मैनपुरी में  सपा का प्रचंड जीत                        

मैनपुरी में  सपा का प्रचंड जीत                        
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लखनऊ | समाजवादी पार्टी ने मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव जीत कर सिर्फ अपना गढ़ ही नहीं बचाया है बल्कि भविष्य के सियासी सफर का सबक भी लिया है। इस चुनाव से साफ हो गया कि आपसी एकजुटता और मतदाताओँ को जोड़े रखने की रणनीति ही जीत का रास्ता दिखा सकती है। यहां जिस तरह से संगठन और नेतृत्व की जुगलबंदी दिखी, इसे बरकार रखना होगा। तभी लोकसभा चुनाव 2024 की तस्वीर खुशनुमा बनाई जा सकती है।

पार्टी को आपसी एकजुटता और हर वर्ग केमतदाताओं को जोड़े रखने की रणनीति भी निरंतर बनाए रखनी होगी। मैनपुरी से मिली ऊर्जा का सदुपयोग करते हुए लोकसभा के लिए अभी से तैयारी शुरू करनी होगी।

समाजवादी पार्टी का इतिहास रहा है कि जब भी शीर्ष नेतृत्व और संगठन की जुगलबंदी रही तो पार्टी को बंपर बहुमत मिला। वर्ष 2004 में शिवपाल सिंह प्रदेश अध्यक्ष थे। तब पार्टी को लोकसभा में 39 सीटें मिली थीं। उपचुनाव में यह संख्या बढ़कर 41 हो गईं थी। मैनपुरी में भाजपा के एड़ी चोटी का जोर लगाने के बाद शिवपाल मैदान में उतरे। अखिलेश यादव ने उनका साथ दिया।

हर जाति केनेताओं को पुख्ता रणनीति केतहत उनकी बिरादरी वाले बूथ पर जिम्मेदारी दी गई। हवाई जनसभा के बजाय एक-एक मतदाताओं को मुलायम सिंह यादव के नाम और काम की याद दिलाई गई। नतीजा साफ है कि मतदाताओं ने नेताजी को श्रद्धांजलि दी। डिंपल यादव 2.88 लाख से विजयी रहीं। 

सपा ने घर की सीट बचा ली, लेकिन अब आगे का रास्ता तय करने के लिए उसके सामने कई तरह की चुनौतियां भी हैं। देखना यह होगा कि मैनपुरी की जीत से शीर्ष नेतृत्व मस्त होकर जश्न में डूब जाता है अथवा हर तरह के अहंकार को दूर रख नई शुरुआत करता है। क्योंकि यह वक्त पार्टी केलिए टर्निंग प्वाइंट है। मैनपुरी के चुनाव ने नई ऊर्जा दी है।

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देखना यह होगा कि इस ऊर्जा का शीर्ष नेतृत्व कितना सदुपयोग कर पाता है? इतना ही नहीं यह  चुनाव बताता है कि पूर्व के दिनों में हुए आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में मैनपुरी की तर्ज पर रणनीति अपनाई गई होती तो संभव है कि यह दोनों सीटें सपा के हाथ में रहती। फिलहाल राजनीतिक विष्लेषक मानते हैं कि मैनपुरी में मिले सबक से सीख लेते हुए सपा ने लोकसभा चुनाव में कदम बढ़ाए तो उसे बड़ी कामयाबी मिल सकती है।

खतौली के पश्चिम उत्तर प्रदेश में दिया संदेश

मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा चुनाव में सपा-रालोद और आजाद समाज पार्टी ने संयुक्त रणनीति अपनाई। यहां चुनाव का नेतृत्व रालोद अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह ने किया। इस सीट पर मिली जीत से साफ तौर पर संदेश मिला है कि यह एकजुटता कश्मिा दिखा सकती है। हालांकि रामपुर में शिकस्त मिली है। इसका अंदेशा उसी दिन से था, जब सिर्फ 32 फीसदी मतदान हुआ था।

कौन होगा रामपुर में सपा के भविष्य का चेहरा

समाजवादी पार्टी के लिए रामपुर उपचुनाव में मिली हार केबाद कई तरह की चुनौतियां भी सामने आनी तय है। सपा में पश्चिम उत्तर प्रदेश में मुस्लिम चेहरे केरूप में आजम खां का नाम सर्वोपरि रहा है। सजा सुनाए जाने के बाद आजम खां सीधे तौर पर चुनाव से दूर रहेंगे। उनकी उम्र भी हो चुकी है। सेहत भी ठीक नहीं रहती। पहले सांसद और फिर विधायक पद भी जा चुका है। उनके शागिर्द भी यह पद बचाने में नाकाम रहे। अब्दुल्ला आजम विधायक जरूर है, लेकिन मतदाताओं के बीच उस कदर धमक अभी नहीं है, जो आजम खां की थी। ऐसे में समाजवादी पार्टी के अंदरखाने में यह चर्चा हैकि भविष्य में पश्चिमी  उत्तर प्रदेश में सपा के लिए कौन मुस्लिम चेहरा होगा।

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