कौन मेरी नैया पार उतारे | प्रभु पर अटूट विश्वास और समर्पण का प्रतीक
“कौन मेरी नैया पार उतारे” यह भक्ति भाव से भरा हुआ विचार है, जो उस पल को व्यक्त करता है जब जीवन रूपी सागर में मनुष्य भटक जाता है और उसे केवल प्रभु का सहारा नजर आता है। जब संसार के सारे उपाय निष्फल हो जाते हैं, तब भक्त अपने ईश्वर की शरण में जाकर शांति और समाधान पाता है। यह भाव हमें यह सिखाता है कि प्रभु ही हमारे जीवन के सच्चे सारथी हैं, जो हर कठिनाई में हमारी नैया पार लगाते हैं। इस भाव से जुड़ना, आत्मिक शांति और भक्ति दोनों का अनुभव कराता है।

बिन तुम्हारे कौन उबारे
कौन नैया मेरी पार उतारे
कौन खेवे पतवार
मेरी नैया पड़ी मझधार
भटक गई नाव
खो गया है किनारा
कैसे संभलूं कोई ना सहारा
तुम जो आए ना तारणहार
कौन खेवे पतवार
मेरी नैया पड़ी मझधार
बिन तुम्हारे कौन उबारे…
बंधन में अपने जकड़ लिया है
मोह माया ने पकड़ लिया है
स्वयं का बुना जाल है
जीवन हुआ बेहाल है
कौन काटे बंधन इसके
सिवा तुम्हारे भरतार
कौन खेवे पतवार
मेरी नैया पड़ी मझधार
बिन तुम्हारे कौन उबारे…
अधम जान मुझे ना ठुकराओ
ठाकुर मेरे मुझे हृदय लगाओ
सुध बुध मेरी अब है लौटी
जिन्दगी रह गई बहुत ही छोटी
होगा क्या पछताने से राजीव
सब गंवाया तूने बेकार
कौन खेवे पतवार
मेरी नैया पड़ी मझधार
बिन तुम्हारे कौन उबारे…
अब भी है वक्त सम्भल जा
प्रभु की राह में निकल जा
बड़े दयालु हैं बड़े कृपालु
तुझे भी कर देंगें निहाल
जा शरण में उनकी चला जा
भाव भक्ति का मन में धार
कौन खेवे पतवार
मेरी नैया पड़ी मझधार
बिन तुम्हारे कौन उबारे…
प्रभु के प्रति समर्पण और प्रार्थना की विधि
- समय: सुबह सूर्योदय के बाद या शाम आरती के समय।
- स्थान: घर के पूजास्थल या नदी किनारे शांत स्थान।
- सामग्री: दीपक, जल, पुष्प, तुलसीपत्र, चंदन और फल।
- पूजन क्रम:
- दीपक जलाकर प्रभु को स्मरण करें और मन में कहें — “हे प्रभु, मेरी नैया आपके भरोसे है।”
- “राम नाम”, “हनुमान चालीसा” या “गायत्री मंत्र” का पाठ करें।
- अंत में जल अर्पण करें और प्रार्थना करें कि जीवन के हर तूफ़ान में प्रभु आपका मार्गदर्शन करें।
- भाव: पूजा करते समय हृदय में पूर्ण श्रद्धा और समर्पण रखें, यह मानते हुए कि प्रभु ही आपके रक्षक और मार्गदर्शक हैं।
प्रभु की शरण में आने से मिलने वाले वरदान
- मन में शांति, विश्वास और साहस का संचार होता है।
- भय, चिंता और असमंजस दूर हो जाते हैं।
- निर्णय लेने की क्षमता और आत्मबल बढ़ता है।
- जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक जागृति आती है।
- प्रभु कृपा से कठिन परिस्थितियों से पार पाने की शक्ति प्राप्त होती है।
निष्कर्ष
“कौन मेरी नैया पार उतारे” यह पंक्ति हमें याद दिलाती है कि ईश्वर ही हमारे जीवन के सच्चे पतवार हैं। जब हम अपने मन का बोझ प्रभु को समर्पित कर देते हैं, तो जीवन का हर सागर शांत और सुरक्षित लगने लगता है। प्रभु पर अटूट विश्वास ही सबसे बड़ा सहारा है, जो हर तूफ़ान में हमें संभाल लेता है।

