बिजली निजीकरण के विरोध में 372वें दिन भी सड़क पर उतरे बिजली कर्मचारी
संविदा कर्मियों की बड़ी छंटनी पर भारी आक्रोश

वाराणसी (जनवार्ता) । विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के बैनर तले पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण और संविदा कर्मियों की बड़े पैमाने पर छंटनी के खिलाफ प्रदेशव्यापी आंदोलन गुरुवार को 372वें दिन भी जारी रहा। वाराणसी में कज्जाकपुरा स्थित अधिशासी अभियंता कार्यालय के सामने सैकड़ों बिजली कर्मियों ने जोरदार प्रदर्शन किया और नारेबाजी की।

कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि निजीकरण की तैयारी के तौर पर पूर्वांचल के 8 मंडलों में पहले चरण में करीब एक हजार संविदा कर्मियों को हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। यह छंटनी मई 2017 में उत्तर प्रदेश पॉवर कॉर्पोरेशन द्वारा जारी मानक आदेश का खुला उल्लंघन है।

संघर्ष समिति के नेताओं ने बताया कि 15 मई 2017 के आदेश के अनुसार शहरी उपकेंद्रों पर 36 और ग्रामीण उपकेंद्रों पर 20 कर्मचारी तैनात होने चाहिए, लेकिन अब मनमाने ढंग से शहरी क्षेत्र में 18.5 और ग्रामीण क्षेत्र में मात्र 12 कर्मचारी प्रति उपकेंद्र रखने का फैसला लिया जा रहा है। इससे संविदा कर्मियों की संख्या 22% से 48% तक कम हो जाएगी।
प्रदर्शनकारी संविदा कर्मियों ने कहा, “हमने अपनी पूरी जवानी बिजली विभाग को दे दी। अब उम्र ढलने पर हमें सड़क पर फेंक दिया जा रहा है। यह हमारे साथ घोर अन्याय है। हम माननीय प्रधानमंत्री जी और मुख्यमंत्री जी से अपनी जीविका बचाने की गुहार लगाएंगे।”
नेताओं ने चेतावनी दी कि अगर संविदा कर्मियों की छंटनी तत्काल रोकी नहीं गई तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा। अधीक्षण अभियंता से मिलने का समय लिया गया है, उस बैठक के बाद बड़ा प्रदर्शन करने का ऐलान किया गया।
सभा को मायाशंकर तिवारी, विजय सिंह, अंकुर पाण्डेय, राजेन्द्र सिंह, संदीप कुमार, राजेश सिंह, रवीन्द्र यादव, मनोज जैसवाल, इकबाल आदि ने संबोधित किया। प्रदेश के सभी जनपदों में भी इसी तरह विरोध प्रदर्शन हुए।
संघर्ष समिति का कहना है कि मध्यांचल (लखनऊ सहित) में पहले ही हजारों संविदा कर्मी हटाए जा चुके हैं। अब पूर्वांचल में भी वही खेल दोहराया जा रहा है, जिससे बिजली व्यवस्था चौपट होने का खतरा पैदा हो गया है।
कर्मचारी नेताओं ने श्रम मंत्री अनिल राजभर के उस बयान का भी हवाला दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि 300 से अधिक कर्मचारियों वाले विभागों में बिना मुख्यमंत्री के आदेश के छंटनी नहीं हो सकती। फिर भी यह अन्याय लगातार जारी है।

