दिल मेरा ले गया साँवरिया, ओढ़ के काली कामलिया
“दिल मेरा ले गया साँवरिया, ओढ़ के काली कामलिया” — यह पंक्ति भक्त और भगवान श्रीकृष्ण के बीच उस मधुर संबंध को प्रकट करती है जो सच्चे प्रेम और भक्ति पर आधारित है। जब मनुष्य भक्ति में डूब जाता है, तो उसका हृदय साँवरिया के चरणों में समर्पित हो जाता है। कन्हैया की काली कमलिया, उनकी बांसुरी और मुस्कान जीवन की हर उदासी को मिटा देती है। यह भाव हमें बताता है कि सच्ची भक्ति में ईश्वर से मिलन केवल आराधना नहीं, बल्कि आत्मा की अनुभूति बन जाती है।

दिल मेरा ले गया सांवरिया,
ओढ़ के काली कामलिया….
ये मीरा तुझे पुकारे रो रो के नीर बहाए,
महल में आजा सांवरिया,
ओढ़ के काली कामलिया,
दिल मेरा ले गया सांवरिया,
ओढ़ के काली कामलिया….
ये द्रोपदी तुझे पुकारे रो रो के नीर बहाए,
आके चिर बढ़ाजा सांवरिया,
ओढ़ के काली कामलिया,
दिल मेरा ले गया सांवरिया,
ओढ़ के काली कामलिया…..
ये शबरी तुझे पुकारे रो रो के नीर बहाए,
आके बेर तो खा सांवरिया,
ओढ़ के काली कामलिया,
दिल मेरा ले गया सांवरिया,
ओढ़ के काली कामलिया….
ये अर्जुन तुझे पुकारे रो रो के नीर बहाए,
गीता ज्ञान सुना जा सांवरिया,
ओढ़ के काली कामलिया,
दिल मेरा ले गया सांवरिया,
ओढ़ के काली कामलिया….
ये नरसी तुझे पुकारे रो रो के नीर बहाए,
आके भात भरा जा सांवरिया,
ओढ़ के काली कामलिया,
दिल मेरा ले गया सांवरिया,
ओढ़ के काली कामलिया….
भाव से भक्ति करने की विधि
- समय: प्रातः या संध्या का समय भक्ति के लिए सर्वोत्तम है।
- स्थान: श्रीकृष्ण के चित्र या मूर्ति के सामने दीपक और धूप जलाएँ।
- सामग्री: तुलसीदल, फूल, मिश्री, मक्खन और प्रेम से भरा हृदय रखें।
- प्रारंभ: मन को शांत करें और श्रीकृष्ण का ध्यान करते हुए यह पंक्ति बोलें —
“दिल मेरा ले गया साँवरिया, ओढ़ के काली कामलिया।” - भक्ति का भाव: कल्पना करें कि आप ब्रजभूमि में हैं, और श्रीकृष्ण अपनी मधुर बांसुरी बजा रहे हैं।
- समापन: अंत में कन्हैया से कहें — “हे साँवरिया, मेरा मन सदा आपके चरणों में बसा रहे।”
इस भाव से भक्ति करने के लाभ
- मन को शांति और आनंद मिलता है: श्रीकृष्ण की याद मन को हल्का करती है।
- प्रेम और समर्पण की भावना बढ़ती है: ईश्वर के प्रति निकटता का अनुभव होता है।
- तनाव और नकारात्मकता दूर होती है: भक्ति में मन रमने से मनोबल बढ़ता है।
- भक्ति का स्वाद गहराता है: श्रीकृष्ण के रूप और लीलाओं से हृदय भक्ति-रस से भर जाता है।
- ईश्वर की कृपा मिलती है: सच्चे प्रेम से भक्ति करने पर कन्हैया अपने भक्त के जीवन में सदैव साथ रहते हैं।
निष्कर्ष
“दिल मेरा ले गया साँवरिया, ओढ़ के काली कामलिया” केवल एक भक्ति पंक्ति नहीं, बल्कि आत्मा की पुकार है। यह वह क्षण है जब प्रेम, आस्था और समर्पण एक हो जाते हैं। साँवरिया की मधुर छवि और उनका काले कमलिया वाला रूप हर भक्त के हृदय को मोह लेता है। जब हम प्रेमपूर्वक उनका नाम लेते हैं, तो मन की हर चिंता मिट जाती है। श्रीकृष्ण के चरणों में यही समर्पण भक्ति का सबसे सुंदर रूप है, जहाँ दिल सच में साँवरिया के प्रेम में खो जाता है।

