हनुमत राम के परम दासा | सच्ची भक्ति और समर्पण का अनुपम प्रतीक
“हनुमत राम के परम दासा” — यह पंक्ति उस शाश्वत भक्ति की झलक है, जो हनुमान जी ने अपने आराध्य श्रीराम के चरणों में अर्पित की थी। हनुमान जी केवल शक्ति और साहस के प्रतीक नहीं, बल्कि विनम्रता और सेवा भाव के भी मूर्त रूप हैं। उन्होंने प्रभु श्रीराम की सेवा में अपने तन, मन और प्राण तक अर्पित कर दिए। यह भाव हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति वही है, जिसमें अपने स्वार्थ, अहंकार और इच्छाओं का त्याग कर केवल ईश्वर की इच्छा को स्वीकार किया जाए। इस पवित्र भाव से ही जीवन में शांति, श्रद्धा और प्रेम का संचार होता है।

( हनुमत चरनन की रज दे दो पवन कुमार,
जाहि बिधि चाहे कीजिए हम सब का उद्दार। )
हनुमत राम के परम दासा,
पूरी करे सारी अभिलाषा……
राम है जहां वहां हनुमाना,
पवनपुत्र हे कृपा निधाना,
राम हनुमान एक प्रेम भाषा,
हनुमत राम के परम दासा,
पूरी करे सारी अभिलाषा……
सिया का पता हनुमत ने किया,
राम की मुद्रिका सिया को दिया,
राम को बताई सिया की निराशा,
हनुमत राम के परम दासा,
पूरी करे सारी अभिलाषा……..
भाव से पूजन या स्मरण विधि
- दिन और समय: मंगलवार या शनिवार को प्रातःकाल या संध्या समय सर्वोत्तम है।
- स्थान: स्वच्छ स्थान पर हनुमान जी और श्रीराम जी का चित्र स्थापित करें।
- सामग्री: लाल फूल, दीपक, गुड़-चना, तुलसी पत्ता और सिंदूर रखें।
- प्रारंभ: “जय श्रीराम” और “जय हनुमान” तीन बार उच्चारित करें।
- भजन या जप: श्रद्धा से “हनुमत राम के परम दासा” भजन या मंत्र का जप करें।
- भावना रखें: मन में यह अनुभव करें कि आप भी हनुमान जी की तरह प्रभु श्रीराम की सेवा में समर्पित हैं।
- समापन: अंत में प्रणाम कर कहें — “हे हनुमान जी, मुझे भी आपके समान निष्ठा और सेवा का भाव प्रदान करें।”
इस भक्ति से मिलने वाले लाभ
- भक्ति में गहराई: हनुमान जी की तरह दृढ़ आस्था और समर्पण की भावना जागृत होती है।
- संकट निवारण: जीवन के भय और कठिनाइयाँ समाप्त होती हैं।
- आत्मबल और विनम्रता: शक्ति के साथ विनम्रता का संतुलन स्थापित होता है।
- मानसिक शांति: भक्ति के मार्ग पर मन को सुकून और संतोष मिलता है।
- ईश्वर के प्रति एकाग्रता: मन संसार से हटकर प्रभु के चरणों में स्थिर होता है।
निष्कर्ष
“हनुमत राम के परम दासा” का भाव हमें यह सिखाता है कि सच्चा भक्त वही है जो अपने आराध्य की सेवा में स्वयं को भूल जाता है। हनुमान जी ने जो समर्पण श्रीराम के प्रति दिखाया, वही भक्ति का सर्वोच्च उदाहरण है। जब हम उनके इस भाव को अपने जीवन में अपनाते हैं, तो हमारा अहंकार मिटता है और भक्ति का प्रकाश भीतर जल उठता है। हनुमान जी का नाम लेने से साहस मिलता है, और श्रीराम का स्मरण जीवन में आनंद भर देता है।

