सतगुरु नाल प्रिती नूं लगा लै बंदया | सच्चे गुरु से प्रेम ही जीवन का सच्चा मार्ग

“सतगुरु नाल प्रिती नूं लगा लै बंदया” यह वाक्य हमें भक्ति और मार्गदर्शन का वास्तविक अर्थ समझाता है। जीवन में कई बार इंसान दिशाहीन हो जाता है, पर जब उसे सतगुरु का सान्निध्य मिलता है, तो उसका जीवन एक नई दिशा पकड़ता है। सतगुरु वही है जो अज्ञान के अंधकार में ज्ञान का दीपक बनता है। यह भाव हमें सिखाता है कि सच्चे गुरु से प्रेम करना, उनका आदर और मार्गदर्शन स्वीकार करना, जीवन के हर मोड़ पर हमारा सहारा बनता है।

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सतगुरु नाल प्रिती नूं लगा लै बंदया
नाम जप मुक्ति नूं पा लै बंदया

कच्चा भांडा इक दिन फूट जाऐगा
अंत वेले माण तेरा टूट जाऊगा
ओदी सच्ची जोत नूं जगा लै बंदया
नाम जप मुक्ति नूं पा लै बंदया

सतगुरु नाल प्रिती नूं लगा लै बंदया
नाम जप मुक्ति नूं पा लै बंदया

पंज चोर जेड़े तेरे अंदर वस्दे
पापां वाला राह तैनूं नित दसदे
ऐनां कोलों जिंद नूं छुड़ा लै बंदया
नाम जप मुक्ति नूं पा लै बंदया

सतगुरु नाल प्रिती नूं लगा लै बंदया
नाम जप मुक्ति नूं पा लै बंदया

झूठी मोह माया नाल प्यार पा लया
सच्चा नाम सतगुरु दा भुला लया
ओदे सच्चे नाम नूं तूं ध्या लै बंदया
नाम जप मुक्ति नूं पा लै बंदया

सतगुरु नाल प्रिती नूं लगा लै बंदया
नाम जप मुक्ति नूं पा लै बंदया

चंगे कम कर सतगुरु नू तू धार लै
स्वांस स्वांस विच ओदा तू नाम ध्या लै
जीवन नू तू सफल बना लै बंदया
नाम जप मुक्ति नू पा लै बंदया

सतगुरु नाल प्रिती नूं लगा लै बंदया
नाम जप मुक्ति नूं पा लै बंदया

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भाव से भक्ति या स्मरण विधि

  1. दिन: गुरुवार या पूर्णिमा का दिन विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
  2. स्थान: अपने घर के शांत कोने या गुरु की तस्वीर/चरणचिह्न के सामने दीपक जलाएँ।
  3. सामग्री: फूल, चंदन, दीपक, धूप, और मिठाई का प्रसाद रखें।
  4. प्रारंभ: “ॐ गुरुदेवाय नमः” या अपने गुरु का नाम 11 बार जपें।
  5. पूजन: फूल अर्पित करते हुए मन में कहें — “हे सतगुरु, आप ही मेरे जीवन के सच्चे मार्गदर्शक हैं, मेरी बुद्धि को ज्ञान से प्रकाशित करें।”
  6. आरती करें: श्रद्धा से गुरु की आरती करें और उनके उपदेशों का स्मरण करें।
  7. समापन: कुछ पल मौन रहकर अपने सतगुरु के प्रति कृतज्ञता प्रकट करें।

भाव से मिलने वाले लाभ

  • मन में स्थिरता और आंतरिक शांति प्राप्त होती है।
  • जीवन की उलझनों का समाधान स्पष्ट दृष्टि से मिलता है।
  • सतगुरु की कृपा से भक्ति और आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है।
  • अहंकार और भ्रम का नाश होकर प्रेम और विनम्रता आती है।
  • गुरु की राह पर चलकर जीवन अर्थपूर्ण और सफल बनता है।

निष्कर्ष

“सतगुरु नाल प्रिती नूं लगा लै बंदया” यह सन्देश केवल भक्ति का नहीं, बल्कि जीवन के सार का भी प्रतीक है। जब हम अपने सतगुरु से प्रेम और विश्वास का रिश्ता जोड़ते हैं, तब वे हमें हर अंधकार से पार कर प्रकाश की ओर ले जाते हैं। यह भाव हमें सिखाता है कि गुरु के चरणों में समर्पण ही सच्ची भक्ति है। जब मन सच्चे गुरु से जुड़ जाता है, तो जीवन में भय नहीं, केवल कृपा और प्रेम का अनुभव रह जाता है।

Shiv murti

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