इस्लाम में हज क्यों है इतना अहम,जन्नत के पत्थर को चूमने और शैतान को पत्थर मारने की परंपरा के मायने क्या हैं?

इस्लाम में हज क्यों है इतना अहम,जन्नत के पत्थर को चूमने और शैतान को पत्थर मारने की परंपरा के मायने क्या हैं?
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नई दिल्ली। हर साल मक्का में दुनिया भर के लाखों मुस्लिम हज करने के लिए इकट्ठा होते हैं। इस बार हज 26 जून से शुरू होकर 1 जुलाई को खत्म होगा। हर साल हज के लिए करोड़ों मुस्लिम ( पुरुष और महिला) इकट्ठा होते हैं। इस बार 1 करोड़ मुसलमान हज करने जाएंगे।

पिछले कुछ सालों की ही तरह इस इस साल भी कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए हज करने की इजाजत दी गई है। कोविड का टीका भी अनिवार्य कर दिया गया है। हालांकि, कोरोना वायरस महामारी के बाद 2020 में केवल 10,000 तीर्थयात्री हज करने गए थे।

2021 में 58,700 तीर्थयात्री हज पर गए। 2022 में करीब 1 करोड़ तीर्थयात्री हज पर गए।

हज 2023 को लेकर क्या है नियम?
सऊदी अरब की ग्रैंड मस्जिद और पैगंबर मस्जिद के जनरल प्रेसिडेंसी ने मेडिकल मास्क पहनना अनिवार्य बताया है। हज और उमराह मंत्रालय ने हाल ही में हज के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए हैं।

मंत्रालय के ट्वीट के मुताबिक बिना लपेटा हुआ और बंधा हुआ सामान, प्लास्टिक की थैलियां,कपड़े से लिपटा सामान औऱ ज्यादा वजन न लाने का निर्देश दिया गया है। कोविड टीकाकरण जरूरी है।

मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए हज यात्रा बेहद जरूरी मानी जाती है,ये इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। इस्लाम के मुताबिक अल्लाह की मेहर पाने के लिए जीवन में एक बार हज यात्रा पर जाना बेहद जरूरी है। हज हर उस मुस्लिम पर फर्ज हैं जो शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम हैं।

हर साल हज जाने के लिए एक तीर्थयात्री को करीब 4 लाख का खर्च आता है। सरकारी निकाय हज कमेटी ऑफ इंडिया (एचसीआई) (जो लगभग 70% तीर्थयात्रियों की यात्रा की व्यवस्था करता है) के मुताबिक साल 2022 में प्रति व्यक्ति 3,99,500 रुपये का खर्च आया था। ऐसे में सवाल ये है कि आखिर इतना पैसा खर्च करके तीर्थयात्री मक्का क्यों जाते हैं, और इतनी बड़ी तादाद में ये तीर्थयात्री वहां जाकर करते क्या हैं।

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दरअसल इस्लाम की बुनियाद पांच स्तंभ या फर्ज पर टिकी है।
शहादाह (आस्था )- शहादा (शहादाह) एक ईश्वर (अल्लाह) और उसके दूत में विश्वास करना है।
सलात (प्रार्थना)- रोजाना नमाज पढ़ना इस्लाम की बुनियाद है।
ज़कात (दान)- गरीबों को दान देना।
रोजा (उपवास)- मन और आत्मा की शुद्धि के लिए रोजा रखना।
हज (तीर्थयात्रा)- इस्लाम के बाकी ‘फर्जों’ के इतर हज को जीवन में एक बार करना फर्ज बनाया गया है।
इनमें नमाज (सलात) और रोजा रखना तो सभी मुसलमानों के लिए अनिवार्य है। इनमें कोई छूट नहीं है। लेकिन जकात और हज में थोड़ी छूट दी गई है। जकात (दान) वही लोग दे सकते हैं जिनके पास धन-दौलत हो। इसी तरह हज उन लोगों के लिए जरूरी है जो शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम हैं। उनका जिंदगी में कम से कम एक बार हज करना फर्ज है।

हज क्या है और कैसे हुई थी इसकी शुरुआत
हज सऊदी अरब के मक्का शहर में होती है। मक्का शहर में ही काबा है,जिसकी तरफ मुंह करके दुनियाभर के मुसलमान नमाज पढ़ते हैं। काबा वह इबादत की इमारत है जिसे अल्लाह का घर कहा जाता है। ये काले पत्थर से बनी एक संरचना है।

इस्लाम धर्म की मान्यताओं के मुताबिक़,पैग़ंबर इब्राहिम को अल्लाह ने एक तीर्थस्थान बनाकर समर्पित करने के लिए कहा था।

अल्लाह के हुक्म के बाद पैंगबर इब्राहिम और उनके बेटे इस्माइल ने पत्थर की एक छोटी सी इमारत बनाई थी. इसी को क़ाबा कहा गया। बाद के वक्त में धीरे-धीरे लोगों ने यहां अलग-अलग ईश्वरों की पूजा शुरू कर दी।

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मुसलमानों का ऐसा मानना है कि इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद (570-632 ई.) को अल्लाह ने कहा कि वो क़ाबा को पहले जैसी स्थिति में लाएं और वहां केवल अल्लाह की इबादत होने दें।

साल 628 में पैगंबर मोहम्मद ने अपने 1400 अनुयायियों के साथ एक यात्रा शुरू की थी। ये इस्लाम की पहली तीर्थयात्रा बनी और इसी यात्रा में पैग़ंबर इब्राहिम की धार्मिक परंपरा को फिर से स्थापित किया गया। इसी को हज कहा जाता है।

तब से शुरू हुई ये परंपरा आज भी जारी है। हर साल दुनियाभर के मुस्लिम सऊदी अरब के मक्का में हज के लिए पहुंचते हैं. हज पांच दिन में पूरा होता है और ये ईद उल अज़हा यानी बकरीद के साथ पूरी होती है।

पांच दिनों में हज के दौरान क्या करते हैं मुस्लिम
हज लंबी और कठिन प्रक्रिया है। ऐसी रस्में होती हैं जो पूरे नियम के साथ पूरी की जाती हैं। हज के लिए अहम पांच पड़ाव होते हैं।

सभी हाजी इसी दिन 7 बार की परिक्रमा के दौरान काबा के पूर्वी कोने में लगे एक छोटे से काले पत्‍थर को चूमते हैं। इस पत्‍थर को मुसलमान बेहद अहम मानते हैं। मान्यता है कि यह काला पत्थर आदम और हव्वा के समय का है। भीड़ ज्यादा होने पर मुस्लिम इस पत्थर की तरफ मुंह करके दुआ मांगते हैं।

अराफात की पहाड़ी
दूसरे दिन यात्री अराफात की पहाड़ी पर पहुंचते हैं। अराफात की पहाड़ी पर जाना जरूरी है. नहीं तो हज अधूरा माना जाता है। अराफात की पहाड़ी को जबाल अल-रहम भी कहा जाता है। पैगंबर हजरत मुहम्मद ने अपना आखिरी प्रवचन इसी पहाड़ी पर दिया था।

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शैतान को पत्थर मारना और कुर्बानी देना
हज के तीसरे दिन बकरीद होती है। इसी दिन कुर्बानी दी जाती है,लेकिन इससे पहले यात्री मीना जाकर शैतान को तीन बार पत्थर मारते हैं। ये पत्थर जमराहे उकवा, जमराहे वुस्ता व जमराहे उला जगहों पर बने तीन अलग-अलग स्तंभों पर मारे जाते हैं।

बता दें कि कुर्बान किया गया जानवर गरीबों या जरूरतमंदों में बांटे दिए जाने का नियम है।

चौथे दिन एक बार फिर शैतान को पत्थर मारने की रस्म होती है।

पांचवा दिन
अगले यानी पांचवे दिन भी ये रस्म होती है। दिन ढलने से पहले हाजी मक्का की तरफ बढ़ जाते हैं।

छठा दिन: हलक या तक्सिर–मक्का लौट कर सभी हाजी हज के छठे और ज़िल हिज्जा के 12 वें दिन अपने बाल कटवाते हैं। पुरुष अपने बालों को पूरी तरह से ट्रिम करते हैं। महिलाएं उंगलियों की लंबाई तक अपने बालों को ट्रिम कर सकती हैं।

किन-किन देशों से लोग मक्का आते हैं?
सऊदी में हज के लिए पूरी दुनिया के देशों से लोग आते हैं। इंडोनेशिया से आने वाले हाजियों की संख्या सबसे ज्यादा है। इसके बाद पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, नाइजीरिया का नंबर आता है। इसके अलावा ईरान, तुर्की, मिस्त्र, इथियोपिया समेत कई देशों से हज यात्री आते हैं..


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