BHU ने बढ़ाई 500% तक फीस:पहले 3500 रुपए सालाना से बढ़ाकर 18,500 रुपए कर दिया गया

BHU ने बढ़ाई 500% तक फीस:पहले 3500 रुपए सालाना से बढ़ाकर 18,500 रुपए कर दिया गया
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वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में जल्द ही एडमिशन शुरू होने की डेट आ जाएगी। न्यू एडमिशन लेने वाले अभ्यर्थियों को रिवाइज्ड यानी कि बढ़ी हुई फीस देनी होगी। नए सेशन से नया नियम लागू होने जा रहा है। इसको लेकर BHU के छात्र संगठनों में उबाल है। सबसे ज्यादा 500% की बढ़ोतरी M.Sc एग्रीकल्चर में हुई है। पहले 3500 रुपए सालाना से बढ़ाकर 18,500 रुपए कर दिया गया है।

अब BHU को जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्रों का भी समर्थन मिल रहा है। छात्रों का कहना है कि BHU रैंकिंग में JNU से 4 नंबर नीचे है, मगर फीस यहां की 30 गुना ज्यादा है।

20 हजार छात्र फीस वृद्धि के विरोध में
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में फीस वृद्धि का मामला शांत नहीं हुआ था कि BHU में भी छात्र लामबंद हो गए। विश्वविद्यालय में 20 हजार से ज्यादा छात्र फीस वृद्धि के विरोध में हैं। वहीं सड़कों पर रोजाना 5 हजार छात्र ‘फीस वृद्धि वापस लो’ के नारे लगाते हुए अपने दिन काट रहे हैं।

कैंपस में बीते 10 दिनों में एक अनिश्चितकालीन और 15 एक दिवसीय धरने, 20 घेराव, 10 जुलूस, 5 हस्ताक्षर अभियान और मौन व्रत तक हो चुके हैं। NSUI, ABVP समेत सभी छात्र संगठन इस मुद्दे पर एक साथ अलग-अलग विरोध कर रहे हैं। जगह-जगह सुरक्षाकर्मियों और छात्रों के बीच नोंकझोक हो रही है। रास्ता रोका जा रहा है। मगर, विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से छात्रों को अभी तक कोई आश्वासन नहीं मिला है।

बता दें कि साल 2014 में फीस वृद्धि की गई थी, जिसे छात्रों के भारी विरोध में वापस लेना पड़ा। उस समय कुलपति प्रो. लालजी सिंह ने खुद धरनास्थल पर आकर फीस वृद्धि वापस लेने की घाेषणा की थी।

छात्र बोले- कुलपति ने हमारा हाल नहीं जाना, वह चाय-समोसे की दुकानों पर मिलते हैं
छात्रों का कहना है कि कुलपति अभी तक धरना दे रहे छात्रों का हाल तक नहीं लेने आए। वहीं, दूसरी ओर कुछ प्रोफेसर कुलपति के बचाव में कह रहे हैं कि फीस बढ़ाने का आदेश इस कुलपति के नहीं, बल्कि पिछले कुलपति के कार्यकाल 2019-20 में दिया गया था।

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कोविड की वजह से छात्रों को राहत देते हुए फीस नहीं बढ़ाई गई। मगर, अब नए सत्र से BHU में रिवाइज्ड फीस देनी होगी। वहीं कुछ का कहना है कि कुलपति सड़क पर नहीं क्लास, ग्राउंड, हॉस्टल और चाय-समोसे की दुकानों पर मिलते हैं।

प्रशासन ने कहा- नए छात्रों की फीस बढ़ेगी
BHU के सहायक जनसंपर्क अधिकारी चंदरशेखर ग्वारी ने कहा कि नई फीस साल 2022-23 में एडमिशन लेने वाले छात्रों के लिए है। पुराने छात्रों से अभी भी पुरानी फीस ही वसूली जा रही है। हां, 2021-22 सत्र के कुछ छात्रों ने रिवाइज्ड फीस आने पर थोड़ा बढ़कर जमा की थी। मगर, जिसने भी ऐक्स्ट्रा फीस जमा की है, क्लेम करने पर वापस किया जा रहा है।

JNU में लगभग सभी कोर्स की सालाना फीस 120 रुपए
BHU की कोर्स, हॉस्टल और लाइब्रेरी फीस में 100% से 500% तक वृद्धि होने की बात कही जा रही है। JNU के मुकाबले BHU की फीस 30 गुना ज्यादा है। JNU में UG-PG-PhD सभी कोर्स के लिए पहले सेमेस्टर की फीस 106 रुपए और दूसरे सेमेस्टर में 120 रुपए लगते हैं। जबकि, BHU में यह 3200 रुपए से भी ज्यादा होने जा रहा है। JNU की NIRF रैंकिंग BHU से बेहतर है। JNU दूसरे स्थान पर है और BHU छठे पर।

छात्रों का कहना है कि JNU के पास यहां से अधिक योग्य प्रोफेसर से हैं। लाइब्रेरी, हॉस्टल से लेकर पूरा कैंपस BHU से बेहतर है। रैंकिंग और सुविधाओं में पिछड़े होने के बावजूद 30 गुना ज्यादा फीस लेने जा रहा है।

छात्रों ने कहा कि JNU में तीन साल पहले फीस वृद्धि के खिलाफ आवाज उठी थी, प्रशासन को बैकफुट पर आना पड़ा। यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन कहता है कि सेंट्रल यूनिवर्सिटी पर फंड जुटाने का दबाव है। सरकार से पैसा नहीं आ रहा है। यदि कोई चारा नहीं है तो फिर छात्रों से एक बार बात क्यों नहीं करते।

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इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में कितनी बढ़ी थी फीस
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में BA की फीस 975 रुपए से बढ़ाकर 3901 रुपए, लैब वर्क के साथ फीस 4115 रुपए है। इसी तरह BSc के लिए फीस 1125 रुपए से 4151 रुपए कर दी गई है। MA की फीस 1561 रुपए से बढ़ाकर 4901 रुपए कर दी गई है। लैब वर्क के साथ फीस 5401 रुपए है। MSc की फीस 1861 से बढ़कर 5401 रुपए, B.Com की फीस 975 रुपए से बढ़ाकर 3901 रुपए और M.Com की फीस 1561 से बढ़ाकर 4901 रुपए हुई है। इसी तरह से LLB की फीस 1275 रुपए से बढ़ाकर 4651 रुपए, LLM की फीस 1561 रुपए से बढ़कर 4901 रुपए कर दी गई है। वहीं, PhD की फीस 501 रुपए से बढ़ाकर 15,300 रुपए हो चुकी है।

छात्र बोले-लाइब्रेरी फीस 100 रुपए से हुई 500
BHU के धरनारत छात्रों ने कहा कि लाइब्रेरी की नई फीस 500 रुपए की गई है, जबकि पिछले साल महज 100 रुपए तक ही थी। यह फीस एडमिशन के दौरान ही जमा हो जाती है। हालांकि, लाइब्रेरियन प्रो. डीके सिंह ने छात्रों के इस दावे को खारिज किया है।

सरकार की मंशा पर उठे सवाल
NSUI के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी और BHU में हुई बेतहाशा फीस वृद्धि ने सबका साथ-सबका विकास का नारा देने वाली मोदी सरकार की मंशा और उनके नीति-नियंताओं द्वारा तैयार की गई शिक्षा नीति पर गंभीर प्रश्न चिह्न खड़े कर रही है। इसका असर सबसे ज्यादा समाज के गरीब, शोषित, दलित, वंचित और पिछड़े तबके पर पड़ रहा है, क्योंकि इन विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे छात्र इन्हीं तबकों से आते हैं।

भाजपा ला रही शिक्षा विरोधी नीति
NSUI-JNU के अध्यक्ष प्रशांत कुमार का कहना है कि हम BHU की फीस वृद्धि मामले में छात्रों के साथ हैं। “देश और प्रदेश में जब से भाजपा की सरकार है शिक्षा पर हमले हो रहे हैं। भाजपा की सीधी-सीधी शिक्षा विरोधी नीति दिखाई दे रही है। ये विश्वविद्यालय महज शिक्षण संस्थान नहीं, बल्कि ये देश की बौद्धिक चेतना के जनक हैं। इन संस्थानों पर बार-बार चोट पहुंचाकर भाजपा सरकार आम जनता को शिक्षा से दूर ले जाना चाहती है और हम इसका पुरजोर तरीके से विरोध करते हैं।

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सस्ती शिक्षा नहीं तो टैक्स भी नहीं
BHU के पूर्व छात्र डॉ. विकास सिंह ने कहा कि सर्वसुलभ सस्ती शिक्षा भारत जैसे लोक कल्याणकारी राज्य की प्रतिबद्धता ही नहीं, बल्कि पहली और बुनियादी शर्त भी है। बढ़ती फीस से समाज का मध्यम और गरीब तबका शिक्षा से वंचित होगा। अगर सरकार सस्ती शिक्षा नहीं उपलब्ध करा पा रही हैं, तो उसे जनता से टैक्स वसूलने का कोई हक नहीं है। सरकारी स्कूल कॉलेजों को लचर करके प्राइवेट करने की कोई साजिश चल रही है।

पार्किंग में गुजारते हैं रात
ABVP-BHU के अध्यक्ष अभय प्रताप सिंह ने कहा कि 15 अक्टूबर से 100 से ज्यादा अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं। डीन ऑफ स्टूडेंट ऑफिस की पार्किंग में रात भी गुजारते हैं। BHU का तापमान शहर से 4 डिग्री कम 15 डिग्री तक चला जाता है। हम इसलिए अड़े हैं कि यह इसलिए कि हमारी हॉस्टल की फीस और न्यू एडमिशन लेने वाले छात्रों पर भार न पड़े।

ABVP-BHU के इकाई मंत्री पुनीत मिश्रा ने कहा कि BHU प्रशासन झूठ बोल रहा कि फीस नहीं बढ़ाई गई है। यदि नहीं बढ़ा होता तो फिर क्यों लौटाने की बात कर रहे हैं।

BHU की बहुजन इकाई ने फीस वृद्धि को गरीबों, पिछड़ों, दलितों और वंचितों पर कुठाराघात बताया है। पूर्व अध्यक्ष रविंद्र गौतम ने कहा कि इसका सबसे बुरा असर SC/ST और पिछड़ों की जेब पर पड़ने वाला है। शिक्षा का बाजारीकरण कर दिया गया है।


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