काशी में नाविकों के बच्चे अब सिख रहे तमिल
वाराणसी (जनवार्ता) । काशी तमिल संगमम् 4.0 के दौरान नमो घाट पर गंगा तट के नाविक परिवारों के बच्चों ने तमिल भाषा सीखने की अनोखी मुहिम शुरू की है। आईआईटी मद्रास के विद्या शक्ति स्टॉल पर रोजाना आयोजित हो रहे इन सत्रों में बच्चे प्रतिदिन कम से कम 5 नए तमिल शब्द सीखने का संकल्प ले रहे हैं, ताकि तमिलनाडु से आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों से वे अपनी भाषा में बात कर सकें।

“तमिल सीखें, तमिल करकलाम” — यही नारा अब नमो घाट पर गूंज रहा है। मल्लाह समाज के ये बच्चे जो साल भर गंगा की लहरों पर तीर्थयात्रियों को नावें खेकर उनकी सेवा करते हैं, अब तमिलनाडु के मेहमानों का स्वागत अपनी ही बोली में करना चाहते हैं।
बच्चों का उत्साह देखते ही बनता है। दस साल का रवि रोजाना स्टॉल पर आता है और उत्सुकता से पूछता है, “अन्ना, आज नया शब्द क्या है?” अभी तक बच्चे “वनक्कम”, “नंद्री”, “एप्पडी इरुक्कींग?”, “उंगाल पेयर एन्न?” जैसे अभिवादन और रोजमर्रा के शब्द सीख चुके हैं।
आईआईटी मद्रास के स्वयंसेवक डॉ. अरुण बताते हैं, “ये बच्चे बहुत तेजी से सीख रहे हैं। हम उन्हें सिर्फ शब्द ही नहीं, तमिल संस्कृति, तिरुक्कुरल के दोहे और चोल-संगम काल की कहानियाँ भी सुना रहे हैं। बच्चे बड़े गर्व से कहते हैं कि गंगा और कावेरी अब एक ही माँ लगती हैं।”
काशी तमिल संगमम् के आयोजकों का कहना है कि यह छोटी-सी शुरुआत दो प्राचीन सभ्यताओं को नई पीढ़ी के माध्यम से जोड़ने का जीवंत प्रयास है। जब काशी का मल्लाह बच्चा तमिल में “वनक्कम” कहकर तमिलनाडु के यात्री का स्वागत करेगा, तो “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” का सपना सचमुच साकार होगा।
नमो घाट की यह मुहिम बताती है कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, दिलों को जोड़ने की सबसे मजबूत डोर है। गंगा की लहरें अब तमिल शब्दों की धुन पर थिरक रही हैं।

