Ews के नियमों पर होगा अब घमासान

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नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों वाली संवैधानिक बेंच ने सामान्य वर्ग के गरीबों को मिलने वाले 10 फीसदी EWS आरक्षण पर मुहर लगा दी है, लेकिन यह मसला अभी थमता नहीं दिख रहा है। तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी डीएमके का कहना है कि वह इस फैसले के खिलाफ एक बार फिर से पुनर्विचार याचिका डालेगी। फिलहाल शीर्ष अदालत ने जिन अर्जियों पर फैसला दिया है, उनमें से एक याचिका डीएमके की भी थी। अब तमिलनाडु के सिंचाई मंत्री और डीएमके महासचिव ने कहा है कि पार्टी की ओर से फैसले के खिलाफ अर्जी दी जाएगी। उन्होंने कहा कि यह फैसला समानता के सिद्धांत के खिलाफ है और वापस लिया जाना चाहिए।

सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए आरक्षण को मंजूरी के बहाने अब कुछ राजनीतिक दलों ने जातीय जनगणना की चर्चा फिर से शुरू कर दी है। बिहार की सरकार में शामिल आरजेडी ने कहा कि इस फैसले ने हमारी जातीय जनगणना की मांग को वैधता प्रदान की है। पार्टी ने कहा कि ओबीसी वर्ग को उसकी आबादी के अनुपात में अधिक आरक्षण दिया जाना चाहिए। पार्टी नेता मनोज झा ने कहा कि यह बंटा हुआ फैसला है और इसमें पुनर्विचार का स्कोप है। उन्होंने कहा कि इससे इंदिरा साहनी केस में आए उसे फैसले का असर भी खत्म होता है, जिसमें आरक्षण के लिए 50 फीसदी की लिमिट तय की गई थी। अब हमें ओबीसी वर्ग को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण की ओर बढ़ना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने देश में आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने को लेकर बहस तेज की है तो झारखंड सरकार का कहना है कि उसने तो कैबिनेट से पहले ही 77 फीसदी तक के आरक्षण का प्रस्ताव पास किया है। समाजवादी पार्टी ने कहा कि हमने सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए आरक्षण का समर्थन किया था। अब ओबीसी वर्ग की गिनती का काम भी होना चाहिए। बता दें कि बिहार में पहले से ही जातीय जनगणना जारी है। अब आरजेडी की मांग है कि केंद्र सरकार को भी जातीय जनगणना करानी चाहिए। 

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