तू सोच ना पाएगा, ऐसा ये खेल रचाएगा

तू सोच ना पाएगा, ऐसा ये खेल रचाएगा

“तू सोच ना पाएगा, ऐसा ये खेल रचाएगा” — यह पंक्ति हमें ईश्वर की लीला की अद्भुत गहराई का अनुभव कराती है। मनुष्य अपनी सीमित समझ से जीवन के रहस्यों को समझ नहीं पाता, परंतु ईश्वर की योजना हमेशा हमारे हित में होती है। जब हम किसी कठिन परिस्थिति में फँसते हैं, तब भी भगवान ऐसे मार्ग दिखाते हैं जो हमारी कल्पना से परे होते हैं। यह भाव हमें सिखाता है कि जब भी हम जीवन में अंधकार देखें, तो विश्वास रखें — प्रभु का खेल चल रहा है, और अंत में सब हमारे लिए शुभ होगा।

rajeshswari

तू सोच ना पायेगा ,ऐसा ये खेल रचायेगा
चिंता तेरे जीवन की ..२
श्याम मिटायेगा…

इनके भरोसे जब हो जाएगा ,संग मे हरपल इनको पायेगा
गफ़लत मे खोया रह जाएगा ,काम तेरा अटका बन जाएगा
रहमत की किरपा तुझपे ..२
ये बरसायेगा…

सेवा इनकी जब भी बजाएगा,उलझन तेरी ये सुलझायेगा
प्रेम भाव से भजन सुनाएगा ,अपने मन को हल्का पाएगा
बाहो मे भर कर तुझको ..२
गले लगायेगा…

हर परिणाम को तू जो स्वीकारे ,बाबा की मर्ज़ी है ये मानें
बेहतर तेरा मलिक सोच रहा,ऐसा अपने दिल को समझाले
“मोहित”बातों पे अमल हो ..२
तू सुख पायेगा….

भाव से भक्ति करने की विधि

  1. समय: प्रातःकाल या रात्रि का शांत समय सर्वोत्तम रहता है।
  2. स्थान: भगवान श्रीकृष्ण या अपने आराध्य देव की मूर्ति/चित्र के सामने दीपक जलाएँ।
  3. प्रारंभ: गहरी साँस लेकर मन को शांत करें और प्रभु का ध्यान करें।
  4. जप या भजन: इस पंक्ति को भावपूर्वक दोहराएँ —
    “तू सोच ना पाएगा, ऐसा ये खेल रचाएगा।”
    इसे श्रीकृष्ण की लीलाओं को याद करते हुए गाएँ या मन ही मन स्मरण करें।
  5. भावना रखें: विश्वास करें कि प्रभु हर स्थिति में आपका मार्गदर्शन कर रहे हैं।
  6. समापन: कृतज्ञता के साथ प्रार्थना करें — “हे प्रभु, मुझे आपके खेल को समझने की बुद्धि और स्वीकारने की शक्ति दें।”
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इस साधना से मिलने वाले लाभ

  • विश्वास दृढ़ होता है: कठिनाइयों में भी ईश्वर पर भरोसा बढ़ता है।
  • भय और चिंता दूर होती है: जीवन के उतार-चढ़ाव में मन शांत रहता है।
  • धैर्य और सहनशीलता बढ़ती है: हर परिस्थिति को सहजता से स्वीकारना आता है।
  • आध्यात्मिक दृष्टि विकसित होती है: व्यक्ति समझने लगता है कि हर घटना का एक गहरा अर्थ है।
  • ईश्वर कृपा का अनुभव: जब हम पूर्ण समर्पण करते हैं, तब भगवान अपने चमत्कार दिखाते हैं।

निष्कर्ष

“तू सोच ना पाएगा, ऐसा ये खेल रचाएगा” हमें यह सिखाती है कि ईश्वर की लीला मानव बुद्धि से परे होती है। जब हम सब कुछ उनके हवाले कर देते हैं, तब जीवन का हर कठिन मोड़ एक नया आशीर्वाद बन जाता है। यह भाव भक्ति में समर्पण और विश्वास की गहराई को दर्शाता है। प्रभु श्रीकृष्ण हमेशा हमारे साथ हैं — बस हमें धैर्य और श्रद्धा से उनके खेल को स्वीकार करना सीखना है, क्योंकि उनका हर खेल अंत में प्रेम और कल्याण का संदेश देता है।

Shiv murti

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