‘पति से बदला लेने का जरिया बन गया है दहेज उत्पीड़न कानून’,अतुल सुभाष केस के बीच सुप्रीम कोर्ट की

‘पति से बदला लेने का जरिया बन गया है दहेज उत्पीड़न कानून’,अतुल सुभाष केस के बीच सुप्रीम कोर्ट की
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों से कहा है कि उन्हें दहेज उत्पीड़न के मामलों में सावधानी बरतनी चाहिए। SC ने मंगलवार को कहा कि ऐसे मामलों में पति के सगे-संबंधियों को फंसाने की प्रवृत्ति को देखते हुए निर्दोष परिवार के सदस्यों को अनावश्यक परेशानी से बचाना चाहिए। पीठ ने कहा, ‘हाल के सालों में देश भर में वैवाहिक विवादों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, साथ ही विवाह संस्था के भीतर कलह और तनाव भी बढ़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप, आईपीसी की धारा 498ए (पत्नी के खिलाफ पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता) जैसे प्रावधानों का दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, ताकि पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार के खिलाफ व्यक्तिगत प्रतिशोध को बढ़ावा दिया जा सके।’

SC की यह टिप्पणी बेंगलुरु के एक व्यक्ति की आत्महत्या के बाद दहेज कानून के दुरुपयोग पर जारी बहस के बीच आई है। 34 वर्षीय अतुल सुभाष ने अपनी मौत से पहले 80 मिनट का एक वीडियो रिकॉर्ड किया। इसमें उन्होंने अलग रह रही पत्नी और उसके परिवार पर पैसे ऐंठने के लिए कई मामले दर्ज करने का आरोप लगाया। 24 पन्नों के नोट में उन्होंने न्याय व्यवस्था की भी आलोचना की और न्याय न मिलने की बात कही।

‘पति के पूरे परिवार को फंसाने का चलन’
SC के अनुसार, अदालतों को कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन। कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि वैवाहिक विवाद से उत्पन्न आपराधिक मामले में परिवार के सदस्यों की सक्रिय भागीदारी को इंगित करने वाले विशिष्ट आरोपों के बिना उनके नाम का उल्लेख शुरू में ही रोक दिया जाना चाहिए।

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पीठ ने कहा, ‘न्यायिक अनुभव से यह सर्वविदित तथ्य है कि वैवाहिक विवाद उत्पन्न होने की स्थिति में अक्सर पति के सभी परिजनों को फंसाने की प्रवृत्ति होती है। ठोस सबूतों या विशिष्ट आरोपों के बिना सामान्य प्रकृति के और व्यापक आरोप आपराधिक अभियोजन का आधार नहीं बन सकते हैं।’ इसलिए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में अदालतों को कानूनी प्रावधानों और कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने एवं परिवार के निर्दोष सदस्यों को अनावश्यक परेशानी से बचाने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए।

दहेज उत्पीड़न के मामले..
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी तेलंगाना उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज करते हुए की, जिसमें एक महिला द्वारा अपने पति, उसके माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीड़न के मामले को खारिज करने से इनकार कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संशोधन के माध्यम से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में धारा 498ए को शामिल किये जाने का उद्देश्य महिला पर उसके पति और उसके परिजनों द्वारा की जाने वाली क्रूरता को रोकना है, ताकि राज्य द्वारा त्वरित हस्तक्षेप सुनिश्चित किया जा सके।

‘फर्जी मामलों को बढ़ावा न दिया जाए: SC
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक विवादों के दौरान अस्पष्ट और सामान्य आरोपों की यदि जांच नहीं की जाती है, तो कानूनी प्रक्रियाओं का दुरुपयोग होगा और पत्नी एवं उसके परिवार द्वारा दबाव डालने की रणनीति को बढ़ावा मिलेगा। इसने यह भी कहा, ‘हम एक पल के लिए भी यह नहीं कह रहे हैं कि आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता झेलने वाली किसी भी महिला को चुप रहना चाहिए और शिकायत करने या कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू करने से खुद को रोकना चाहिए।’

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बेंच ने कहा कि (उसका सिर्फ यह कहना है कि) इस तरह के मामलों को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि धारा 498ए को शामिल करने का उद्देश्य मुख्य रूप से दहेज के रूप में किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूतियों की अवैध मांग के कारण ससुराल में क्रूरता का शिकार होने वाली महिलाओं की सुरक्षा करना है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हालांकि, कभी-कभी इसका दुरुपयोग किया जाता है, जैसा कि वर्तमान मामले में हुआ।’ SC ने प्राथमिकी खारिज करते हुए कहा कि पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ व्यक्तिगत प्रतिशोध के कारण एवं रंजिश की वजह से शिकायत दर्ज कराई गई थी।


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