सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण पर कांग्रेस का बयान, श्‍वेत पत्र लाएं सरकार

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण पर कांग्रेस का बयान, श्‍वेत पत्र लाएं सरकार
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नई दिल्‍ली, एजेंसी। कांग्रेस ने शनिवार को केंद्र ने भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) के बुलेटिन में प्रकाशित शोधपत्र को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि केंद्र ने आरबीआई पर अपनी रिपोर्ट को “अस्वीकार” करने का दबाव डाला है।

इस रिपोर्ट में बैंकों के निजीकरण (Privatization Of Banks) के खिलाफ तर्क दिया गया था और अब कांग्रेस ने मांग की है कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण पर एक श्वेत पत्र लेकर आए।

कांग्रेस का कहना है कि सरकार ने आरबीआई पर शोधपत्र पर स्‍पष्‍टीकरण देने का दबाव डाला। मजबूरन आरबीआई को उसे खारिज करना पड़ा।

कांग्रेस ने कहा- भाजपा है ‘बेचे जाओ पार्टी’

विपक्षी कांग्रेस ने भाजपा का संबोधन “बेचे जाओ पार्टी” के रूप में करते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) के निजीकरण पर सवाल उठाया। आरबीआई के द्वारा शोधपत्र को खारिज करने की बात पर कांग्रेस ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को “रिवर्स बैंक ऑफ़ इंडिया” में बदल दिया है क्‍योंकि इसे अपनी पहली प्रकाशित रिपोर्ट पर “यू-टर्न” लेना पड़ा।

मालूम हो कि आरबीआई ने शुक्रवार को कहा कि बुलेटिन में प्रकाशित शोधपत्र में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के धीरे-धीरे विलय के समर्थन की बात उनकी नहीं है, बल्कि यह लेखकों की अपनी सोच है।

आरबीआई को क्‍यों बदलनी पड़ी बात केंद्र दें स्‍पष्‍टीकरण

यहां कांग्रेस मुख्‍यालय में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए पार्टी प्रवक्‍ता सुप्रिया श्रीनाते (Supriya Shrinate) ने कहा कि अगस्त में आरबीआई ने अपने बुलेटिन में एक शोधपत्र को प्रकाशित किया था, जो आरबीआई की अनुसंधान इकाई द्वारा किए एक महत्‍वपूर्ण अध्‍ययन पर आधारित था।जिसमें लापहवाह तरीके से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण पर चिंता जताई गई थी।

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इसी पर चर्चा करने के लिए इस प्रेस कॉन्‍फ्रेंस का आयोजन किया गया था लेकिन अब इसके बजाय चर्चा इस बात की होगी कि आखिर इस शोधपत्र को लेकर आरबीआई जैसी संस्था पर किस तरह दबाव डाला गया है और सरकार इस पर अपना स्‍पष्‍टीकरण दें।

सुप्रिया ने कहा, अब आरबीआई ने शोध पत्र को “अस्वीकार” करते हुए कहा है कि यह उनका नहीं बल्कि लेखक का विचार है।


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