ब्रिटेन की प्रधानमंत्री लीज ट्रस की कुर्सी खतरे में
ब्रिटेन की प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने अपने आर्थिक फैसलों के लिए देश के समक्ष माफी मांगी है। ट्रस ने कहा कि मैंने जो भी गलतियां की हैं, उनके लिए मैं माफी मांगती हूं, लेकिन पद नहीं छोड़ेंगी। उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि मैं उच्च करों की समस्या से निपटने के लिए लोगों को उनके ऊर्जा बिलों में मदद करना चाहती थी, लेकिन हमने इसमें काफी तेजी दिखाई जो गलत साबित हुई। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ट्रस की माफी के बाद ब्रिटेन में राजनीतिक संकट खत्म हो गया है। ट्रस के मांफी मांगने के पीछे बड़ी वजह क्या है? कंजर्वेटिव पार्टी की क्या दुविधा है? क्या पार्टी प्रधानमंत्री ट्रस के स्थान पर किसी अन्य को पीएम बना सकती है? क्या ये सारे हालात ब्रिटेन में एक चुनाव की ओर ले जा रहे हैं? इस पर क्या है विशेषज्ञों की राय।
विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि ब्रिटेन की नई प्रधानमंत्री लिस ट्रस की मुश्किलों का अंत अभी नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि करों में कटौती के अलावा यूरोपीय संघ के कानूनों से छुटकारा पाना, राष्ट्रीय बीमा वृद्धि को उलटने और हरित ऊर्जा लेवी की वसूली पर रोक लगाने का वादा उनके लिए भारी पड़ सकता है। पीएम ट्रस ब्रिटेन की आर्थिक समस्याओं का समाधान कैसे पाएंगी। यह कह पाना मुश्किल है। इसके अलावा पार्टी के अंदर उनके खिलाफ उठ रहे विरोध को वह कैसे शांत करेंगी।
प्रो पंत ने कहा कि ब्रिटेन में इस राजनीतिक अस्थिरता के पीछे बड़ा कारण आर्थिक संकट है। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन में मुद्रास्फीति बढ़ी है। खाद्य सामग्री की कीमतों में इजाफा हुआ है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ब्रिटेन में दूध की कीमत पिछले एक वर्ष में 40 फीसद बढ़ गई है। उच्च मुद्रास्फीति का कारण केवल कोरोना महामारी के दौरान लाकडाउन या यूक्रेन युद्ध नहीं है। ब्रिटेन में ब्याज दर बढ़ रहा है, आर्थिक मंदी के बादल देश में मंडरा रहे हैं। ऐसे में सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती देश को आर्थिक समस्याओं से उबारना है।
प्रो पंत ने कहा कि ब्रिटेन में महंगाई और ब्याज दर में इजाफे ने देश की राजनीति को प्रभावित किया है। इस मंहगाई का असर ब्रिटेन में कम आय वाले लोगों पर ज्यादा पड़ रहा है। ट्रेड यूनियनों के प्रति नए पीएम के नकारात्मक रुख से उनकी सरकार के लिए जनता का समर्थन और कम हुआ है। ट्रस ने घोषणा की है कि वह जीवन संकट की लागत को दूर करने के लिए ट्रेड यूनियनों के साथ काम नहीं करेगी। इससे देश भर में हड़तालों का एक लंबा सिलसिला शुरू हो सकता है, क्योंकि मजदूरी मुद्रास्फीति के मुकाबले कम रह जाएगी।
प्रो पंत ने कहा कि ब्रिटेन में राजनीतिक अस्थिरता का दौर अभी खत्म होने वाला नहीं है। उन्होंने कहा कि देश की आर्थिक समस्या के चलते राजनीतिक संकट और गहरा सकता है। ट्रस सरकार के रवैया के चलते कंजर्वेटिव पार्टी बैकफुट पर नजर आ रही है। उन्होंने कहा कि ट्रस को लेकर कंजर्वेटिव पार्टी के अंदर भी घमासान मचा है। पार्टी की सबसे बड़ी चिंता यह कि उसको आम चुनाव में जनता के समक्ष दोबारा जाना है। यही कारण है कि पार्टी की देश के आर्थिक हालात पर पैनी नजर है। अगर ट्रस समय रहते इन समस्याओं पर काबू नहीं पाती तो उनका जाना तय है।
कंजर्वेटिव पार्टी के कई सांसद उनके खिलाफ हैं। राजनीतिक संकट के दौरान सौ सांसदों ने ट्रस का खुलकर विरोध किया था। प्रो पंत ने कहा कि टैक्स की कटौती का वादा करके ट्रस पीएम पद का चुनाव जीतीं थी। उनके इस फैसले से कहीं न कहीं ट्रस ने पार्टी का भी विश्वास खोया है। पार्टी की नजर होने वाले संसदीय चुनाव पर टिकी है। ट्रस का यह कदम देश में होने वाले संसदीय चुनाव में कंजरवेटिव पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।