जय शनिदेव भक्त हितकारी | भक्ति के प्रतीक भगवान शनिदेव
“जय शनिदेव भक्त हितकारी” का अर्थ है — उन प्रभु को प्रणाम जो अपने भक्तों का हित करने वाले और न्याय प्रदान करने वाले हैं। शनिदेव, सूर्यपुत्र और कर्मों के दाता माने जाते हैं, जो हमें हमारे कर्मों का उचित फल देते हैं। वे दंड के माध्यम से भी भलाई सिखाते हैं और सच्चे भक्त के जीवन में सुधार लाते हैं। जब कोई व्यक्ति शनिदेव को श्रद्धा और सच्चाई से याद करता है, तो वे उसके जीवन से दुख, भय और अस्थिरता को दूर कर शांति प्रदान करते हैं। इसलिए शनिदेव की स्तुति करना आत्मबल, धैर्य और न्यायप्रियता का प्रतीक बन जाता है।

जय शनिदेव भक्त हितकारी,
सुनलीजै प्रभु अर्ज हमारी,
जन के काज विलंब ना कीजो,
आन के नाथ महा सुख दीजो,
जो जड चेतन हे जग माहि,
तुम्हरी दृष्टी छुपत कोहु नाही,
दृष्टी दया कर मोही उबारो,
रवि तनय मम संकट तारो,
जोपै गुपित होउ तुम देवा,
सुख शांति भस्मी कर देवा,
जापे वर प्रद कर धर देहु,
ताहि सुखी सपन्न करेहूँ।
जयति जयति जय हे शनि देवा,
तीनो लोक हो तेरी सेवा,
तुम्हरे कोप जगत भर माया,
सूर्य पुत्र तुम माता छाया,
रूप भयानक अति भयंकर,
ध्यावे ब्रम्हा विष्णु शंकर,
विष स्वरूप अति विद्रूपा,
पूजित लोक हे नवग्रह भूपा।
जय शनि देव जयति बल सागर,
सुर समूह समर्थ भटनागर,
शाम वसन तन सोहत स्वामी,
हे छाया सूत नमो नमामी,
धर्मरक्षा को स्वामी धावो,
ब्रजगदहनु विलंब ना लागो,
गदा वज्र लैवेरही मारो,
दिन जनन को नाथ उबारो।
दिर्घ दिर्घ तर गात विशाला,
नाहीकोउ बैर बाँधनेवाला,
देवदनुज सब कहे भयकारी,
तुम बिन कोई कलेश ना तारी,
ग्रहपीड़ा हरना रविनंदन,
शनि देव तुम शत शत वंदन,
पूजा जप तप लेम अचारा,
नाही जानत हो दास तुम्हारा।
वन उपवन मघ गिरि ग्रह माही,
तुम्हरे बल हम डरपत नाही,
पाय परो करी जोर मनाउ,
ध्यान तेरा शनी देव लगाउ,
सूर्यपुत्र हे ये यम के भ्रांता,
सुख दुःख हारी भाग्य विधाता,
तासों विनय करो तोहि पाहीं,
तोरी कृपा कछु दुर्लभ नाही।
रवि तनय मोहे शांति दीजै,
विपदा मोरि सकल हरी लीजै,
हे ग्रहराज रोग चिंता हर,
छाया पुत्र कृपा होपे पर,
तुम बिन मोर ना कोहु सहाया,
शनि देव तोरी शरण में आया,
जय जय जय धुनि होत आकासा,
सुमरथ होय दुसह दुःख नासा।
चरण पकड़ तोहि नाथ मनाउ,
छोड़ शरण तोरी अब कित जाउ,
आप से बिनती करू पुकारी,
हरहु सकल दुःख विपत हमारी,
आसो प्रभु प्रभाव तिहारो,
क्षण में कटे दुःख स्वामी मारो,
जयति जयति जय शिव के प्यारे,
जयति जयति जय छाया दुलारे।
जयति जयति जय मंगल दाता,
जयति जयति जय भाग्यविधाता,
जयति जयति त्रिभुवन विख्याता,
जयति जय पाप पुण्य फल दाता।
शनिदेव की उपासना कैसे करें
- दिन: शनिवार का दिन सर्वोत्तम माना गया है।
- तैयारी: स्नान कर साफ नीले या काले वस्त्र धारण करें।
- स्थान: शनिदेव मंदिर, पीपल के वृक्ष के नीचे या घर के पवित्र स्थान पर पूजा करें।
- दीपदान: सरसों के तेल का दीपक जलाएँ, उसमें सात बत्तियाँ रखें।
- भोग: काले तिल, उड़द की दाल या गुड़ का भोग लगाएँ।
- मंत्र जप: श्रद्धा से जप करें —
“ॐ शं शनैश्चराय नमः” या “जय शनिदेव भक्त हितकारी” 108 बार। - संकल्प: अपने जीवन में सही कर्म और सच्चाई का पालन करने का व्रत लें।
शनिदेव की कृपा से मिलने वाले फल
- जीवन की कठिनाइयाँ, बाधाएँ और शनि दोष धीरे-धीरे शांत होते हैं।
- आर्थिक और मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है।
- आत्मविश्वास और धैर्य बढ़ता है, जिससे कार्यों में सफलता मिलती है।
- नकारात्मक ऊर्जा और भय दूर होकर मन में शांति का अनुभव होता है।
- सच्चे कर्म और भक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
निष्कर्ष
“जय शनिदेव भक्त हितकारी” का जाप केवल एक आराधना नहीं, बल्कि जीवन में संतुलन और कर्मशीलता लाने की साधना है।
जब हम सच्चे मन से शनिदेव का स्मरण करते हैं, तो वे हमारे जीवन से अंधकार हटाकर उजाला भर देते हैं। उनकी कृपा से हम अपने कर्मों में सुधार लाते हैं और हर परिस्थिति में संयम बनाए रखते हैं। शनिदेव के चरणों में श्रद्धा रखने वाला भक्त सदैव सुरक्षित, संतुष्ट और सफल जीवन की ओर अग्रसर होता है।

