ग्वाला बालां दे सिरमौर कन्हाई ने | प्रेम, सादगी और लीलाओं के अधिपति श्रीकृष्ण
“ग्वाला बालां दे सिरमौर कन्हाई ने” — यह पंक्ति उस बाल-गोपाल की झलक है जिसने अपनी निष्कपट मुस्कान और बालसुलभ लीलाओं से सम्पूर्ण ब्रजभूमि को आनंदमय बना दिया। श्रीकृष्ण ने ग्वाल-बालों के बीच रहकर हमें यह सिखाया कि सच्चा नेतृत्व अधिकार से नहीं, प्रेम और मित्रता से होता है। उनकी बांसुरी की धुन में प्रेम, करुणा और सादगी का ऐसा मेल था जिसने हर हृदय को छू लिया। यह भाव हमें बताता है कि ईश्वर सबसे पहले हमारे सच्चे साथी और रक्षक होते हैं।

छैल छबीला रसिया रंग रंगीला ऐ,
नवियां नवियां करदा रेहन्दा लीला ए
नटवर नागर नंद किशोर कन्हाई ने,
धुम्मा पाइयां मक्खन…..
मन मेरा मोह लैंदा जद मुरली वजांदा ऐ,
वस्स कर लैंदा ऐसा जादू पांदा ऐ
राधा रमण हरि चितचोर कन्हाई ने,
धुम्मा पाइयां मक्खन…..
रासां पांदां सबनू नाच नचांदा ऐ,
मक्खन गोपियां दा ऐ लुट लुट खांदा ऐ
वृंदावन दे बांके मोर कन्हाई ने,
धुम्मा पाइयां मक्खन…..
कहे “मधुप” हरि दे खेल न्यारे ने,
अपने भक्तां दे सब कम सवारे ने
रखी हथ विच सब दी डोर कन्हाई ने,
धुम्मा पाइयां मक्खन…..
भाव से भक्ति करने की विधि
- समय: प्रातः या संध्या का समय भजन और स्मरण के लिए श्रेष्ठ है।
- स्थान: श्रीकृष्ण के चित्र या मूर्ति के समक्ष दीपक और अगरबत्ती जलाएँ।
- सामग्री: तुलसीदल, फूल, मक्खन-मिश्री और प्रेम से भरा हृदय।
- प्रारंभ: “जय श्रीकृष्ण गोविंद” का स्मरण करें और मन को शांत करें।
- भक्ति क्रिया: इस पंक्ति को गाते या दोहराते हुए श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का स्मरण करें —
“ग्वाला बालां दे सिरमौर कन्हाई ने।” - समापन: अंत में कन्हैया से प्रार्थना करें — “हे नंदलाल! मुझे भी ऐसा सरल और प्रेममय हृदय दे दो।”
इस भाव से भक्ति करने के लाभ
- मन की पवित्रता: बाल-कृष्ण का स्मरण मन को निर्मल और शांत बनाता है।
- प्रेम और आनंद की वृद्धि: जीवन में सहजता और आनंद का संचार होता है।
- भक्ति का भाव गहराता है: ईश्वर के साथ व्यक्तिगत संबंध मजबूत होता है।
- तनाव और चिंता दूर होती है: कन्हैया की लीलाएँ मन को हल्का करती हैं।
- ईश्वर कृपा प्राप्त होती है: श्रीकृष्ण का स्नेह और आशीर्वाद जीवन में सदैव बना रहता है।
निष्कर्ष
“ग्वाला बालां दे सिरमौर कन्हाई ने” केवल एक भक्ति गीत की पंक्ति नहीं, बल्कि प्रेम, मित्रता और निष्कपटता का प्रतीक है। श्रीकृष्ण ने हमें सिखाया कि ईश्वर भी तब सबसे अधिक प्रसन्न होते हैं जब हम उन्हें मित्र की तरह सच्चे दिल से याद करते हैं। उनका बाल रूप हमें यह प्रेरणा देता है कि जीवन को सरल, प्रेमपूर्ण और आनंद से भरपूर रखना ही सच्ची भक्ति है। जब हम कन्हैया को अपने हृदय में बसाते हैं, तो पूरा जीवन ब्रज की तरह मधुर और सुगंधित हो जाता है।

