मेरे गुण अवगुण को पलड़े में न तोलो तो अच्छा होगा

मेरे गुण अवगुण को पलड़े में न तोलो तो अच्छा होगा

“मेरे गुण अवगुण को पलड़े में न तोलो तो अच्छा होगा” — यह एक ऐसी पंक्ति है जिसमें भक्त का हृदय ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण में झुका हुआ है। यह भाव दर्शाता है कि हम सभी में अच्छाई और कमी दोनों हैं, परंतु सच्ची भक्ति तब होती है जब हम अपनी सीमाओं को स्वीकार कर दया की प्रार्थना करते हैं। इस पंक्ति में नम्रता, पश्चात्ताप और विश्वास का अद्भुत संगम है। यह हमें यह भी सिखाती है कि ईश्वर न्याय से नहीं, बल्कि करुणा से अपने भक्तों का मूल्यांकन करते हैं।

rajeshswari

मेरे गुण अवगुण को पलड़े में,
न तोलो तो अच्छा होगा
मेरे सिर पे गगरिया पापो की-2
न खोलो तो अच्छा होगा
मेरे गुण अवगुण…………..

कितने वादे करके हे भगवन-2
पाया तुझसे मानव का तन-2
मैने वो निभाए है के नही-2
न वोलो तो अच्छा होगा-2
मेरे गुण अवगुण…………

मेरे पापो का मेरे पुण्यो का-2
अच्छे या बुरे सब कर्मो का -2
है तेरे पास हिसाव मगर-2
न जोड़ो तो अच्छा होगा-2
मेरे गुण अवगुण…….……..

न सेवा की न पूजा की-2
फिर भी तुमसे है आस लगी-2
छोड़ो ये झूटा भटम सही -2
न तोड़ो तो अच्छा होगा-2

मेरे गुण अवगुण को पलड़े में,
न तोलो तो अच्छा है
मेरे सर पे गगरिया पापो की ,
न खोलो तो अच्छा है
मेरे गुण अगगुण….………….

इस भाव से भक्ति करने की विधि

  1. समय: प्रातःकाल या रात्रि के शांत समय में यह साधना सर्वोत्तम रहती है।
  2. स्थान: किसी शांत और स्वच्छ स्थान पर ईश्वर के चित्र या दीपक के सामने बैठें।
  3. प्रारंभ: कुछ क्षण ध्यान लगाएँ और मन में यह भाव लाएँ — “हे प्रभु! मैं पूर्ण नहीं हूँ, पर मेरा प्रेम सच्चा है।”
  4. जप या प्रार्थना: इस पंक्ति को भावपूर्वक दोहराएँ —
    “मेरे गुण अवगुण को पलड़े में न तोलो तो अच्छा होगा।”
  5. भक्ति भाव: अपने जीवन की गलतियों के लिए क्षमा माँगें और विनम्रता से आभार व्यक्त करें।
  6. समापन: अंत में दीपक के प्रकाश को निहारते हुए ईश्वर से कहें — “आपकी दया ही मेरा सबसे बड़ा सहारा है।”
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इस साधना के आध्यात्मिक लाभ

  • विनम्रता का विकास: अहंकार कम होता है और हृदय कोमल बनता है।
  • क्षमा का भाव जागता है: स्वयं और दूसरों के प्रति क्षमा भाव आता है।
  • मानसिक शांति: आत्मग्लानि मिटती है और मन हल्का होता है।
  • ईश्वर का सान्निध्य: भक्ति में गहराई और सच्चा ईश्वरीय अनुभव होता है।
  • आध्यात्मिक प्रगति: व्यक्ति अपने दोषों को सुधारते हुए भक्ति के मार्ग पर अग्रसर होता है।

निष्कर्ष

“मेरे गुण अवगुण को पलड़े में न तोलो तो अच्छा होगा” — यह पंक्ति हमें ईश्वर के समक्ष विनम्र बनने की प्रेरणा देती है। सच्चा भक्त वही है जो अपने दोषों को स्वीकार कर ईश्वर की करुणा में विश्वास रखता है। जब हम अपने मन से यह स्वीकार कर लेते हैं कि हम अपूर्ण हैं, तब प्रभु की दया हमें पूर्ण बना देती है। यह भाव हमें न केवल भक्ति के मार्ग पर अग्रसर करता है, बल्कि जीवन को शांति, प्रेम और संतुलन से भर देता है।

Shiv murti

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