पिता का शव मुर्दाघर में पड़ा है और बेटा सुप्रीम कोर्ट में,मामला सुनकर जज भी हैरान रह गए
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में आज एक ऐसा मामला सामने आया जब जजों को भी कहना पड़ गया कि हमें अफसोस है। दरअसल, कोर्ट को यह देखकर दुख हुआ कि छत्तीसगढ़ के एक गांव में रहने वाले शख्स को पिता के शव को ईसाई रीति-रिवाजों के अनुसार दफनाने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा। अधिकारी इस मुद्दे को सुलझाने में नाकाम रहे। न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ रमेश बघेल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
याचिकाकर्ता ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के एक आदेश को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने उसके पादरी पिता के शव को गांव के कब्रिस्तान में ईसाइयों को दफनाने के लिए निर्धारित स्थान पर दफनाने की इजाजत न देते हुए याचिका निस्तारित कर दी थी।
आज पीठ ने कहा, ‘किसी व्यक्ति को जो किसी विशेष गांव में रहता है, उसे उसी गांव में क्यों नहीं दफनाया जाना चाहिए? शव सात जनवरी से मुर्दाघर में पड़ा है। यह कहते हुए अफसोस हो रहा है कि एक व्यक्ति को अपने पिता के अंतिम संस्कार के लिए उच्चतम न्यायालय आना पड़ा। हमें अफसोस है कि न तो पंचायत, न ही राज्य सरकार या उच्च न्यायालय इस समस्या को हल कर सके। हम उच्च न्यायालय की टिप्पणी से हतप्रभ हैं कि इससे कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा होगी। हमें यह देखकर दुख हो रहा है कि एक व्यक्ति अपने पिता को दफनाने में असमर्थ है और उसे उच्चतम न्यायालय आना पड़ रहा है।’
ईसाइयों के लिए कब्रिस्तान नहीं…
बघेल ने अदालत को बताया कि ग्रामीणों ने पिता के शव को दफनाने का कड़ा विरोध किया और पुलिस ने उन्हें कानूनी कार्रवाई की धमकी दी थी। सुनवाई की शुरुआत में राज्य सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को सूचित किया कि उक्त गांव में ईसाइयों के लिए कोई कब्रिस्तान नहीं है और उस व्यक्ति को गांव से 20 किलोमीटर दूर दफनाया जा सकता है।
बघेल का पक्ष रखने के लिए अदालत में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि राज्य द्वारा प्रस्तुत हलफनामे से स्पष्ट होता है कि याचिकाकर्ता के परिवार के अन्य सदस्यों को गांव में ही दफनाया गया है। गोंजाल्विस ने हलफनामे का हवाला देते हुए कहा कि मृतक को दफनाने की अनुमति नहीं दी जा रही है, क्योंकि वह ईसाई था।
मेहता ने कहा कि मृतक का बेटा आदिवासी हिंदुओं और आदिवासी ईसाइयों के बीच अशांति पैदा करने के लिए शव पैतृक गांव के कब्रिस्तान में दफनाने पर अड़ा हुआ है। गोंजाल्विस ने इस दलील का विरोध करते हुए कहा कि यह ईसाइयों को बाहर निकालने के आंदोलन की शुरुआत है। मेहता ने कहा कि इस मुद्दे पर भावनाओं के आधार पर निर्णय नहीं लिया जाना चाहिए और वह इस मामले पर विस्तार से बहस करने के लिए तैयार हैं।
मेहता द्वारा समय मांगे जाने पर शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 22 जनवरी के लिए स्थगित कर दी। ग्राम पंचायत के सरपंच ने प्रमाण पत्र जारी किया था कि गांव में ईसाइयों के लिए अलग से कोई कब्रिस्तान नहीं है। इस आधार पर उच्च न्यायालय ने मृतक के बेटे को पिता का शव उक्त गांव के कब्रिस्तान में दफनाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था और कहा कि इससे आम जनता में अशांति और असामंजस्य पैदा हो सकता है। पादरी की वृद्धावस्था की वजह से मौत हुई थी। बघेल ने दावा किया है कि छिंदवाड़ा गांव में एक कब्रिस्तान है जिसे ग्राम पंचायत ने शवों को दफनाने और अंतिम संस्कार के लिए मौखिक रूप से आवंटित किया है।