिनों बाद स्कूल बदला तो संपर्क छूट गया। अभिलाषा का परिवार उन्हें पढ़ाना चाहता था इसलिए उन्होंने B.A में एडमिशन ले लिया।

एक तरफ अभिलाषा पढ़ाई कर रहीं थीं, वहीं दूसरी तरफ नंदी को घर के हालातों के चलते 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। उन्होंने अब इधर-उधर से पैसे इकट्‌ठा कर एक ब्लैक एंड वाइट टीवी खरीदी। वो लोगों को 50 पैसे में महाभारत दिखाकर कुछ पैसे कमाने लगे। साल 1992, नंदी के पास अब तक कुछ पैसे जमा हो गए, जिससे एक मिठाई की दुकान शुरू की। मिठाई की दुकान से नंदी ने इतने पैसे बना लिए कि वो बिजनेसमैन की तरह सोचने लगे। कुछ दिन बाद थोड़े पैसे और कुछ जुगाड़ से नंदी ने एक ट्रक लिया। साथ में दवाओं की एजेंसी खोलकर काम शुरू किया। साल 1994, नंदी ने अपने रिश्तेदार के साथ मिलकर ईंट-भट्ठे का बिजनेस शुरू किया।

एक दिन नंदी सतना के मैहर देवी मंदिर दर्शन करने पहुंचे। अभिलाषा भी यहां आईं थीं। मंदिर में ही दोनों की दोबारा मुलाकात हुई। यहीं से दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया। दोस्ती हुई, कुछ वक्त गुजरा तो दोनों को एहसास हुआ कि वो एक-दूसरे से प्यार करते हैं। नंदी ने अपने प्यार का इजहार किया, अभिलाषा ने हां कर दी।

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दूध वाले से लेकर घर की नौकरानी तक से भिजवाए लव-लेटर
उस वक्त उनके पास ना मोबाइल थे, ना एक दूसरे से बात करने का कोई और साधन। इसलिए नंदी कभी दूध वाले से तो कभी अभिलाषा के घर में काम करने वाली नौकरानी से लव लेटर भिजवाते। ये सिलसिला करीब दो साल तक चलता रहा। इस बीच दोनों एक-दूसरे के और करीब आ गए। दोनों ने शादी करने का तय किया, लेकिन शादी करना आसान नहीं था। अभिलाषा ब्राह्मण थीं और एक संपन्न परिवार से आती थीं। वहीं नंदी गुप्ता थे और उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। किसी तरह छोटे-छोटे काम कर घर चला रहे थे। अभिलाषा के परिवार को जब इस रिश्ते का पता चला तो उन्होंने शादी से साफ इनकार कर दिया। परिवार नहीं चाहता था कि उनकी बेटी की शादी किसी दूसरी कास्ट में हो। अभिलाषा ने परिवार को मानने की बहुत कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी।

अभिलाषा बताती हैं कि वो एक ऐसा दौर था जब मेरे परिवार को खुद से ज्यादा समाज की फिक्र करनी पड़ती थी। उस वक्त इंटर कास्ट शादियों को गलत मना जाता था। वो बताती हैं कि मेरा परिवार खिलाफ था, लेकिन नंदी का परिवार हमारी शादी की बात से बहुत खुश था। नंदी के परिवार से उन्हें हिम्मत मिली और उन्होंने कोर्ट मैरिज करने का तय किया।

एक छोटे से कमरे में हुई नंदी-अभिलाषा की शादी की रस्में
परिवार को दोनों का मिलना-जुलना बिल्कुल पसंद नहीं था, इसीलिए उन्होंने अभिलाषा को जबलपुर भेज दिया, लेकिन पीछे-पीछे नंदी भी जबलपुर पहुंच गए। आखिरकार जबलपुर कॉफी हाउस में किसी तरह मजिस्ट्रेट को बुलाकर कोर्ट मैरिज की। शादी के बाद अभिलाषा अपने घर वापस आईं। अब तक उनके परिवार को शादी का पता नहीं था।

एक दिन अभिलाषा अपने पेरेंट्स को बिना बताए अपने घर से निकल आईं। नंदी ने अपने रिश्तेदार से गाड़ी ली और अभिलाषा के पास पहुंचे। उसी गाड़ी में उन्हें बैठाकर दोनों विध्यांचल मंदिर पहुंचे। यहां पर दोनों ने मां विंध्यवासिनी का दर्शन किया। फिर वे कार से ही नागपुर रवाना हो गए। वहां नंदी अपने एक दोस्त के पास रहने चले गए। यहीं से शुरू हुआ दोनों की शादीशुदा जिंदगी का सफर।

नंदी छोटे व्यापार करके पैसे बचाते तो अभिलाषा दुकान चलातीं
अभिलाषा और नंदी ने शादी तो कर ली, लेकिन दोनों के पास घर चलाने का कोई साधन नहीं था। आलम यह था कि दो वक्त की रोटी भी बहुत जुगाड़ के बाद नसीब होती थी, लेकिन दोनों ने हार नहीं मानी। नंदी अगर 20 रुपए कमाते तो उसमें से 10 रुपए बचा लेते। इन्हीं बचे हुए पैसों से उन्होंने अपने ईंट-भट्ठे के बिजनेस को आगे बढ़ाया। नंदी की मां की एक छोटी सी दुकान भी थी। अभिलाषा इसी दुकान का काम संभालने में उनकी मदद करतीं। धीरे-धीरे नंदी का बिजनेस सफल होने लगा। अब प्रयागराज के सफल व्यापारियों में उनका नाम आने लगा।

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साल 2007 । नंदी व्यापार देखते तो अभिलाषा अपना घर और दुकान संभालतीं। व्यापार में सफलता मिलने के बाद नंदी ने राजनीति में हाथ आजमाने का सोचा। पार्टी चुनी बसपा। पार्टी के बड़े नेता इंद्रजीत सरोज के पास गए और कहा, “हमको इलाहाबाद शहर दक्षिणी सीट से चुनाव लड़ना है।”

इंद्रजीत बोले, “पहले कभी चुनाव लड़ा है?” नंदी ने कहा, “नहीं, लेकिन अब विधायकी लड़ूंगा।” इंद्रजीत बोले- दो दिन बाद बहन जी आ रही हैं तुमको मिलवाएंगे।

दो दिन बीते, इंद्रजीत नंदी को मायावती के सामने लेकर खड़े हो गए। मायावती ने कहा, “तुमको पता है ना उस सीट पर केशरीनाथ त्रिपाठी बहुत पैसा खर्च करते हैं। तुम कर पाओगे?” नंदी बोले- “हां।” मायावती बोलीं, “कितना खर्च कर पाओगे?” नंदी बोले “केशरीनाथ त्रिपाठी से दोगुना।” मायावती ने इलाहाबाद शहर दक्षिणी से नंदी को टिकट दे दिया। उन्होंने BJP के केशरी नाथ त्रिपाठी को हरा दिया। वैश्य समाज के नेता के रूप में नंदी आगे बढ़े तो मायावती ने इन्हें कैबिनेट मंत्री बना दिया।

अभिलाषा बोलीं, “जब हमला हुआ तो लगा कि मैंने उन्हें खो दिया”
तीन साल बीते, इस बीच दोनों ने अभिलाषा के परिवार को भी मना लिया। अभिलाषा कहती हैं, “नंदी जी ने कभी हार नहीं मानी। खुद को साबित किया। वक्त बीता तो मेरे परिवार ने भी हमारे रिश्ते को एक्सेप्ट कर लिया। पूरे रीति-रिवाज से हमारी शादी भी कराई। अब तो मेरा पूरा परिवार मुझसे ज्यादा नंदी जी को मानता है। अब उन्हें गर्व होता है कि मेरी शादी इनसे हुई।”

12 जुलाई 2010 । अभिलाषा बताती हैं कि अब तक सब अच्छा चल रहा था। हर रोज की तरह नंदी घर से करीब 1 किलोमीटर दूर मंदिर में पूजा करने गए। मंदिर पहुंचकर गाड़ी से उतरे ही थे कि पास खड़ी स्कूटी में रखे बम को रिमोट से उड़ा दिया गया। धुएं का गुबार उठा। धुआं छटा तो नंदी के साथ गए दो लोगों की लाश पड़ी थी। आस-पास मौजूद जानवर दीवारों पर चिपके हुए थे। नंदी का पेट फट गया, आंते बाहर आ गईं। हथेली के चीथड़े उड़ गए। जैसे-तैसे उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया। आठ दिन तक उन्हें होश नहीं आया।

अभिलाषा कहती हैं कि आज भी वो दिन याद करके आंखें भर आती हैं। नंदी की हालत देखकर हमको इनके बचने की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी, लेकिन मैंने अपनी तरफ से कोई कमी नहीं छोड़ी। मैं पूरा दिन इनके पास रहती। उनकी दवाइयों का ध्यान रखती। जैसा डॉक्टर ने बताया था, एकदम उसी तरह से उनकी ड्रेसिंग करती। वो चार महीने तक अस्पताल में रहे। आखिरकार उनकी जान बच गई।

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नंदी ने एक घरेलू महिला को प्रयागराज की मेयर बना दिया
हादसे के बाद जब नंदी पूरी तरह से ठीक हो गए तो उन्होंने राजनीति में वापस आने का तय किया। जब वो वापसी कर रहे थे तो लोगों के बीच खुसुर-फुसुर शुरू हो गई कि क्या नंदी का फिर से वही दम-खम दिखेगा या नहीं। नंदी ने वापसी की। पार्टियां बदलीं, लेकिन नंदी का रुतबा बरकरार रहा।

नंदी एक सफल नेता थे। साथ ही उनके व्यवसाय से लेकर राजनीतिक जीवन में अभिलाषा का पूरा सपोर्ट रहता था। वो उनके लिए वोट मांगने घर-घर जातीं, उनको चुनाव लड़ने में पूरी मदद करतीं, लेकिन अब तक वो खुद राजनीति से दूर रहती थीं। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वो राजनीति में अपना कदम रखेंगीं, लेकिन नंदी ने उन्हें प्रोत्साहित किया और प्रयागराज की प्रथम नागरिक बनाने के लिए चुनावी मैदान में उतारा।

साल 2012 में राजनीति में विपरीत हवा होने के बावजूद अभिलाषा गुप्ता ने मेयर का चुनाव जीत लिया। साल 2017 में दोनों अभिलाषा और नंदी ने बीजेपी जॉइन कर ली। आज अभिलाषा प्रयागराज की मेयर हैं और नन्द गोपाल नंदी योगी सरकार में औद्योगिक विकास मंत्री हैं। अभिलाषा कहती हैं कि उनकी सफलता के पीछे उनके पति नंदी का बहुत बड़ा हाथ है। उन्होंने ही मुझे एक घर का काम संभालने वाली महिला से प्रयागराज की मेयर बना दिया।

ये तो थी नंद गोपाल नंदी और अभिलाषा की प्रेम कहानी। ऐसी ही दो और दिलचस्प प्रेम कहानियां हैं। पहली प्रेम कहानी है अटल बिहारी वाजपेई और राजकुमारी कौल की। ऐसा प्यार जो कभी मुकम्मल नहीं हो पाया। दूसरी प्रेम कहानी है राजीव और सोनिया गांधी की। ऐसा प्यार जो मुकम्मल तो हुआ पर जिंदगी भर साथ नहीं रह पाया।

  1. 80 साल पुरानी अटल की वो लव स्टोरी, जिसमें सब कुछ था बस कोई नाम नहीं
    अटल और राजकुमारी एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। अटल को राजकुमारी अच्छी लगने लगीं। वो भी उन्हें पसंद करती थीं। ये ऐसा दौर था जब लड़के और लड़कियों की दोस्ती को स्वीकार नहीं किया जाता था। इसलिए ये दोनों भी अपने प्यार का खुल कर इजहार करने से डरते थे। जैसे-जैसे दिन बीते, दोनों में इशारों में बातचीत होने लगी, लेकिन प्रेम का इजहार अब तक किसी ने नहीं किया था।

कलम के सिपाही रहे अटल ने एक दिन हिम्मत जुटाई और पन्ने पर अपने दिल का हाल लिख डाला। कॉलेज की लाइब्रेरी में एक किताब के अंदर राजकुमारी के लिए वो लव लेटर रख दिया। राजकुमारी ने वो लेटर पढ़ा, लेकिन अटल को उसका कोई जवाब नहीं मिल सका। अटल बहुत निराश हुए।


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