दिवाली के 15 दिन बाद देव दीपावली? जानिए इसका महत्व कथा और पूजा-विधि

दिवाली के 15 दिन बाद देव दीपावली? जानिए इसका महत्व कथा और पूजा-विधि
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नई दिल्ली। देव उत्थान एकादशी दीवाली के 11 वें दिन बाद आती है और 15 वें दिन पर देव दिपावली आती है। भारत में देव उत्थान एकादशी कई तरह से मनाई जाती है। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान लक्ष्मी और नारायण की पूजा अर्चना करके देवों को जगाया जाता है। इस दिन श्रीहरि विष्णु के 4 माह की नींद से जागते ही मांगलिक कार्यों की शुरूआत हो जाती है। फिर इसी दिन तुलसी माता का शालिग्राम से विवाह कराया जाता है। वहीं दिन घरों में चावल के आटे से चौक और गन्ने का मंडप बनाकर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन तुलसी के पौधे का दान बहुत उत्तम माना जाता है।

देवउठनी एकादशी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में आती है। इस साल देवउठनी एकादशी 23 नवंबर 2023 को है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु 4 महीने की नींद से जागते हैं। इसी वजह से इस एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी के साथ ही सारे मांगलिक कार्यों की शुरूआत हो जाती है। इस एकादशी के रात में माता तुलसी और शालिग्राम का विवाह भी होता है। ये दिन इतना शुभ होता है कि शादी जैसे शुभ कार्य के लिए भी ये दिन बेहद शुभ होता है।

इस दिन भारत के कई इलाकों में पूजा स्थल के पास गेरू से गाय-भैंस के पैर,कॉपी किताब, देवी-देवता और फूल पत्ती बनाए जाते हैं। इसके साथ ही इस दिन भगवान की तस्वीर दीवार पर बनाई जाती है। फिर इनके सामने थाली या सूप बजाकर और गीत गाकर देवों को जगाया जाता है। ऐसी करने के पीछे ये मान्यता है कि इससे घर में सुख-शांति बनी रहती है और आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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देव दीपावली कैसे मनाई जाती है?
हिंदू धर्म में दीवाली को बहुत महत्व दिया गया है। दीवाली को दीपों का त्योहार कहा जाता है। कार्तिक माह की पूर्णिमा को हर साल देव मनाई जाती है। ये पावन पर्व हर साल दीवाली के ठीक 15 दिन बाद बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। देव दीपावली काशी में गंगा नदी के तट पर मुख्य रूप से मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि देव दीपावली वाले दिन देवता काशी की पवित्र भूमि पर उतरकर दीवाली मनाते हैं।

देव दीपावली की प्रचलित कथा
कार्तिक माह की पूर्णिमा को भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। फिर सभी देवताओं ने त्रिपुरासुर के आतंक से मुक्त होने की खुशी में काशी में खूब सारे दीप जलाकर इसका जश्न मनाया था। इसी के चलते हर साल कार्तिक पूर्णिमा और दिवाली के 15 दिन बाद देव दीपावली धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन नदियों में दान-पुण्य, स्नान और दीप दान किया जाता है।


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