पहले पाकिस्तान,फिर श्रीलंका और अब बांग्लादेश…

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नई दिल्ली। पाकिस्तान,श्रीलंका और बांग्लादेश में तख्तापलट का काला इतिहास रहा है। ये तीनों देश दक्षिण एशिया के महत्वपूर्ण देश हैं और इन तीनों में ही इतिहास में कई बार तख्तापलट हुए हैं। इन देशों में राजनीतिक दलों के बीच गहरा मतभेद और अविश्वास अक्सर तख्तापलट का कारण बनता है। इन तीनों ही देश में हमेशा सेना का दबदबा रहा है। बांग्लादेश में इस वक्त तख्तापलट की यही तस्वीर देखने को मिल रही है। प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देकर भारत में शरण लेनी पड़ी है। अब बांग्लादेश सेना के हाथों में है। आइये आपको बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान में हुए तख्तापलट के बारे में बताते हैं।

पहले बात करते हैं उन कारणों के बारे में जिसकी वजह इन देशों को तख्तापलट का दंश झेलना पड़ता है। सबसे कारण गंभीर आर्थिक संकट है। आर्थिक संकट के चलते लोग सरकार के खिलाफ हो जाते हैं और सेना या अन्य समूह सत्ता हथियाने का प्रयास करते हैं। इन देशों में धार्मिक और जातीय तनाव भी तख्तापलट का कारण बनता रहा है। कभी-कभी बाहरी देश भी इन देशों की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप करते हैं और तख्तापलट को बढ़ावा देते हैं।

विकास पर लग जाता है ब्रेक
तख्तापलट के कारण इन देशों का विकास हमेशा प्रभावित हुआ है। तख्तापलट से राजनीतिक अस्थिरता बढ़ती है और देश का विकास रुक जाता है। तख्तापलट से अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है और विदेशी निवेश कम हो जाता है। तख्तापलट के दौरान अक्सर मानवाधिकारों का हनन होता है। तख्तापलट से समाज में विभाजन बढ़ता है और सामाजिक सद्भाव बिगड़ जाता है।

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पाकिस्तान की बात करें तो वहां सैन्य तख्तापलट आम रहे हैं। यहां सेना ने कई बार सत्ता हथियाई है। श्रीलंका में भी तख्तापलट हुए हैं, लेकिन यहां सैन्य तख्तापलट की तुलना में राजनीतिक संकट अधिक आम रहे हैं। तख्तापलट का ताजा घटनाक्रम बांग्लादेश में देखने को मिल रहा है। बांग्लादेश में सैन्य तख्तापलट कम हुए हैं, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट की समस्या के कारण कई बार हालात बुरे हुए हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है।

बांग्लादेश तख्तापलट
बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर लोग सड़कों पर हैं। आरक्षण के मुद्दे पर देश में बीते एक माह से बवाल जारी है। अब नौबत यह आ गई है कि देश की जनता ने सिस्टम को चुनौती दे दी है। लोगों का विरोध और बढ़ती हिंसा को देखते हुए प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपने पद से इस्तीफा देकर देश छोड़ना पड़ा है। अभी तक की रिपोर्ट्स कह रहीं हैं कि हालात पर काबू पाने के लिए सेना ने खुद हसीना से इस्तीफा मांगा था। बांग्लादेश ने पहले भी तख्तापलट देखा है।

1975 का तख्तापलट
बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान की हत्या और उनकी सरकार का तख्तापलट 15 अगस्त 1975 को हुआ। सेना के अधिकारियों ने तख्तापलट कर उन्हें सत्ता से हटा दिया। इसके बाद, मेजर जनरल जियाउर रहमान ने सत्ता संभाली और बांग्लादेश को एक सैन्य शासन ने संभाला।

1981 का प्रयास
जियाउर रहमान की हत्या 1981 में हुई, जिसके बाद सेना के कुछ अधिकारियों ने सत्ता पर कब्जा करने का प्रयास किया। हालांकि, यह प्रयास सफल नहीं हुआ और बांग्लादेश में चुनावों के माध्यम से लोकतांत्रिक व्यवस्था की वापसी हुई। 1990 में बांग्लादेश में एक बड़े नागरिक आंदोलन ने तत्कालीन सैन्य शासन को समाप्त कर दिया और लोकतांत्रिक सरकार की वापसी की दिशा बनाई।

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1958 का पहला तख्तापलट
1958 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने जनरल आयूब खान को सेना का प्रमुख नियुक्त किया और फिर संविधान को निलंबित कर दिया। इसके बाद आयूब खान ने 1958 में तख्तापलट किया और पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने। उन्होंने एक सैन्य शासन लागू किया और 1962 में नया संविधान पेश किया, जो राष्ट्रपति की शक्तियों को बढ़ाता था।

1969 – दूसरा तख्तापलट
1969 में पाकिस्तान के जनरल आयूब खान ने सत्ता से इस्तीफा दिया और जनरल याह्या खान ने सत्ता संभाली। याह्या खान ने एक और सैन्य शासन लागू किया और 1970 में आम चुनाव आयोजित किए। जिसके बाद पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) ने खुद को आजाद कर लिया।

1977 – तीसरा तख्तापलट
1977 में पाकिस्तान के जनरल जिया उल हक ने प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार को हटाते हुए तख्तापलट किया। भुट्टो को गिरफ्तार किया गया और बाद में मौत की सजा दे दी गई। जिया उल हक ने देश में एक कठोर इस्लामी कानून लागू किया और 1988 में उनकी मृत्यु तक सत्ता में बने रहे।

1999 – चौथा तख्तापलट
1999 में पाकिस्तान के जनरल परवेज मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार को हटाते हुए तख्तापलट किया। मुशर्रफ ने देश में सैन्य शासन लागू किया और खुद को राष्ट्रपति घोषित किया। 2001 में, उन्होंने अमेरिका के साथ आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में सहयोग किया। 2008 में, उन्होंने इस्तीफा दिया और लोकतांत्रिक सरकार की वापसी हुई।

श्रीलंका में सरकार को हिलाने की कोशिश
अब बात करते हैं श्रीलंका की.. श्रीलंका में पाकिस्तान और बांग्लादेश की तुलना में तख्तापलट की घटनाएं कम हुई हैं। 1962 में श्रीलंका में सेना ने तख्तापलट का प्रयास किया था। सैन्य अधिकारियों और कुछ नागरिक अधिकारियों ने उस समय के प्रधानमंत्री श्रीमती श्रीमावो भंडारनायके की सरकार को हटाना की कोशिश की थी। यह प्रयास विफल रहा और कई अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया।

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2000 के दशक में राजनीतिक संकट
श्रीलंका में सैन्य तख्तापलट की कोई प्रमुख घटना नहीं हुई। लेकिन देश में 1980 और 1990 के दशक के दौरान बड़ी राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता देखने को मिली। श्रीलंका के नागरिक युद्ध (1983-2009) ने देश में कई राजनीतिक संकट पैदा किए। जिसमें तमिल टाइगर्स (LTTE) द्वारा चलाए गए विद्रोह और सरकार के बीच हिंसक संघर्ष शामिल थे।

संविधान संशोधन विवाद
2018 में राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने अचानक प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को नया प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया। यह कदम बड़े विवाद और विरोध का कारण बना। सुप्रीम कोर्ट ने सिरीसेना के इस निर्णय को असंवैधानिक घोषित कर दिया और विक्रमसिंघे को फिर से प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया।


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