कश्मीर पर समर्थन…असद के पतन के बाद अब भारत-सीरिया रिश्तों का क्या होगा?
नई दिल्ली। साल 1957 का था। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अमेरिका जा रहे थे। लेकिन बीच रास्ते में उनका विमान सीरिया की राजधानी दमिश्क में लैंड हुआ। ये ऐतिहासिक लम्हा था। भारत और सीरिया के बीच इससे 7 वर्ष पहले से कूटनीतिक रिश्ते बन चुके थे और इसी दोस्ती की खातिर दमिश्क में एक स्ट्रील को जवाहरलाल नेहरू स्ट्रीट नाम दिया गया।
दशक बदले। कई सियासी तूफान आए और सीरिया में जंग के दौर चले। लेकिन इस दोस्ती पर कोई असर नहीं हुआ। मगर बशर-अल-असद की सरकार गिरने के बाद अब सवाल खड़ा हो गया है कि भारत और सीरिया के नए रिश्तों का भविष्य कैसा होगा?
भारत का खास दोस्त रहा है सीरिया
पहले हफीज-अल-असद और बाद में बशर-अल-असद के राज में सीरिया लगातार अहम मुद्दों पर भारत का समर्थन करता रहा है खासकर कश्मीर के मुद्दे पर। कई मुस्लिम देश कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की चोली पकड़कर खड़े रहते हैं लेकिन सीरिया उन मुट्ठी भर देशों में शामिल है, जो एक सुर में भारत का समर्थन करता है।
असद की सेक्युलर सरकार और भारत के अपने सिद्धांत काफी मिलते-जुलते थे। यही दोनों देशों के मजबूत रिश्तों की नींव रही है।
साल 2019 में जब भारत ने कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाया तो सीरियाई सरकार ने इसे भारत का आंतरिक मसला बताया। उस समय रियाद अब्बास नई दिल्ली में सीरिया के राजदूत थे। उन्होंने भारत का समर्थन करते हुए कहा था, ‘हर सरकार को अपने लोगों की सुरक्षा के लिए अपनी ज़मीन पर कुछ भी करने का अधिकार है। हम किसी भी कार्रवाई में हमेशा भारत के साथ हैं।’
मगर अब तो सरकार गिर गई…
बशर अल-असद के पतन के बाद अब सीरिया में चरमपंथी समूहों फिर से फन उठा सकते हैं, जिससे भारत के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। जब ISIS की ताकत चरम पर थी तब सीरिया ने रूस और ईरान के समर्थन से इस आतंकी संगठन का प्रभाव काफी हद तक खत्म कर दिया था। लेकिन अब कट्टरपंथी समूह फिर से बिलों से निकल सकते हैं, जिसका प्रभाव मध्य पूर्व से कहीं आगे तक हो सकता है।
भारत के लिए आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठनों का उभार सुरक्षा चुनौतियां पैद कर सकता है। वर्तमान राजनीतिक उथल-पुथल पर भारत ने शांति लाने के लिए ‘सीरिया के नेतृत्व वाली’ प्रक्रिया का अनुरोध किया है।
भारत का कूटनीतिक
भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के तहत संघर्ष के लिए सीरिया की अगुआई वाले समाधान का लगातार समर्थन किया है। सीरिया के गृहयुद्ध के चरम के दौरान भी भारत ने दमिश्क में अपना दूतावास बनाए रखा है।
भारत ने ऐतिहासिक रूप से गोलान हाइट्स पर सीरिया के दावों का समर्थन किया है – जिसका इज़राइल विरोध करता है। 2010 में, पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने दमिश्क का दौरा किया और उस रुख को दोहराया।
तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने कहा था, ‘भारत ने हमेशा सभी अरब उद्देश्यों का समर्थन किया है। मैं संयुक्त राष्ट्र के प्रासंगिक प्रस्तावों के आधार पर मध्य पूर्व समस्या के स्थायी और व्यापक शांति के लिए भारत के अटूट समर्थन को दोहराना चाहूंगी। मैं सीरिया के गोलान हाइट्स पर वैध अधिकार और सीरिया को उसकी शीघ्र और पूर्ण वापसी के लिए हमारे मजबूत समर्थन को भी दोहराना चाहूंगी।’
दोनों देशों के आर्थिक और सांस्कृति रिश्ते
कूटनीति तो चलती रहती है। लेकिन भारत-सीरिया के रिश्ते आर्थिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर भी जुड़े हुए हैं। साल 2003 में तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने सीरिया का दौरा कर बायोटेक्नोलॉजी, छोटे उद्योग और शिक्षा को लेकर एमओयू साइन किए थे। भारत ने दमिश्क में बायोटेक्नोलॉजी सेंटर के लिए 25 मिलियन डॉलर का लोन और 1 मिलियन डॉलर का ग्रांट दिया था।
2008 में बशर अल-असद ने भारत का दौरा किया, जहां उन्होंने कृषि सहयोग और सीरिया के फॉस्फेट संसाधनों पर स्टडी की योजनाओं का समर्थन किया। भारत ने सीरिया में एक आईटी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित करने की पेशकश की। पिछले साल, पूर्व विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने बशर अल-असद से मुलाकात की और द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा की थी।
दोनों देशों के बीच कारोबारी रिश्ते भी फले-फूले हैं। भारत सीरिया को टेक्सटाइल्स, मशीनरी और दवाइयां भेजता है। जबकि सीरिया से रुई और रॉक फॉस्फेट जैसे रॉ मटीरियल्स भारत आते हैं।