नेपाल के बाद फ्रांस में बवाल: आर्थिक नीति के खिलाफ सड़कों पर उतरी जनता

नेपाल के बाद फ्रांस में बवाल: आर्थिक नीति के खिलाफ सड़कों पर उतरी जनता

पेरिस/फ्रांस : नेपाल में हाल ही में हुई आर्थिक अस्थिरता और विरोध प्रदर्शनों के बाद अब फ्रांस में भी जनता सड़कों पर उतर आई है। फ्रांस सरकार की कठोर आर्थिक नीतियों के खिलाफ ‘ब्लॉक एवरीथिंग’ (Bloquons Tout) नामक अभियान के तहत देशभर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। पेरिस, मार्सिले, बोर्डो और अन्य शहरों में प्रदर्शनकारियों ने सड़कों को अवरुद्ध कर दिया है, जबकि पुलिस और जनता के बीच हिंसक झड़पें देखने को मिल रही हैं। आगजनी, तोड़फोड़ और आंसू गैस का इस्तेमाल आम हो गया है।

फ्रांस में यह आंदोलन सोशल मीडिया से शुरू हुआ, जो 2018 के ‘येलो वेस्ट’ (Gilets Jaunes) प्रदर्शनों की याद दिला रहा है। इसमें कोई केंद्रीय नेतृत्व नहीं है, लेकिन ट्रेड यूनियनों (जैसे CGT) ने इसका समर्थन किया है। 10 सितंबर को ‘सब कुछ रोक दो’ का नारा देकर जनता ने बड़े पैमाने पर हड़ताल और अवरोध की योजना बनाई। आज सुबह से ही प्रमुख शहरों में प्रदर्शन तेज हो गए। पेरिस में प्रदर्शनकारियों ने पुलों, ट्राम लाइनों और सड़कों को कचरा डिब्बों और बैरिकेड्स से अवरुद्ध कर दिया। मार्सिले और मॉंटपेलियर में आग लगाने की कोशिशें हुईं, जबकि नांतेस में पुलिस ने आंसू गैस और वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया। पेरिस में हेलीन-बुशर हाई स्कूल के पास पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईं। 200 से अधिक गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। प्रदर्शनकारी बड़े रिटेल स्टोर्स (जैसे कार्फूर, अमेजन) का बहिष्कार कर रहे हैं और बैंक से नकदी निकालकर लेनदेन शुल्क कम करने की अपील कर रहे हैं। मार्सिले में सड़कें अवरुद्ध हैं, पुलिस ने बैटन और आंसू गैस से भीड़ को तितर-बितर किया। रेन और बोर्डो में रिंग रोड पर आग लगाई गई, ट्रेन स्टेशन और हाईवे पर अवरोध पैदा किया गया। इंटीरियर मिनिस्ट्री के अनुसार, 80,000 पुलिसकर्मी तैनात हैं, जो 100,000 प्रदर्शनकारियों को संभालने के लिए तैयार हैं। गृह मंत्री ब्रूनो रिटेल्यू ने ‘कोई अवरोध या हिंसा बर्दाश्त नहीं’ कहा है। अब तक 200 से ज्यादा गिरफ्तारियां हुई हैं, और कई पुलिसकर्मी घायल हैं। ट्रांसपोर्ट, स्कूल, हॉस्पिटल और एयरपोर्ट प्रभावित हैं। 18 सितंबर को ट्रेड यूनियनों की एक और बड़ी हड़ताल की योजना है, जो रेल और स्वास्थ्य सेवाओं को ठप कर सकती है।

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फ्रांस की वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता 2024 से चली आ रही है, जब राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन की सरकार ने संसदीय चुनावों में बहुमत खो दिया था। इसके बाद मिशेल बार्नियर और फिर फ्रांस्वा बेयरू के नेतृत्व में अल्पमत सरकारें बनीं, लेकिन दोनों ही बजट विवादों में गिर गईं। 8 सितंबर 2025 को बेयरू सरकार ने संसद में विश्वास मत हार लिया, जिसमें 364 सांसदों ने विरोध किया। राष्ट्रपति मैक्रॉन ने 9 सितंबर को सेबेस्टियन लेकोर्नू को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया, लेकिन इससे पहले ही आर्थिक नीतियों के खिलाफ गुस्सा भड़क चुका था। सरकार का 2026 का प्रस्तावित बजट 43.8 अरब यूरो की कटौती पर आधारित है, जिसमें सार्वजनिक अस्पतालों में 5.5 अरब यूरो की बचत शामिल है। पेंशन फ्रीज, दो सार्वजनिक छुट्टियों (8 मई और ईस्टर मंडे) को रद्द करने और सार्वजनिक सेवाओं में कटौती से आम जनता में असंतोष है। फ्रांस का सार्वजनिक ऋण जीडीपी का 114% है, जो यूरोपीय संघ के 3% घाटे की सीमा से कहीं अधिक है। प्रदर्शनकारी ‘पैसे मजदूरी के लिए, युद्ध के लिए नहीं’ जैसे नारों के साथ मैक्रॉन की ‘ऑस्टरिटी’ (कुशासन) नीतियों का विरोध कर रहे हैं।

नेपाल में हाल ही में आर्थिक नीतियों (महंगाई, कर वृद्धि) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए थे, जहां सड़कें अवरुद्ध और पुलिस से टकराव देखा गया। फ्रांस का यह बवाल भी उसी तरह का लगता है—आर्थिक असमानता और सरकारी कटौती से प्रभावित मध्यम वर्ग और मजदूर वर्ग सड़कों पर हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह यूरोप में बढ़ते आर्थिक संकट (मुद्रास्फीति, ऋण) का संकेत है, जो फार-राइट पार्टियों (जैसे नेशनल रैली) को मजबूत कर सकता है ।

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नए प्रधानमंत्री लेकोर्नू को संसद में बहुमत जुटाना होगा, अन्यथा नई चुनाव हो सकते हैं। प्रदर्शनकारियों की मांगें—निष्पक्ष कर, पेंशन सुरक्षा और सार्वजनिक सेवाओं में निवेश—पूरी न होने पर बवाल लंबा खिंच सकता है। फ्रांस की अर्थव्यवस्था पहले ही कमजोर है; फिच जैसे एजेंसियां क्रेडिट रेटिंग डाउनग्रेड की चेतावनी दे रही हैं।

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