45 की उम्र में दस्तक देने लगी डिमेंशिया/अल्जाइमर

45 की उम्र में दस्तक देने लगी डिमेंशिया/अल्जाइमर
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नाम, चेहरे, घटनाएं, रिश्ते और अंतत अपनी पहचान तक भूल जाना। यह बीमारी मानवता की शुरुआत से अस्तित्व में है लेकिन सदियों तक इसे उम्र का प्रभाव माना गया। भूलने या बात को ठीक से न समझने को ‘सठियाना’ (साठ साल से ज्यादा उम्र होने के बाद का बदलाव) कहा गया। यह डिमेंशिया/अल्जाइमर है, जो अब साठ से काफी पहले 45 की उम्र के आस-पास भी दस्तक देने लगी है।

विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना के बाद डिमेंशिया के मरीजों की संख्या लगभग दूनी हो गई है। अल्जाइमर और डिमेंशिया मरीजों की संख्या बीते तीन सालों में तेजी से बढ़ी है। हर हफ्ते 15-20 मरीज रिपोर्ट हो रहे हैं। कोरोना काल से पहले तक यह संख्या 7-8 तक होती थी।

एक साल में कानपुर के उर्सला अस्पताल के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य केन्द्र में 44 से 59 की उम्र वाले 227 मरीज का आना विशेषज्ञों को चौंकाता है। केन्द्र के प्रमुख डॉ. चिरंजीव प्रसाद ने कहा- इन मरीजों की काउंसलिंग संग दवाएं चल रही हैं। सेंट्रल साइकियाट्रिक सोसायटी के महासचिव डॉ. गणेश शंकर के मुताबिक कोरोना के बाद डिमेंशिया अल्मजाइमर के रोगी पूरी दुनिया में बढ़े हैं।

वैसे तो उल्टी गिनती का मुहावरा खराब अर्थ में इस्तेमाल होता है,अल्जाइमर व डिमेंशिया मरीजों की याददाश्त को दुरुस्त करने में यह उल्टी गिनतियां कमाल की हैं। डॉक्टर व काउंसलर अल्जाइमर व डिमेंशिया मरीजों को रिवर्स गिनतियों की प्रैक्टिस कराते हैं।

डिमेंशिया में दिमाग के अंदर विशेष तरह के प्रोटीन बनने लगते हैं, जो मस्तिष्क के टिश्यू को नुकसान पहुंचाने लगते हैं। इससे मरीज की याददाश्त, सोचने-समझने, देखने, बोलने और निर्णय लेने की क्षमता में धीरे-धीरे गिरावट आती है। यह गिरावट तेजी से बढ़ती है। विशेषज्ञों के मुताबिक डिमेंशिया एक बीमारी नहीं, बल्कि कई बीमारियों/लक्षणों का समूह है। इनमें अल्जाइमर सबसे प्रमुख बीमारी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक डिमेंशिया के 60-70 फीसदी मामलों के लिए अल्जाइमर ही वजह होता है।

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उल्टे क्रम में 100-97-94-91 गिनवाते हैं। 

सीधे क्रम में 1-3-6-9 गिनवाते हैं।, 2, 4, 6, 8, 10 के पहाड़े पढ़वाते हैं।

बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर के वरिष्‍ठ डॉक्‍टर प्रो. आमिल हयात खान के मुताबिक याददाश्त में कमी, एक-दो दिन की घटनाएं भूल जाना। किसी की बात समझ न पाना, बात करने में परेशानी। बात करते-करते विषय भूल जाना। खुद का डे-प्लान भूल जाना। इनमें से कोई दो लक्षण भी हों तो डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है।

गोरखपुर जिला अस्‍पताल के मनोचिकित्‍सक डॉ.अमित शाही के मुताबिक शारीरिक रूप से एक्टिव न रहना, मोटापा, डायबिटीज, सिर पर चोट लगना, सुनने की क्षमता का कमजोर होना, इस रोग की कुछ वजह हैं। यह रोग दिमाग में टैंगल्स प्रोटीन के बनने से होता है। यह तंत्रिका कोशिकाओं को आपस में जोड़ने और उनके बीच होने वाली क्रियाओं में रुकावट पैदा करता है। इससे व्यक्ति सही से संतुलन नहीं बना पाता।


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