कर्नाटक के बाद कश्मीर की मुस्लिम छात्राओं ने खोला मोर्चा,हिजाब विवाद की तर्ज पर की ये मांग

कर्नाटक के बाद कश्मीर की मुस्लिम छात्राओं ने खोला मोर्चा,हिजाब विवाद की तर्ज पर की ये मांग
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कर्नाटक। कर्नाटक की मुस्लिम छात्राओं के बाद कश्मीर की कुछ मुस्लिम छात्राएं हिजाब में स्कूल जाना चाहती हैं। कर्नाटक में ड्रेस और और बुरका पहनने से जुड़ा ये मामला हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। हालांकि कर्नाटक हाईकोर्ट ने मुस्लिम छात्राओं की अपील ख़ारिज कर दी थी और उन्हें ड्रेस कोड का पालन करने का फैसला सुनाया था। कर्नाटक हाईकोर्ट ने तब अपने फैसले में माना था कि हिजाब,इस्लाम धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। इसलिए हिजाब पहन कर कॉलेज जाने को कानून अधिकार की मान्यता नहीं दी जा सकती। यही नहीं कोर्ट ने ये भी कहा था कि अगर मुस्लिम छात्राएं हिजाब नहीं पहनती,तो इससे इस्लाम को कोई ख़तरा पैदा नहीं हो जाएगा। यही नहीं कोर्ट ने ये भी कहा था कि स्कूलों और कॉलेजों में यूनिफ़ॉर्म की व्यवस्था क़ानूनी तौर पर जायज़ है और इससे अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार का उल्लंघन नहीं होता है। इस फैसले में स्पष्ट रूप से बताया गया था कि संविधान में नागरिकों को जो मौलिक अधिकार दिए हैं,वो असीमित नहीं है और सरकार चाहे तो वो उचित प्रतिबंध लगा सकती है।

स्कूल और मदरसों में क्या अंतर रह जाएगा?
हालांकि कर्नाटक की प्रदर्शकारी छात्राएं इस फ़ैसले के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं। सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच इस फैसले पर कोई स्पष्ट फैसला नहीं सुना पाई,जिसके बाद ये मामला बड़ी बेंच के पास भेज दिया गया और अभी भी ये मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।

ऐसे में आपको इस मामले को लेकर ये भी सोचना चाहिए कि अगर देशभर के स्कूलों में धार्मिक कट्टरवाद को इसी तरह बढ़ावा मिला तो स्कूलों और मदरसों जैसे धार्मिक शिक्षा के संस्थानों में क्या अंतर रह जाएगा?

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क्योंकि मदरसों में ये लड़कियां न सिर्फ हिजाब और बुर्का पहन कर पढ़ाई कर सकती हैं। बल्कि वहां उन्हे इस्लाम धर्म का पालन करने और अपनी भाषा में शिक्षा हासिल करने का भी पूरा अधिकार मिल जाएगा। और सवाल भी यही है कि जब धार्मिक क़ायदे क़ानूनों से शिक्षा के लिए देश में मदरसे पहले से ही मौजूद हैं तो फिर स्कूलों में भी यही व्यवस्था लागू करने की ज़िद क्यों की जा रही है।

हिजाब,नक़ाब,बुर्का या अबाया में क्या अंतर है?
वैसे आज आपने ये भी नोटिस किया होगा कि प्रदर्शनकारी लड़कियां हिजाब नहीं अबाया पहन कर स्कूल जाने पर अड़ी थीं। और हो सकता है कि आप ये भी सोच रहे हों कि आखिर हिजाब, नक़ाब, बुर्का या अबाया क्या हैं और इनमें क्या अंतर है।

दरअसल इस्लाम धर्म में महिलाएं पर्दा करने के लिए कई तरह की ड्रेस पहनती हैं।

  • इसमें पहला है बुर्का- ये ऐसा परिधान होता है जिसमें सिर से लेकर पैर तक पूरा शरीर एक कपड़े से ढका होता है और आंखों के आगे भी एक मोटी सी जाली होती है।
  • अबाया बुर्के से थोड़ा अलग होता है. इसमें महिलाओं का पूरा शरीर और बाल तो ढके होते हैं, लेकिन चेहरा खुला होता है।
  • इसी तरह नकाब भी बुर्के की ही तरह होता है, बस इसमें बुर्के की तरह आंखें कवर नहीं होतीं।
  • हालांकि हिजाब थोड़ा अलग होता है। ये एक तरह का शॉल या दुपट्टे जैसा कपड़ा होता है,जिससे महिलाएं केवल अपने सिर और गर्दन को ढकती हैं।

‘कुरान में हिजाब या बुर्के का जिक्र नहीं’
प्रदर्शनकारी मुस्लिम लड़कियों की एक दलील ये भी है उनके धर्म के हिसाब से हिजाब या अबाया पहनना अनिवार्य है और ऐसा करके वो सिर्फ़ अपने मज़हब का पालन कर रही हैं। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस्लाम के पवित्र धार्मिक ग्रंथ,कुरान में हिजाब और बुर्के जैसे शब्दों का कहीं कोई उल्लेख नहीं किया गया है। इनकी जगह खिमर और जिबाब जैसे शब्द इस्तेमाल किए गए हैं, जिनका अर्थ महिलाओं द्वारा अपना सिर और चेहरा ढंकने से है। कुरान में कहीं भी ये स्पष्ट रूप से नहीं लिखा है कि इस्लाम धर्म को मानने वाली महिलाओं के लिए हिजाब और बुर्का पहनना अनिवार्य है। दूसरी बात, कुरान में कहीं भी इस बात का ज़िक्र नहीं मिलता कि अगर महिलाएं हिजाब और बुर्का ना पहनें तो ये इस्लाम धर्म का अपमान होगा।

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यानी जो बात ये लड़कियां कह रही हैं कि हिजाब न पहनने से उनका धर्म ख़तरे में आ जाता है,वो सैद्धांतिक रूप से पूरी तरह सही नहीं है। लेकिन देश में एक ऐसा वर्ग है जिसके लिए बुर्का और हिजाब इस्लाम की शुद्धता से संबंधित है और इसीलिए ये हर मुस्लिम महिला का कर्तव्य है कि वो हिजाब पहने और हैरानी की बात ये है कि ये वर्ग काफ़ी बड़ा हो चुका है।

‘ईरान में मुस्लिम छात्राएं-महिलाएं बुरका छोड़ रही हैं’
ईरान की महिलाएं सार्वजनिक जगहों पर बिना सिर ढके घूमने की अपनी आज़ादी मांग रही हैं। उनके आंदोलन को पुरुषों का भी साथ मिला है। महिलाओं पर जबरन हिजाब को थोपे जाने के खिलाफ़ शुरू किए गए इस आंदोलन में बड़ी संख्या में देश के खिलाड़ियों, फिल्म कलाकारों और युवाओं ने हिस्सा लिया है। हालांकि उन्हें इसकी क़ीमत भी चुकानी पड़ी है। करीब एक साल पुराने प्रदर्शन में 500 से ज़्यादा लोग जान गंवा चुके हैं, कईयों को फांसी दी चुकी है और हज़ारों को गिरफ़्तार किया गया पर उनका आंदोलन जारी है। ऐसे में जो भारतीय छात्राएं हिजाब पहन कर स्कूल-कॉलेज जाने की जिद कर रही हैं,उन्हें ईरान की महिलाओं के आंदोलन के बारे में भी पढ़ लेना चाहिए।


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