काशी और तमिलनाडु की आध्यात्मिक-दार्शनिक परंपराओं पर बीएचयू में ज्ञानवर्धक शैक्षणिक सत्र
वाराणसी (जनवार्ता) : काशी तमिल संगमम् के चौथे संस्करण के तहत शुक्रवार को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में “काशी और तमिलनाडु की आध्यात्मिक एवं दार्शनिक परंपराएँ” विषय पर एक उच्चस्तरीय शैक्षणिक सत्र का आयोजन किया गया। तमिलनाडु के विभिन्न शिक्षण संस्थानों से आए करीब 200 शिक्षकों ने इसमें सक्रिय भागीदारी की।


कार्यक्रम का शुभारंभ शिक्षा संकाय की डीन प्रो. अंजली बाजपेयी ने किया। रणवीर संस्कृत विद्यालय के छात्रों ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया तथा दीप प्रज्वलन के बाद बीएचयू कुलगीत का सामूहिक गायन हुआ।
मुख्य वक्ता पद्मश्री पंडित राजेश्वर आचार्य ने काशी की अध्यात्म-दर्शन परंपरा पर गहन प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “काशी अहंकार को स्वीकार नहीं करती, यहाँ कोई छोटा नहीं होता। दक्षिण भारत हमारे सभी प्रश्नों का उत्तर देता है। जो काशी में आया, वह फिर कभी पराया नहीं रहा।” रामसेतु को प्रेम और स्नेह का अनंत प्रतीक बताते हुए उन्होंने शिव के जन्मोत्सव न मनाए जाने की लोक-दर्शन परंपरा पर भी विचार व्यक्त किए।
विशिष्ट अतिथि योगी रामसूरतकुमार आश्रम की सुश्री अनाहिता सिधवा ने 1959 से चले आ रहे उत्तर-दक्षिण आध्यात्मिक सेतु की चर्चा की और योग को आधुनिक जीवन का दिशा-निर्देश बताया।
बीएचयू कुलपति प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी ने दोनों संस्कृतियों के बीच सहस्राब्दियों पुराने ओवरलैपिंग संबंधों पर जोर देते हुए कहा, “प्रश्न समानता का नहीं, एकत्व के उत्सव का है।” उन्होंने महाकवि सुब्रमण्य भारती को याद किया और राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को भारतीय ज्ञान परंपरा से जोड़ा। कुलपति ने घोषणा की कि बीएचयू के 300 छात्र शीघ्र ही तमिलनाडु की शैक्षणिक-सांस्कृतिक यात्रा पर जाएंगे, ताकि युवा पीढ़ी में राष्ट्रीय एकता की भावना सुदृढ़ हो।
आईआईटी-बीएचयू के प्रो. राकेश कुमार मिश्र ने स्वागत भाषण में कहा कि काशी तमिल संगमम् ने “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की प्रधानमंत्री की परिकल्पना को साकार किया है।
सत्र में काशी तमिल संगमम् और बीएचयू शिक्षा संकाय की दो लघु डॉक्युमेंट्री भी दिखाई गईं। सभी अतिथियों को स्मृति चिह्न और पुष्पगुच्छ भेंट किए गए। समापन पर राष्ट्रीय गान हुआ।
सत्र के बाद तमिलनाडु के शिक्षक दल ने कमच्छा स्थित सेंट्रल हिंदू बॉयज़ स्कूल और रणवीर संस्कृत विद्यालय का भ्रमण किया, जहाँ छात्रों ने नृत्य-संगीत की मनमोहक प्रस्तुति दी।
काशी तमिल संगमम् 4.0 भारत की प्राचीन सांस्कृतिक एकता को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का सशक्त माध्यम बन रहा है।

