SC ने अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत तो दी लेकिन सीएम पद से इस्तीफे पर फैसला लेने को भी कह दिया

SC ने अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत तो दी लेकिन सीएम पद से इस्तीफे पर फैसला लेने को भी कह दिया
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नई दिल्ली। दिल्ली के कथित शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सीएम अरविंद केजरीवाल को बड़ी राहत दी। शीर्ष अदालत ने दिल्ली के मुख्यमंत्री को अंतरिम जमानत दे दी। मई में भी कोर्ट ने इसी मामले में चुनाव प्रचार के लिए केजरीवाल को अंतरिम जमानत दी थी। हालांकि,इस बार दिल्ली सीएम तबतक जेल से बाहर नहीं आ पाएंगे जब तक सीबीआई से जुड़े मामले में भी उन्हें जमानत न मिल जाए। यानी अंतरिम जमानत के बाद भी अरविंद केजरीवाल को फिलहाल जेल में ही रहना होगा। शुक्रवार को शीर्ष अदालत ने उन्हें अंतरिम जमानत तो दी लेकिन साथ में ये भी कहा कि वह खुद पर लगे गंभीर आरोपों के मद्देनजर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने को लेकर भी फैसला करें। कोर्ट ने कहा कि वह एक निर्वाचित मुख्यमंत्री को इस्तीफा देने के लिए नहीं कह सकता।

अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली एक्साइज पॉलिसी केस में अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए कई वैधानिक सवाल उठाए हैं। शीर्ष अदालत ने इस याचिका को निपटारे के लिए तीन जजों की बड़ी बेंच को भेज दिया है और याचिका का निपटारा होने तक केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने का फैसला किया है। हालांकि, शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में ये टिप्पणी जरूर की कि किसी मामले में महज पूछताछ की जरूरत का होना गिरफ्तारी का आधार नहीं हो सकता। अंतरिम जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल से यह भी कहा है कि वह अपने पद से हटने पर फैसला लें क्योंकि उन पर गंभीर आरोप लगे हैं। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दिपांकर दत्ता की बेंच ने कहा कि केजरीवाल एक प्रभावशाली पद पर हैं और यह पद संवैधानिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। जस्टिस खन्ना ने कहा कि कोर्ट एक निर्वाचित नेता को पद से हटने का निर्देश नहीं दे सकता, खासकर तब जब वह मुख्यमंत्री के रूप में काम कर रहे हों। उन्होंने कहा कि बेहतर होगा कि केजरीवाल खुद ही कोई फैसला लें। यह दूसरी बार है जब सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को अंतरिम जमानत दी है। इससे पहले 10 मई को भी लोकसभा चुनाव के दौरान कोर्ट ने आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक को प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत दी थी। केजरीवाल ने 2 जून को सरेंडर कर दिया था।

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जस्टिस खन्ना ने कहा कि केजरीवाल अंतरिम जमानत के हकदार हैं। उनके जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार ‘पवित्र’ हैं। वह 90 दिनों से अधिक समय से जेल में हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री को फिलहाल रिहा नहीं किया जाएगा। उन्हें 25 जून को सीबीआई ने एक्साइज पॉलिसी केस में ही भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल द्वारा उठाए गए उन सवालों को एक बड़ी बेंच को भेज दिया जिनमें मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम (पीएमएलए) के तहत गिरफ्तारी की जरूरत और औचित्य पर प्रश्न खड़े किए गए हैं। जस्टिस खन्ना ने कहा कि पूछताछ की जरूरत को पीएमएलए की धारा 19 के तहत गिरफ्तारी का एकमात्र आधार नहीं माना जा सकता है। उन्होंने कहा कि बड़ी बेंच को पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी के लिए विशिष्ट मानदंड तय करने चाहिए।

कोर्ट ने इस बारे में कहा कि पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी फिलहाल जांच अधिकारी के ‘व्यक्तिगत विचार’ पर शुरू की जाती है, जबकि इस कानून की धारा 45 के तहत वैधानिक जमानत देने में अदालत के विवेक का इस्तेमाल होता है। बड़ी पीठ को भेजे गए सवालों में से एक यह भी है कि क्या कोई आरोपी गिरफ्तारी को रद करने के लिए ‘गिरफ्तारी की आवश्यकता और औचित्य’ को एक अलग आधार के रूप में उठा सकता है।

यह फैसला केजरीवाल द्वारा दायर उस याचिका पर आया है जिसमें उन्होंने 21 मार्च को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की तरफ से पीएमएलए के तहत अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी थी। पीठ ने 21 मई को केजरीवाल को पीएमएलए की धारा 45 के तहत नियमित जमानत के लिए अलग से ट्रायल कोर्ट जाने की अनुमति देते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसके बाद, एक विशेष अदालत ने 20 जून को पीएमएलए की धारा 45 के तहत केजरीवाल को वैधानिक जमानत दे दी थी जिस पर बाद में 25 जून को दिल्ली हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी।

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पीएमएलए के तहत जमानत के लिए विशेष अदालत में इस कानून की धारा 45 के तहत आवेदन किया जाता है। जमानत चाहने वाले आरोपी को दो कठिन शर्तों को पूरा करना होता है – पहला यह कि वह पहली नजर में बेगुनाह है और दूसरा यह कि उसके भविष्य में अपराध करने की संभावना नहीं है।

ईडी ने आरोप लगाया है कि केजरीवाल 2022 के गोवा विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार करने के लिए ‘रिश्वत’ के रूप में 100 करोड़ रुपये लिए गए थे। एजेंसी ने दावा किया है कि ये रुपये हवाला ऑपरेटरों के माध्यम से भेजे गए थे और इस घोटाले के पीछे केजरीवाल ही ‘मुख्य साजिशकर्ता’ थे।

केजरीवाल की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि ईडी के पास यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि उनके मुवक्किल को कोई पैसा मिला या गोवा चुनाव प्रचार में इस्तेमाल किया गया। उन्होंने कहा कि केजरीवाल को ईडी द्वारा अगस्त 2023 में मामला दर्ज करने के डेढ़ साल बाद गिरफ्तार किया गया था। उनके पास केजरीवाल के खिलाफ कोई नया सबूत नहीं था, सिवाय पिछले साल जुलाई तक आरोपी से सरकारी गवाह बने लोगों के वे बयान हैं जिनका ‘कोई वजन नहीं’ है। सिंघवी ने पूछा था कि ईडी ने केजरीवाल को गिरफ्तार करने के लिए जुलाई 2023 से मार्च 2024 तक का इंतजार क्यों किया। वरिष्ठ वकील ने ईडी पर केजरीवाल के खिलाफ सबूतों को दबाने का आरोप लगाया था, जबकि उनके जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार दांव पर थे।

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