दशरथ के राजकुमार बन में फिरते मारे मारे
“दशरथ के राजकुमार बन में फिरते मारे मारे” — यह पंक्ति उस समय की याद दिलाती है जब राजमहल के सुखों में रहने वाले श्रीराम ने बिना किसी शिकायत के वनवास स्वीकार किया। यह घटना केवल दुख की कहानी नहीं, बल्कि त्याग, धर्म और मर्यादा की पराकाष्ठा का प्रतीक है। राम का यह वनवास हमें यह समझाता है कि जीवन में कठिनाइयाँ दूसरों की भलाई और कर्तव्य के लिए स्वीकार की जा सकती हैं। यह पंक्ति मन को गहराई से छूती है और भगवान राम के चरित्र की महानता को उजागर करती है।

अरे दशरथ के राजकुमार बन में फिरते मारे मारे,
बन में फिरते मारे मारे, बन में फिरते मारे मारे,
दुनिया के पालनहार बन में फिरते मारे मारे…..
थी साथ में जनक दुलारी पत्नी प्राणों से प्यारी,
सीता सतवंती है नार बन में फिरते मारे मारे,
दशरथ के राजकुमार…..
भाई लखन लाल बलशाली उसने तीर कमान उठा ली,
भाई भाभी के पहरेदार बन में फिरते मारे मारे,
दशरथ के राजकुमार……
सोने का हिरण दिखा था उसमें सीता हरण छिपा था,
लक्ष्मण रेखा हो गई पार में फिरते मारे मारे,
दशरथ के राजकुमार…..
हनुमान से मिलन हुआ था सुग्रीव भी साथ हुआ था,
वानर सेना हुई तैयार बन में फिरते मारे मारे,
दशरथ के राजकुमार…..
लक्ष्मण बेहोश हुए थे श्रीराम के होश उड़े थे,
रोए नारायण अवतार बन में फिरते मारे मारे,
दशरथ के राजकुमार…..
जब दुष्टा चरण हुआ था तो रावण मरण हुआ था,
उसका तोड़ दिया अहंकार बन में फिरते मारे मारे,
दशरथ के राजकुमार…..
जब राम अयोध्या आए घर-घर में दीप जलाए,
मनी दिवाली पहली बार जब अवध में राम पधारे,
दशरथ की राजकुमार…..
सखिया सब मंगल गांमें सब देव फूल बरसामें,
घर पर हो रही खुशियां अपार जब अवध में राम पधारे,
दशरथ की राजकुमार…..
प्रभु राम के वनवास का स्मरण और प्रार्थना
- समय: सुबह या शाम का शांत समय चुनें।
- स्थान: राम दरबार की तस्वीर या दीपक के सामने बैठें।
- प्रारंभ: तीन बार “जय श्रीराम” बोलकर मन को शांत करें।
- भाव स्मरण:
श्रद्धा से कहें—
“दशरथ के राजकुमार बन में फिरते मारे मारे…” - ध्यान:
राम के वनवास की छवि मन में लाएँ—उनका धैर्य, त्याग और सरलता। - प्रार्थना:
उनसे जीवन की कठिन परिस्थितियों में धैर्य और सही राह दिखाने की प्रार्थना करें।
इस भाव से मिलने वाले लाभ
- मन में धैर्य और सहनशक्ति बढ़ती है।
- जीवन की कठिनाइयों को समझने और स्वीकार करने की शक्ति मिलती है।
- राम के आदर्शों से प्रेरणा मिलती है।
- मन शांत होता है और नकारात्मक विचार कम होते हैं।
- आध्यात्मिकता और आत्मविश्वास मजबूत बनते हैं।
निष्कर्ष
“दशरथ के राजकुमार बन में फिरते मारे मारे” — यह पंक्ति हमें राम के जीवन से वह सीख देती है कि महानता राजसिंहासन से नहीं, बल्कि त्याग, धैर्य और कर्तव्य से मिलती है। प्रभु राम का वनवास हमें सिखाता है कि कठिन समय में भी हमें अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना चाहिए। यह भाव मन को विनम्र बनाता है और जीवन में सहनशीलता की ज्योति जगाता है। वास्तव में, राम के वनवास की कथा हमें हर परिस्थिति में मजबूती और उम्मीद देती है।

