पति से तलाक के बाद भी गैर-दलित महिला के बच्चों को मिलेगी SC की पहचान,सुनाया फैसला
नई दिल्ली। एक गैर-दलित महिला और दलित पुरुष से शादी की। दोनों से दो बच्चे भी हुए लेकिन रिश्तों में खटास आ गई। दोनों अलग-अलग रहने लगे। महिला दोनों बच्चों के साथ मायके रहने लगी। मामला अदालत पहुंचा। अब सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 तक खुद को मिले असाधारण अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए महिला और पुरुष की शादी को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पुरुष को वन टाइम सेटलमेंट के तौर पर महिला को 42 लाख रुपये का भुगतान करने, प्लॉट का मालिकाना हक देने और बच्चों की पोस्टग्रैजुएट तक पढ़ाई का सारा खर्च वहन करने का आदेश दिया है। शीर्ष अदालत ने इस मामले में स्पष्ट किया कि गैर-दलित महिला को भले ही शादी के आधार पर एसएसी का दर्जा नहीं मिल सकता, लेकिन एससी से पैदा हुए उसके दोनों बच्चों को तलाक के बाद भी एससी का दर्जा मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने पति को आदेश दिया है कि वह 6 महीने के भीतर बच्चों को एसएसी सर्टिफिकेट बनवाकर दे।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जवल भुयन की बेंच ने पति को बच्चों के लिए SC सर्टिफिकेट लेने का आदेश दिया। बच्चे पिछले छह साल से मां के साथ रह रहे हैं। बेटा 11 साल का है और बेटी 6 साल की है। जूही पोरिया नी जवालकर और प्रदीप पोरिया को तलाक देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गैर-दलित महिला शादी से SC नहीं बन सकती। लेकिन SC पिता से जन्मे बच्चे SC श्रेणी में आते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में भी यही कहा था, ‘जन्म से जाति तय होती है, शादी से नहीं। सिर्फ पति SC होने से पत्नी SC नहीं हो सकती।’
तलाक के बाद भी बच्चे गैर-दलित परिवार में पलेंगे, लेकिन SC माने जाएंगे। इससे उन्हें सरकारी शिक्षा और नौकरी में आरक्षण मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने पति को छह महीने में बच्चों का SC सर्टिफिकेट बनवाने को कहा। पति पोस्ट-ग्रेजुएशन तक बच्चों की पढ़ाई का पूरा खर्च उठाएगा। इसमें फीस, रहना-खाना सब शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट ने पुरुष को आदेश दिया है कि वह महिला को जीवनभर गुजारे के लिए 42 लाख रुपये की एकमुश्त राशि का भुगतान करे। इतना ही नहीं, उसे अपनी रायपुर की जमीन भी महिला के नाम करनी होगी। इसके अलावा शीर्ष अदालत ने ये भी कहा है कि महिला के रोजमर्रा के कामकाज में आसानी के लिए पुरुष उसे एक दोपहिया वाहन खरीदकर देगा। अगले साल 31 अगस्त तक पुरुष महिला को दोपहिया वाहन खरीद कर देगा।
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ दर्ज FIR और केस भी रद्द कर दिए। शीर्ष अदालत ने महिला को बच्चों की पिता से नियमित मुलाकात कराने को कहा। बच्चों को पिता के साथ छुट्टियां बिताने की अनुमति भी दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों और पिता के बीच अच्छे रिश्ते होने चाहिए।