अमेरिका ने घोंपा दोस्तों की पीठ में ‘छुरा’,अपने ही मित्र देशों की करवाई जासूसी
नई दिल्ली। डिप्लोमेसी में दोस्त कौन है और दुश्मन कौन है,यह कहना मुश्किल है। क्योंकि अगर आपसे पूछा जाए कि इस वक्त यूक्रेन का सच्चा साथी कौन है तो आपका पहला जवाब होगा अमेरिका ही होगा। अमेरिका न सिर्फ़ यूक्रेन की आर्थिक मदद कर रहा है,बल्कि उसे बड़े पैमाने पर हथियार और गोला बारूद की सप्लाई भी कर रहा है। युद्ध शुरू होने के बाद से ही यानी 2022 में अमेरिका,यूक्रेन को 9 लाख 18 हज़ार करोड़ रुपये दे चुका है।
यही नहीं अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने युद्ध के दौरान ही कीव का दौरा किया और ये जताने की कोशिश की कि आज अमेरिका यूक्रेन के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ा है।
अमेरिका पर जेलेंस्की की जासूसी का आरोप
अब आपसे अगर यह कहा जाए कि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलिदीमीर ज़ेलेंस्की की जासूसी हो रही है और ये जासूसी किसी और ने नहीं उनके पक्के मित्र अमेरिका ने ही करवाई है,तो आप क्या कहेंगे? आप सोचेंगे कि भला अमेरिका ऐसा क्यों करेगा? लेकिन ऐसा ही हुआ है और ये हम नहीं कह रहे हैं। अमेरिका के रक्षा मंत्रालय पेंटागन से क्लासीफ़ाइड दस्तावेजों का एक बड़ा जखीरा लीक हो गया है। इसे अमेरिका के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा लीक बताया जा रहा है।
लीक हुई इन ख़ुफिया फ़ाइल्स के अनुसार अमेरिका लगातार जेलेंस्की और उनके अधिकारियों के बीच हो रही बातों को इंटरसेप्ट कर रहा था, यानी उन्हे सुन रहा था। इन दस्तावेजों में यूक्रेन के सैन्य अभियानों के बारे में भी काफ़ी चीज़ें दर्ज हैं।
दक्षिण कोरिया की भी जासूसी का आरोप
सिर्फ़ यूक्रेन ही नहीं अमेरिका पर उसके एक और पक्के दोस्त साउथ कोरिया की जासूसी का भी आरोप है और पश्चिमी मीडिया के अनुसार अमेरिका ने दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक योल और उनके दो टॉप अधिकारियों की भी जासूसी की है।
रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका ने दोनों अफसरों के बीच हुई एक ऐसी बातचीत को इंटरसेप्ट किया है,जिसमें दोनों अधिकारी यूक्रेन को हथियार देने के मुद्दे पर बहस कर रहे थे। इसमें एक अधिकारी सीधे यूक्रेन को हथियार देने के बजाय पोलैंड को हथियार देने की वकालत कर रहा था ताकि वो ये बता सकें कि दक्षिण कोरिया अमेरिका के दबाव में नहीं आया है।
यहां यह बता दें कि दक्षिण कोरिया अमेरिका का पक्का साथी है खासकर एशिया पैसेफिक में वो अमेरिका का सबसे बड़ा रणनीतिक सहयोगी भी है। अमेरिका और साउथ कोरिया के बीच गठबंधन को आप इस तरह भी समझ सकते हैं कि अमेरिका की धरती के बाहर उसका सबसे बड़ा सैन्य बेस साउथ कोरिया में ही है और वहां अमेरिका के कई हज़ार सैनिक हमेशा तैनात रहते हैं।
दक्षिण कोरिया में जासूसी कांड में मचा हंगामा
एक तरफ जहां यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने इस लीक कांड पर कुछ नहीं कहा है और उन्होने जासूसी के मुद्दो को रूटीन बात बता दिया है लेकिन दक्षिण कोरिया में इसे लेकर हंगामा मच हुआ है। वहां का विपक्ष इसे लेकर हमलावर है और अमेरिका पर अपने देश की संप्रभुता पर हमला करने का आरोप लगा रहा है। वहां विपक्ष ने अमेरिका से माफी की मांग भी की है और विपक्ष के दबाव के बाद अब वहां की सरकार ने इस जासूसी कांड की जांच की बात कही है।
अमेरिका द्वारा जासूसी किए जाने का खुलासा ऐसे समय पर हुआ है,जबकि इसी महीने 26 अप्रैल को साउथ कोरिया के राष्ट्रपति अमेरिका के दौरे पर जाने वाले हैं।
इजराइल को भी नहीं छोड़ा
अब अगर आपसे पूछा जाए कि एशिया खासकर पश्चिमी एशिया में अमेरिका का सबसे अच्छा दोस्त कौन है तो आप क्या जवाब देंगे जाहिर तौर पर आप का जवाब होगा इज़राइल। इज़राइल और अमेरिका की दोस्ती जगजाहिर है और दोनों देशों ने न सिर्फ़ एक साथ मिलकर कई बड़े सैन्य ऑपरेशन को अंजाम दिया है,बल्कि दोनों आर्थिक और रणनीतिक साझेदार भी हैं। अरब और मुस्लिम देशों के साथ विवाद में भी अमेरिका का इज़राइल को समर्थन रहा है।
लेकिन ये ताज़ा लीक बताता है कि अमेरिका इज़राइल की जासूसी से भी नहीं चूका। कई पश्चिमी मीडिया संस्थानों ने पेंटागन की लीक हुई इन खुफिया रिपोर्ट्स के हवाले से दावा किया है कि अमेरिका इज़राइल की एजेंसी मोसाद पर भी नज़र रख रहा था।
सनीखेज दावा भी किया गया है कि इज़राइल में हाल ही में हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों में मोसाद का हाथ था। इन लीक्स की मानें तो मोसाद ने अपने कर्मचारियों और अधिकारियों को प्रधानमंत्री नेतनयाहू के खिलाफ़ लोगों को भड़काने और सड़कों पर उतरने के लिए निर्देश दिए थे।
इन दावों के बाद बेंजामिन नेतनयाहू को भी सफ़ाई देनी पड़ी और उन्होने बकायदा एक चिठ्ठी लिखकर इन प्रदर्शनों में मोसाद की भूमिका से इनकार किया।
अमेरिका के लिए असहज स्थिति
वैसे जासूसी कोई आज की चीज़ नहीं है,और दुनिया के ज्यादातर देश दूसरे देशों की गतिविधियों पर अलग अलग तरीक़ों से नज़र रखते हैं, लेकिन अपने ही मित्र देशों की जासूसी का खुलासा होने के बाद अब अमेरिका के लिए स्थिति काफ़ी असहज हो गई है और इसका असर विदेशी संबंधों पर भी पड़ सकता है।
वैसे अमेरिका के लिए ये कोई नई बात नहीं है क्योंकि इससे पहले विकीलीक्स में भी अमेरिका के द्वारा कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों के फोन टैप किए जाने की ख़बर सामने आई थी। विकीलीक्स के अनुसार जिन देशों के राष्ट्राध्यक्षों के फोन टैप हुए थे,उनमें जर्मनी की तत्कालीन चांसलर एंगेला मर्केल भी शामिल थीं और ये तब था, जबकि जर्मनी न सिर्फ़ अमेरिका का मित्र देश है, बल्कि वो नाटो का हिस्सा है।
इस खबर के सामने आने के बाद एंगेला मर्केल ने खुलेआम नाराज़गी जाहिर की थी और उन्होने अपने लिए और अपने अधिकारियों के लिए खास तरह का सिक्योर फोन तक बनवा लिया था ताकि अमेरिका उन्हे दोबारा टैप न कर सके।