नई दिल्ली। चीन में पिछले कई दशकों से लगातार हो रही जनसंख्या वृद्धि के कारण इस देश की आबादी अरब लोगों के भी पार चली गई थी। इस बढ़ती जनसंख्या को कम करने के लिए चीन ने साल 1980 में एक दंपत्ति के सिर्फ एक बच्चा पैदा करने की नीति लागू की थी। जिसका नाम दिया गया ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’।
चीन की ये नीति पूरे 36 सालों तक यानी 2016 तक चलती रही, लेकिन इन्हीं नीतियों के परिणाम स्वरूप आज यह इस देश की आबादी ‘नकारात्मक वृद्धि’ के दौर से गुजर रही है।
दरअसल हाल ही में चीन में जनसंख्या सर्वेक्षण के सर्वे का एक रिपोर्ट जारी किया गया। इस सर्वे के अनुसार साल 2022 में चीन की जनसंख्या में 2021 की तुलना में 8,50,000 की गिरावट आई है। देश ने इतनी ज्यादा जनसंख्या में गिरावट साल 1961 में चीन के भीषण अकाल के बाद पहली बार अनुभव किया गया।
साल 2022 के अंत तक चीन की कुल जनसंख्या 1.4 बिलियन दर्ज की गई,जो पिछले साल की तुलना में 850,000 कम है। इसके अलावा चीन में जन्म दर भी 6.77 प्रति हजार है, जबकि मृत्यु दर 7.37 प्रति हजार है, जिससे जन्म दर शून्य से 0.6 प्रति हजार हो जाती है।
जनसंख्या में आई कमी पर एक्सपर्ट ने क्या कहा
ग्लोबल टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार चाइनीज एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज के पूर्व उपनिदेशक कै फेंग ने एक सेमिनार के दौरान इसी सवाल का जवाब देते हुए कहा कि जन्म दर में गिरावट को लेकर निराशावादी होने की जरूरत नहीं है। चीन के लिए समय आ गया है कि वह आबादी की गुणवत्ता में सुधार के लिए परिस्थितियां और योजनाएं बनाए ताकि इस कमी की भरपाई की जा सके।
उनका मानना है कि घटती जनसंख्या और COVID-19 ने चीन पर काफी प्रभाव डाला है। आबादी में आई कमी के कारण देश को हो रहे नुकसान से बचाने के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि पहले तो लेबर फोर्स को निष्पक्ष और अधिक प्रभावी ढंग से वितरित करना चाहिए, कम वेतन वाले लोगों की आय बढ़ाई जानी चाहिए और जनता के बीच बुनियादी सार्वजनिक वस्तुओं को पहुंचाया जाना चाहिए।
चीन की सरकार जब बढ़ती जनसंख्या से चिंतित थी तब उन्होंने साल 1980 में वन चाइल्ड पॉलिसी नीति लागू की। चीनी अधिकारियों ने 36 सालों चक चली नीति को सफल बताया है और दावा किया है कि इस नीति के कारण देश की जनसंख्या में 40 करोड़ का कमी आई। जिसकी वजह से अन्य लोगों के भोजन और जल की गंभीर कमी को दूर करने में मदद मिली है। हालांकि इस नीति की आलोचना भी की गई क्योंकि इस दौरान चीन ने जबरन गर्भपात और नसबंदी जैसी क्रूर रणनीति का प्रयोग किया था।
साल 2016 में चीनी सरकार ने एक माता-पिता के दो संतान की अनुमति दी, जिसका नाम दिया गया ‘टू चाइल्ड पॉलिसी’ हालांकि इस नीति के बाद भी जनसंख्या वृद्धि में कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ा।
इस नीति की घोषणा तब की गई जब चीन की साल 2020 की जनगणना के आंकड़ों से पता चला कि साल 2016 में लागू की गई टू चाइल्ड पॉलिसी के बाद भी देश की जनसंख्या वृद्धि दर तेजी से घट रही है। संयुक्त राष्ट्र को अब भी उम्मीद है कि इस नीति के बाद भी चीन की जनसंख्या साल 2030 के बाद और भी कम हो जाएगी।
किसी भी देश में जनसंख्या की कमी का असर सबसे पहले युवाओं पर पड़ता है। अगर देश में युवा की संख्या कम होती है तो इससे श्रम की कमी की स्थिति पैदा होगी और देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी।
सामाजिक व्यय में बढ़त: ज्यादा वृद्ध लोगों के होने का मतलब है देश में उनके स्वास्थ्य देखभाल और पेंशन की मांग बढ़ जाएगी। ऐसे में जब काम करने वाले कम और पेंशन उठाने वाले लोग ज्यादा हो जाएंगे तो जिससे देश की सामाजिक व्यय प्रणाली अधिक बोझ पड़ेगा।
चीन की जनसंख्या में गिरावट इस देश की अर्थव्यवस्था पर भी असर डाल सकती है, क्योंकि इस देश में ज्यादातर लोग मध्यम आय वाले है। जो कि श्रम केंद्रित क्षेत्रों पर निर्भर करते हैं।
चीन की आबादी में गिरावट का दुनिया की कुल आबादी पर कितना असर?
दुनिया भर के सभी देशों की जनसंख्या की बात करें तो साल 1950 में विश्व की जनसंख्या अनुमानित 2.5 अरब थी जो कि साल 2022 में बढ़कर 8 अरब तक पहुंच गई।
अब चीन की आबादी घटने के बाद भविष्य में दुनिया की आबादी से जुड़े आकलन पर संयुक्त राष्ट्र की साल 2022 की रिपोर्ट में बताया कि साल 2023 में चीन की जनसंख्या में भारी गिरावट आएगी। वहीं साल 2023 में चीन की जनसंख्या में कमी आने की उम्मीदों और अन्य देशों को लेकर अपने पूर्वानुमानों के आधार पर संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि दुनिया में इंसानों की आबादी अभी लगातार बढ़ती रहेगी और साल 2030 तक ये 8.5 अरब हो जाएगी।
इसी रिपोर्ट के अनुसार साल 2086 तक दुनियाभर की जनसंख्या औसतन 10.4 अरब हो सकता है। हालांकि ये मानकर चला जा रहा है कि ज्यादा प्रजनन दर वाले देश की जन्म दर में कमी आएगी,वहीं कम प्रजनन दर वाले देशों की जन्म दर में मामूली सी बढ़ोत्तरी होगी।
साल 1990 के बाद से ही चीन के प्रजनन दर में लगातार कमी आ रही थी लेकिन साल 2020 में ये 1.28 के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई थी। अगर आप चीन की तुलना उसके पड़ोसी देश भारत से करें तो उसी साल यानी 2020 में भारत में एक महिला औसतन 2.05 बच्चों को जन्म दे रही थी, जबकि अमेरिका में ये दर 1.64 था।
यहां तक कि सबसे कम जन्म दर और बूढ़ी होती आबादी के लिए जाना जाने वाला देश जापान की प्रजनन दर भी उस साल 1.34 थी। चीन की आबादी की बच्चे पैदा करने की क्षमता में तेज़ी से आई इस गिरावट के कई कारण माने जाते हैं।
इस देश में वन चाइल्ड पॉलिसी के चलते लड़कों और लड़कियों के अनुपात में भारी अंतर आ गया। यहां एक बच्चे की नीति के कारण ज्यादातर लोग पारंपरिक रूप से लड़के पैदा करने को तरजीह देते थे। जिसके कारण ज्यादातर बच्चियों का गर्भपात कर दिया जाता था।
इस देश के रहने सहन में इतना खर्चा होता है कि लोग ज़्यादा उम्र में शादी करने का फ़ैसला लेते हैं और आबादी में गिरावट की ये भी बड़ी वजह मानी जाती है।
चीन के कई सर्वे में ये बात भी ज़ाहिर हुई है कि यहां की महिलाएं अब एक या दो बच्चों के परिवार को ही आदर्श मानती हैं। यहां तक की कुछ महिलाएं तो एक बच्चा भी नहीं पैदा करना चाहतीं।