नई दिल्ली। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुमानों से पता चलता है कि साल 2027 तक भारत जर्मनी और जापान को पीछे छोड़कर अमेरिका और चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन सकता है। भारत फिलहाल दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। अब ब्रिटेन भी भारत से पीछे हो गया है। लेकिन सवाल ये है कि भारत के अमेरिका जैसा आर्थिक महाशक्ति बनने में कितने साल लगेंगे।
आईएमएफ के एक रिपोर्ट ने साल 2027 तक जापानी और जर्मन अर्थव्यवस्था के 5.2 ट्रिलियन डॉलर और 4.9 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ने की संभावना जताई है, जबकि भारत साल 2027 तक 5.4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा जो पीएम मोदी के 5 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य से भी अधिक है। वहीं 2027 तक, चीनी और अमेरिकी अर्थव्यवस्थाओं के $26.44 ट्रिलियन और प्रत्येक $30.28 ट्रिलियन तक बढ़ने की संभावना है।
रिपोर्ट में कहा गया कि भारत के लिए साल 2027 तक जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ना बहुत बड़ी चुनौती नहीं होगी। असली चुनौती है सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बनना।
सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कब और कैसे बनेगा भारत
कोरोना महामारी से पहले साल यानी साल 2014 से 19 तक भारत की डॉलर के संदर्भ में औसत वार्षिक वृद्धि दर लगभग 6.8% थी। जबकि अमेरिका में 4 प्रतिशत और चीन में 6.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। अब अगर भारत इसी दर से आगे बढ़ता रहा, तो उसे दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने में लगभग 400 साल लग जाएंगे।
पोस्ट-कोविड यानी साल 2021-22 में भारत 9.2% की दर से बढ़ा। इस दर पर, भारत को विश्व की शीर्ष अर्थव्यवस्था बनने में लगभग 650 साल लग जाएंगे।
आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार महामारी से भारत की अर्थव्यवस्था बाहर निकल चुकी है और आने वाले वित्तीय वर्ष 2023-24 में अर्थव्यवस्था के 6% से 6.8% के मध्य बढ़ने की उम्मीद है।
2047 तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए, भारत को हर साल 14 फीसदी की दर से बढ़ने की जरूरत है।
भारत की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने अपने एक रिसर्च पेपर में दावा किया है कि वित्त वर्ष 2023-24 में भारत की जीडीपी विकास दर का अनुमान फिलहाल 6.7 फीसदी से 7.7 फीसदी तक है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में तमाम अनिश्चितताओं के माहौल के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए 6 फीसदी से 6.5 फीसदी की वृद्धि ‘न्यू नॉर्मल’ है। आने वाले दिनों में भारत को अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर फायदा मिल सकता है। इसका एक कारण ये भी है चीन नए निवेश के मामले में धीमा पड़ रहा है।
तमाम चुनौतियों को पछाड़ रही है भारत की इकोनॉमी
आईएमएफ के आंकड़ों के अनुसार भारत और ब्रिटेन की इकोनॉमी को डॉलर में देखें तो मार्च की तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था 854.7 अरब डॉलर थी। जबकि ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था 816 अरब डॉलर थी। यही आंकड़ा कहता है कि भले ही दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं मंदी और महंगाई की मार से झेल रही हो, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था तेज रफ्तार से आगे बढ़ रही है।
क्या है भारत के लिए वर्तमान चुनौतियां
भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी कई चुनौतियों का सामना कर रही है. इनमें रुपये में गिरावट और अमेरिका की ब्याज दरों में और बढ़ोतरी का आशंका है।
चुनौतियों के बावजूद आगे बढ़ा भारत
बीबीसी की एक रिपोर्ट में शेयर बाजार पर नज़र रखने वाली कंपनी केडिया कैपिटल के रिसर्च प्रमुख अजय केडिया कहते हैं कि भारत ने कोरोना महामारी और रूस यूक्रेन युद्ध के बावजूद भी अपने देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाना जारी रखा। ऐसा होना यह साबित करता है कि भारत सही दिशा में है।
सबसे बड़ी बात ये है कि जहां पहले दुनिया भर में भारत की छवि एक विकासशील या पिछड़े देश के रूप में थी, वहीं अब भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। भारत ने पिछले दस सालों में जो कदम उठाए हैं उसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर साफ नजर आ रहा है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ा हुआ है। 90 के दशक में भारत के पास सीमित मुद्रा भंडार था लेकिन आज भारत विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में चौथे नंबर पर हैं।”
अजय ने आगे कहा, ‘दुनिया की वर्तमान स्थिति देखें तो पाएंगे कि फिलहाल पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्थाओं में गिरावट हैं। जिसका सीधा सीधा लाभ भारत को हुआ है। हां ये जरूर है कि भारत की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है। लेकिन तब भी प्रति व्यक्ति आय के मामले में पश्चिमी देशों के स्तर तक पहुंचने में अभी बहुत वक्त लगेगा।”
भारत में बढ़ी है आर्थिक असमानता
साल 2022 के एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के श्रम पोर्टल पर साढ़े सत्ताइस करोड़ लोगों ने अपना पंजीकरण किया है। जिसमें से 94 प्रतिशत लोगों ने बताया है कि वह हर महीने दस हज़ार रुपए से भी कम कमाते हैं।
अजय कहते हैं, ‘हमारे देश की अर्थव्यवस्था तो जरूर प्रगति कर रही है लेकिन इसका फायदा सभी को समान रूप से नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा कि श्रम पोर्टल कहता है कि पंजीकरण करवाने वाले 94 प्रतिशत लोग महीने का 10 हजार भी नहीं कमा पाते। ऐसे में बढ़ रही महंगाई को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि उनकी आमदनी गिरी है। एक तरफ जहां बढ़ती महंगाई में असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे मज़दूरी की ख़रीद क्षमता और कम हो गई हो जाती है तो वहीं दूसरी तरफ हमारे अरबपतियों की दौलत बहुत तेज़ी से बढ़ रही है।