थोड़ा देता है या ज़्यादा देता है | हर दान में छिपा है प्रभु का आशीर्वाद
“थोड़ा देता है या ज़्यादा देता है” — यह भाव उस सच्चे भक्त का है जो अपने ईश्वर के हर निर्णय को आभारपूर्वक स्वीकार करता है। भक्ति का अर्थ सिर्फ माँगना नहीं, बल्कि जो मिला है उसके लिए धन्यवाद देना है। भगवान चाहे कम दें या अधिक, उनका दिया हर उपहार हमारे कल्याण के लिए होता है। जब मनुष्य यह समझ लेता है कि ईश्वर की मर्ज़ी में ही उसकी भलाई है, तब जीवन में शिकायत की जगह संतोष और शांति का भाव आ जाता है।

थोड़ा देता है या ज्यादा देता है,
हमको तो जो कुछ भी देता भोला देता है,
थोड़ा देता है या ज्यादा देता है,
हमको तो जो कुछ भी देता भोला देता है,
थोड़ा देता है…………
हमारे पास जो कुछ भी है,
इसी की है मेहरबानी,
हमेशा भेजता रहता,
कभी दाना कभी पानी,
थोड़ा देता है या ज्यादा देता है,
हमको तो जो कुछ भी देता भोला देता है,
थोड़ा देता है…………
हमेशा भूखे उठते हैं,
कभी भूखे नहीं सोते,
भला तक़लीफ़ हो कैसी,
हमारे भोले के होते,
थोड़ा देता है या ज्यादा देता है,
हमको तो जो कुछ भी देता भोला देता है,
थोड़ा देता है………
दिया जो भोले बाबा ने,
कभी कर्जा नहीं समझा,
दयालु भोले ने हमको,
हमेशा अपना ही समझा,
थोड़ा देता है या ज्यादा देता है,
हमको तो जो कुछ भी देता भोला देता है,
थोड़ा देता है……
हमने बनवारी हरदम ही,
बड़े अधिकार से माँगा,
ख़ुशी से इसने दे डाला,
जो भी दातार से माँगा,
थोड़ा देता है या ज्यादा देता है,
हमको तो जो कुछ भी देता भोला देता है,
थोड़ा देता है…………
थोड़ा देता है या ज्यादा देता है,
हमको तो जो कुछ भी देता भोला देता है,
थोड़ा देता है या ज्यादा देता है,
हमको तो जो कुछ भी देता भोला देता है,
थोड़ा देता है………
कृतज्ञता भाव से ईश्वर की उपासना
- प्रातःकाल स्नान के बाद दीपक जलाकर ईश्वर को प्रणाम करें।
- किसी भी देवता या अपने आराध्य का स्मरण करें।
- उनका धन्यवाद करें — चाहे मनोकामना पूरी हुई हो या नहीं।
- “जो तू दे प्रभु, वही स्वीकार” यह भाव मन में रखें।
- भक्ति गीत या आरती गाएँ जो आभार और प्रेम का भाव जगाएँ।
- दिनभर सेवा, विनम्रता और सच्चाई के साथ कर्म करें।
आभारभाव से प्राप्त होने वाले फल
- मन में शांति और संतोष का भाव विकसित होता है।
- जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बनता है।
- ईश्वर के प्रति विश्वास और भक्ति गहराती है।
- अहंकार और असंतोष स्वतः समाप्त हो जाते हैं।
- हर परिस्थिति में आनंद और कृतज्ञता की भावना बनी रहती है।
निष्कर्ष
“थोड़ा देता है या ज़्यादा देता है” — यह पंक्ति हमें सिखाती है कि भगवान की कृपा को गिनती में नहीं तोलना चाहिए। जो भी मिलता है, वह उसी का प्रेम और आशीर्वाद है। जब हम हर हाल में “धन्यवाद प्रभु” कहते हैं, तब जीवन का हर क्षण मधुर बन जाता है। सच्ची भक्ति वही है जो देने में नहीं, बल्कि पाने के भाव में कृतज्ञता खोजती है। इसलिए, हर सुबह मुस्कुराकर कहो — “प्रभु, तू जो भी देता है, वही मेरे लिए सर्वोत्तम है।”

