जीना सिखाया भोलेनाथ जी | शिव की भक्ति से जीवन का सच्चा अर्थ
“जीना सिखाया भोलेनाथ जी” यह भाव उस कृतज्ञता को दर्शाता है जो एक भक्त अपने भगवान के प्रति महसूस करता है।
भोलेनाथ केवल विनाश के देव नहीं, बल्कि ज्ञान, प्रेम, संयम और करुणा के प्रतीक हैं। उनकी भक्ति हमें सिखाती है कि जीवन का अर्थ केवल सफलता या भोग नहीं, बल्कि त्याग, सादगी और सत्य का पालन है। जो व्यक्ति शिव का स्मरण करता है, वह हर परिस्थिति में संतुलित रहना सीखता है — चाहे सुख हो या दुख, वह मुस्कराकर जीवन को स्वीकार करता है।

तुम्हे दिल में बसाया तुम्हे अपना बनाया,
तूने जीना सिखाया भोलेनाथ जी,
तूने जीना सिखाया भोलेंनाथ जी…….
गाड़ी दिलवाई तूने घर बनवाया,
मैंने उस घर में तेरा मंदिर बनाया,
मन के मंदिर में मैंने तुमको बिठाया,
तुम्हे दिल में बसाया,
तुम्हे अपना बनाया,
तूने जीना सिखाया भोलेंनाथ जी,
तूने जीना सिखाया भोलेंनाथ जी…….
तेरे ही नाम का तिलक लगाऊं,
तिलक लगाऊं तेरी भक्ति बढ़ाऊं,
शिव शिव रट तेरी अलख जगाऊँ,
तुम्हे दिल में बसाया,
तुम्हे अपना बनाया,
तूने जीना सिखाया भोलेंनाथ जी,
तूने जीना सिखाया भोलेंनाथ जी……….
यहाँ हर गली में बसता शिवा है,
बच्चा हो बूढ़ा हो सब भजता शिवा है,
डम डम डमरू बजायो रे भोलेबाबा,
तुम्हे दिल में बसाया,
तुम्हे अपना बनाया,
तूने जीना सिखाया भोलेंनाथ जी,
तूने जीना सिखाया भोलेंनाथ जी……..
तुम्हे दिल में बसाया,
तुम्हे अपना बनाया,
तूने जीना सिखाया भोलेनाथ जी,
तूने जीना सिखाया भोलेंनाथ जी….
विधि
- प्रातःकाल स्नान कर शिवलिंग के समक्ष दीपक और धूप जलाएँ।
- गंगाजल, बेलपत्र, पुष्प और दूध अर्पित करें।
- शांत मन से यह भाव बोलें — “जीना सिखाया भोलेनाथ जी।”
- ॐ नमः शिवाय मंत्र का 108 बार जप करें।
- अंत में प्रार्थना करें — “हे महादेव, मुझे संयम, सादगी और करुणा से जीवन जीना सिखाएँ।”
शिव भक्ति के जीवनदायी फल
- मन शांत और स्थिर होता है, जिससे निर्णय क्षमता बढ़ती है।
- क्रोध, अहंकार और लोभ से मुक्ति मिलती है।
- जीवन में धैर्य, प्रेम और करुणा का भाव जागृत होता है।
- शिव कृपा से मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है।
- भक्त हर परिस्थिति में आनंद और संतुलन महसूस करता है।
निष्कर्ष
“जीना सिखाया भोलेनाथ जी” केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि जीवन का दर्शन है। जब हम शिव की भक्ति को हृदय से अपनाते हैं, तो हम हर परिस्थिति में धैर्य, प्रेम और सहजता से रहना सीखते हैं। भोलेनाथ हमें यह समझाते हैं कि सच्चा सुख बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि भीतर की शांति और संतोष में है। जो व्यक्ति शिव की राह पर चलता है, वह जीवन को न केवल जीना, बल्कि सार्थक रूप से समझना भी सीख जाता है।

